हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति आयोग की सीमा तय की, कहा- आपराधिक मामलों में सीधे एफआइआर करवाने का अधिकार नहीं
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए गठित आयोग को आपराधिक मामलों में सीधे एफआइआर दर्ज करवाने या जांच के दौरान बाध्यकारी निर्देश देने का अधिकार नहीं है। जस्टिस कुलदीप तिवारी की पीठ ने यह फैसला सुनाया। मामला मोरिंडा नगर परिषद में 2011 में शिक्षक की भर्ती से जुड़ा था।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए गठित आयोग को आपराधिक मामलों में सीधे एफआइआर दर्ज करवाने या जांच के दौरान बाध्यकारी निर्देश देने का अधिकार नहीं है।
जस्टिस कुलदीप तिवारी की पीठ ने यह फैसला दो याचिकाओं पर सुनाया, जिनमें आयोग द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर दर्ज एफआइआर को चुनौती दी गई थी। मामला मोरिंडा नगर परिषद में 2011 में शिक्षक की भर्ती से जुड़ा था।
याचिकाकर्ता विजय शर्मा उस समय परिषद अध्यक्ष थे। शिकायत में आरोप था कि रिक्त पद, जो अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित था, उसे सामान्य श्रेणी में विज्ञापित कर एक विशेष उम्मीदवार को नियुक्त किया गया। आयोग ने शिकायत पर पुलिस को एससी /एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जिसके आधार पर 2022 में एफआइआर दर्ज हुई।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि आयोग के पास ऐसे बाध्यकारी निर्देश जारी करने का अधिकार नहीं है और उसने पुलिस जांच रिपोर्ट को नज़रअंदाज किया, जिसमें किसी अपराध की पुष्टि नहीं हुई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।
राज्य सरकार और आयोग के पक्षकारों ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 338 और आयोग की कार्यप्रणाली नियमावली आयोग को जांच करने और आवश्यक सिफारिश करने का अधिकार देती है। उनका कहना था कि रूल 7.5.1 के तहत आयोग गंभीर मामलों में एफआईआर दर्ज कराने की अनुशंसा कर सकता है।
निर्देश अधिकार क्षेत्र से बाहर, नहीं टिक सकती एफआइआर
हाईकोर्ट ने विस्तृत कानूनी विवेचना के बाद कहा कि आयोग के पास केवल सिफारिशी शक्तियां हैं, बाध्यकारी नहीं। यह भी स्पष्ट किया कि पुलिस जांच में हस्तक्षेप या एफआइआर दर्ज करने का सीधा आदेश आयोग के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है। अदालत ने पाया कि इस मामले में आयोग द्वारा जारी निर्देश अधिकार-क्षेत्र से बाहर थे, इसलिए उनके आधार पर दर्ज एफआइआर कानूनी रूप से टिक नहीं सकती।
एफआइआर पहले से थी, इसलिए रद करने से परहेज
कोर्ट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध पहले ही एफआइआर दर्ज हो चुकी है, इसलिए इस कोर्ट के लिए वर्तमान कार्यवाही में आरोपों की सत्यता पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। अतः, यह न्यायालय एफआइआर को रद करने से परहेज करता है।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि यदि उन्हें एफआइआर दर्ज किए जाने के संबंध में कोई शिकायत है, तो वे उपयुक्त प्रस्ताव सक्षम प्राधिकरण व अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि यह कहना अनावश्यक है कि जांच अधिकारी संबंधित एफआइआर की जांच कानून के अनुसार सख्ती से पूरी करेंगे।
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