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    PU की नहीं मानी सलाह, अब धान की फसल पर वायरस का हमला; कई जिलों में दिखने को मिल रहा प्रकोप

    Updated: Mon, 11 Aug 2025 06:08 PM (IST)

    पंजाब में धान की रोपाई जल्दी शुरू होने से सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (एसआरबीएसडीवी) का प्रकोप बढ़ गया है। धान के पौधों का कद छोटा होने और फसल के पीले होने की समस्या ने किसानों और कृषि विज्ञानियों की चिंता बढ़ा दी है। पीएयू के वीसी डा. सतबीर सिंह गोसल ने बताया कि 20 जून के बाद धान लगाने वाले क्षेत्रों में यह बीमारी कम है।

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    धान की फसल पर वायरस का हमला। सांकेतिक फोटो

    आशा मेहता, लुधियाना। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) की स्टडी के आधार पर 20 जून से पहले किसानों को धान की रोपाई नहीं करने की सलाह दी जाती रही है, लेकिन राज्य में इस बार धान की रोपाई एक जून से शुरू हो गई।

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    इसका परिणाम यह निकला कि वर्ष 2022 के बाद एक बार फिर से पंजाब के कई जिलों में धान की फसल पर सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (एसआरबीएसडीवी) का प्रकोप देखने को मिल रहा है।

    धान के पौधों का कद छोटा होने और फसल के पीले होने की समस्या ने किसानों के साथ-साथ कृषि विज्ञानियों की नींद उड़ा दी है। इस वायरस को व्हाइट बैक प्लांट हापर (डब्ल्यूबीपीएच) यानी कि सफेद पीठ वाला टिड्डा फैलाता है।

    इस वर्ष धान की फसल पर बौनेपन की समस्या सबसे पहले पठानकोट में देखने को मिली। अब यह बीमारी पंजाब के कई जिलों में फैल चुकी हैं। शनिवार को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के वीसी डा. सतबीर सिंह गोसल ने खुद टीमों के साथ पटियाला और फतेहगढ़ साहिब जिलों का दौरा किया।

    वीसी डा. गोसल के मुताबिक पीएयू के पैथोलाजिस्ट, वायरोलाजिस्ट, एंटोमोलाजिस्ट, डायरेक्टर रिसर्च, हैड के साथ साथ कृषि विज्ञान केंद्रों के डिप्टी डायरेक्टर की टीमें पिछले डेढ़ माह से फील्ड में हैं। अभी तक के सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार यह बीमारी वहां अधिक देखने को मिल रही है, जहां जल्दी धान लगाया गया।

    उन्होंने बताया कि 20 जून के बाद जिन जगहों पर धान लगा है, वहां यह बीमारी कम है। उन्होंने कहा कि बीमारी फैलने का दूसरा कारण मौसम हो सकता है। गर्म व उमस वाले मौसम में यह बीमारी बढ़ती है। डा. गोसल ने बताया कि पहाड़ों के साथ लगने वाली बैल्ट में यह बीमारी अधिक है। कारण, वहां मौसम थोड़ा अलग है। वहां से धीरे-धीरे बीमारी आगे फैल रही है। राहत की बात यह है कि साउथ वेस्टर्न डिस्ट्रिक में यह बीमारी नहीं है।

    पीआर 126 पर बीमारी का असर नहीं

    डॉ. गोसल ने कहा कि पीआर 126 किस्म में अभी तक इस बीमारी का असर देखने को नहीं मिला है। पंजाब में करीब 40 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में पीआर 126 की बिजाई की गई है। यह किस्म कुछ प्रमुख कीटों और बीमारियों के प्रति सहनशील है।

    बड़ा सवाल-जापान, चीन से बीमारी यहां कैसे पहुंची

    डॉ. गोसल ने कहा कि पहली बार वर्ष 2022 में पंजाब में यह बीमारी देखने को मिली थी। उन्होंने कहा कि थाइलैंड, जापान व चीन में यह बीमारी होती थी। तीन वर्ष पहले यह बीमारी भारत में आ गई। हालांकि अब तक यह पता नहीं लग पाया है कि आखिर यह बीमारी भारत में आई कैसे। हमें लगता है कि बाहर से आने वाले अनटेस्टेड मटीरियल इसका कैरियर हो सकते हैं।

    रोकथाम के लिए पीएयू के सुझाव

    पीएयू ने बीमारी की रोकथाम के लिए एडवाइजरी जारी की है। एडवाइजरी के मुताबिक बीमारी वाले पौधे को शुरू में उखाड़ कर दबा दें।

    अगर फसल पर सफेद पीठ वाला टिड्डा नजर आता है, तो कोई भी कीटनाशक जैसे 94 मिलीलिटर पैक्सालोन 10 एससी (ट्राईफ्लूमीजोपाइरम) या 60 ग्राम उलाला 50 डब्ल्यू जी (फलोनिकामिड) 80 ग्राम ओशीन, टोकन, डोमिनेंट 20 एससी (डाइनोटैफूरान) या 120 ग्राम चैस या 400 मिलीलीटर आरकैसटरा (ब्रैंजपाइरोमोकसान) या तीन सौ मिलीलिटर इमैजन, वियोला 10 एससी (फ्लूपाइरीमिन) प्रति एकड़ के हिसाब से सौ लिटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। किसान अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों पर संपर्क कर सकते हैं।