सिस्टर लूसी कुरियन को 27वां नीरजा भनोट अवार्ड
नन से समाज सुधारक बनी सिस्टर लूसी कुरियन को 27वां नीरजा भनोट अवार्ड मिला।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़।
जीवन में कई क्षण आते हैं, जो आपको बदल देते हैं। ऐसा ही एक क्षण मेरी जिंदगी में आया। वो भूल थी या सीख, पता नहीं। मगर उसने मुझे पूरी तरह बदल दिया। मैंने समाज सेवा से जुड़ने की भी उसी दिन से सोची। सिस्टर लूसी कुरियन कुछ इसी अंदाज में नन बनने से लेकर एक समाज सुधारक बनने की दास्तान सुनाती हैं। उन्हें 27वें नीरजा भनोट अवार्ड से पीएचडी चेंबर-31 में सम्मानित किया जाएगा। हजारों को दी नई दिशा..
कुरियन ने कहा कि उनका जन्म वर्ष 1956 में केरल में हुआ। वर्ष 1969 में मुंबई पलायन कर लिया। यहां उन्होनें कैथोलिक नन के रूप में सेवाएं दी। वर्ष 1991 में मेरे जीवन में ऐसी घटनाएं घटी, जिसने इसे पूरी तरह बदल दिया। दरअसल हमारे चर्च में एक गर्भवती महिला पहुंची। वो चर्च में शरण चाहती थी, क्योंकि उसका पति कहीं और शादी करने के लिए, उसे मारना चाहता था। मगर सीनियर नन के न होने से मैंने, उसे अगले दिन आने को कहा। उसी रात मुझे चर्च के बाहर एक औरत जलती हुई दिखाई दी। वह वही औरत थी, जो दिन में शरण लेने आई थी। मैंने उसे बचाया, मगर तब तक वो 90 फीसदी जल चुकी थी। अस्पताल में उसकी और उसके बच्चे की मौत हो गई। मुझे इसने ऐसा झटका दिया कि मेरा विश्वास पूरी तरह से हिल गया। इसके बाद मैंने गरीब तबके की हर महिला के लिए कुछ करने की सोची। ऐसे में नन का चोला छोड़, लोगों के बीच रहने की सोची। 1996 में माहेर नाम से अपनी संस्था का निर्माण किया। यहां जरूरतमंद औरतों को रहने की व्यवस्था मुहैया करवाई। इस दौरान मुझे कई धमकियां भी मिली। यहां महाराष्ट्र, केरल, झारखंड की महिलाओं को मैंने पनाह दी। अभी हमारे आश्रय गृह में 300 महिलाओं, 860 बच्चों और 72 पुरुष रह रहे हैं। अभी तक सात हजार से अधिक महिलाओं और बच्चों को शरण दे चुका है। जिन्होंने सेल्फ हेल्प, ट्यूशन और अन्य गतिविधि से जोड़ा गया और उनके जीवन को नई दिशा दी गई। लूसी ने कहा कि उन्हें गर्व है कि उन्हें नीरजा भनोट स मान से नवाजा जाएगा। देश विदेश में कई सम्मान मिले, मगर ये सम्मान मिलना खास है। यह सम्मान देश की उस बेटी के नाम पर है, जिसने अपनी जान लोगों के लिए न्योछावर कर दी। 27 साल पहले शुरू किया गया ये सम्मान..
स्वर्गीय नीरजा भनोट की याद ये स मान 27 वर्ष पहले शुरू किया गया। इस अवार्ड के तहत डेढ लाख रुपये की धनराशि, एक ट्राफी और प्रशस्वि पत्र दिया जाता है। इस अवार्ड के विजेता को भारतीय महिला होना आवश्यक है जो विषम परिस्थितयों का सामना कर अपनी काबलियत के द्वारा बाद में ग्रस्त महिलाओं की मदद कर समाज के लिय उदाहरण बने हो।
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