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    'दंड का मकसद केवल पीड़ा देना नहीं, सुधार भी...', पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सड़क हादसे के दोषी की घटाई सजा

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 04:51 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 18 साल पुराने सड़क हादसे के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दोषी ओम प्रकाश की 2 साल की कठोर कैद की सजा को 'भु ...और पढ़ें

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    हाईकोर्ट ने सड़क हादसे के दोषी की सजा घटाई, कहा- दंड का मकसद सुधार, प्रतिशोध नहीं।

    दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। सजा का उद्देश्य प्रतिशोध नहीं, बल्कि अपराधी का सुधार और समाज में पुनर्वास होना चाहिए। इस मूलभूत सिद्धांत को दोहराते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 18 वर्ष पुराने एक दर्दनाक सड़क हादसे के मामले में महत्वपूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण वाला फैसला सुनाया है।

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    जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने लापरवाही से वाहन चलाने के कारण दो लोगों की मौत के दोषी करार दिए गए आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, उसे दी गई दो वर्ष की कठोर कैद की सजा में संशोधन कर दिया है।

    अदालत ने जेल की शेष सजा को माफ करते हुए उसे 'अब तक भुगती गई सजा' तक सीमित कर दिया। हालांकि, जुर्माने की राशि कोर्ट ने बढ़ा दी है। अभियोजन के अनुसार 19-20 मई 2007 की रात जालंधर से लुधियाना की ओर जा रहे एक परिवार की कार जीटी रोड, फिल्लौर के पास एक ट्रक से टकरा गई। आरोप था कि ट्रक चालक ओम प्रकाश ने वाहन को लापरवाही से सड़क के बीचोबीच खड़ा कर दिया था।

    इस टक्कर में अमनदीप सिंह उर्फ राजा की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि उनकी बहन मनप्रीत कौर गंभीर रूप से घायल हुईं और बाद में उन्होंने भी दम तोड़ दिया था। पुलिस ने इस संबंध में ओम प्रकाश के खिलाफ मामला दर्ज किया था। ट्रायल के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, फिल्लौर ने उसे दोषी ठहराते हुए दो साल की कठोर कैद और 1000 जुर्माने की सजा सुनाई थी। यह फैसला अपीलीय अदालत द्वारा भी बरकरार रखा गया था।

    हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका के दौरान ओम प्रकाश ने दोषसिद्धि को चुनौती नहीं दी, बल्कि केवल सजा की अवधि पर राहत मांगी। बचाव पक्ष ने दलील दी कि यह घटना एक दुर्घटना थी, इसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं थी और आरोपित का कोई पूर्व आपराधिक रिकार्ड भी नहीं है। साथ ही यह भी रेखांकित किया गया कि आरोपी पिछले 18 वर्षों से मुकदमे का मानसिक और सामाजिक बोझ झेल रहा है और दो साल की सजा में से करीब 10 महीने की सजा पहले ही काट चुका है।

    हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि दंड का उद्देश्य केवल पीड़ा देना नहीं, बल्कि अपराधी को उसके कृत्य के परिणामों का एहसास कराना और उसे समाज की मुख्यधारा में लौटने का अवसर देना भी है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हर मामले में कठोर दंड ही न्याय नहीं होता। अपराध की प्रकृति, आरोपी की पृष्ठभूमि, घटना के बाद का समय और मुकदमे की लंबी अवधि, इन सभी पहलुओं को संतुलित करना न्यायालय का दायित्व होता है।

    अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया, जिससे यह लगे कि आरोपित समाज के लिए एक स्थायी खतरा है। इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने दो साल की कैद की सजा को घटाकर 'अब तक भुगती गई सजा' तक सीमित कर दिया और जुर्माने की राशि 1000 से बढ़ाकर 3,000 कर दिया।