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    चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में डॉल म्यूजियम में देखें भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति, आटा चक्की व रुई कातने वाले चरखें भी हैं मौजूद

    By Vinay KumarEdited By:
    Updated: Wed, 16 Dec 2020 12:35 PM (IST)

    चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में डॉल म्यूजियम जो कि वर्ष 2017 में चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा ओपन किया गया था जिसके अंदर उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति को पेश करती हुई कपड़े की गुड़िया बनाकर रखी गई है। यह कपड़े की गुड़िया गाय और भैंस की आकृतियां मौजूद हैं।

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    चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में स्थित डॉल म्यूजियम। (जागरण)

    चंडीगढ़ [सुमेश ठाकुर]। अगर आप गांव की संस्कृति और इतिहास को देखना चाहते हैं, तो आपको किसी गांव जाने की जरूरत नहीं बल्कि आप आएं रॉक गार्डन चंडीगढ़ के रॉक गार्डन मे जिसका निर्माण स्वर्गीय नेक चंद ने किया था इस गार्डन का निर्माण उन्होंने घरों से निकलने वाले बेकार सामान से किया था। जिस समय गार्डन का निर्माण हुआ उस समय यह पत्थर से बनी हुई मूर्तियों के लिए जाना जाता था, लेकिन अब इसकी एक अलग पहचान उभर कर सामने आने लगी है डॉल म्यूजियम से।

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    डॉल म्यूजियम जो कि वर्ष 2017 में चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा ओपन किया गया था जिसके अंदर उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति को पेश करती हुई कपड़े की गुड़िया बनाकर रखी गई है। यह कपड़े की गुड़िया गाय और भैंस की आकृति से लेकर चूड़ियां डालने वाले दुकान आटा पीसने वाली चक्की, रुई को कातने वाले चरखे, बारात मे घोड़े पर दूल्हा, डोली में दुल्हन, खेतों में किसान हल बैल। यहां तक कि अगर बात करें धार्मिक संस्कृति की तो वह भी डॉल म्यूजियम में दिखाने का प्रयास किया गया है।

    50 से ज्यादा संस्कृति को पेश कर रहा है म्यूजियम

    डॉल म्यूजियम में करीब 50 से ज्यादा गुड़ियों का निर्माण किया गया है। जो कि इंसान और जानवरों से लेकर हमारी पुरानी संस्कृति को दिखा रहे हैं। बात करें हरियाणा की तो यहां पर इकट्ठे बैठकर हुक्का पीना, पंजाब की तो साथ में बैठकर बातें करना महिलाओं द्वारा सावन के महीने में झूला झूलना तक को म्यूजिक में गुड़ियों के जरिए डिस्प्ले किया गया है। जिसका मकसद हमारे आने वाली पीढ़ी को पुरानी विरासत और इतिहास से जोड़ना है।

    पापा का सपना पूरा करने के लिए बनाया म्यूजियम

    नेक चंद के बेटे अनुज सैनी ने बताया कि पापा का सपना था कि इस गार्डन में देश की संस्कृति और विरासत को बचाती हुई हर तरह की चीज होनी चाहिए, जो कि आने वाले 100 सालों के बाद भी हमारे बच्चों को समझ आ सके और वह महसूस कर सके कि हमारे पूर्वज किस तरह के माहौल में रहे थे।

    सुरक्षा के लिए किया प्रयास

    अनुज सैनी ने बताया कि चंडीगढ़ अभी अत्याधुनिक हो चुका है लेकिन एक समय ऐसा भी था जब दो पहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट पहनना जरूरी नहीं था उस समय पापा की तरफ से एक प्रयास किया गया था जो कि चंडीगढ़ पुलिस के बोलने पर किया गया था। उन्होंने शहर के अलग-अलग चौकों पर रखने के लिए स्टेच्यू बनाए थे जो कि कपड़े के थे उनके सर पर पुलिस की टोपी हुआ करती थी जिसका प्रयास था कि जो भी व्यक्ति बिना हेलमेट के वाहन चला रहा है हेलमेट जरूरी रूप से पहने यह प्रयास उनका सफल भी रहा। शहर के चौकों से लेकर उन्होंने इस तरह की गुड़िया को शहर के अलग-अलग स्थानों में रखा था जिसमें किरण थिएटर भी अहम था हालांकि जैसे-जैसे गार्डन तैयार होता गया वह सारी गुड़िया शहर के अलग-अलग स्थानों से उठकर गार्डन के अंदर आ चुकी है जो कि हजारों पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।

     

     

     

     

     

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