चंडीगढ़, [सुमेश ठाकुर]। जल्द ही गैंगरीन का इलाज बेहद सस्ते में हर अस्पताल में संभव हो सकेगा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु ने इलाज की यह तकनीक इजाद की है। संस्थान ने सुपर हिल डिवाइस का निर्माण किया है। इस डिवाइस से एक बार के इलाज मेंं महज दो रुपये का खर्च आएगा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बंगलुरु में कार्यरत डॉ. गोपलन जगदीश ने यह जानकारी दी। इस डिवाइस का करीब पांच हजार मरीजों पर टेस्ट भी किया जा चुका है और जो परिणाम मिले वह काफी उत्साहजनक रहे।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरू ने ईजाद की नई तकनीक
उन्होंने बताया कि इसका मरीज को कोई साइड इफेट नहीं होता है और न ही इंसान को इसके इस्तेमाल के दौरान दर्द महसूस होती है। एक बार इस्तेमाल करने पर एक से दो रुपये का खर्च आता है। डॉ. जगदीश ने बताया कि यदि यह डिवाइस लांच होने के बाद गैंगरीन से माैत के मामलों में काफी गिरावट आएगी।
बीमारी में नहीं भरता मरीज का जख्म, साल भर में हो जाती है मौत
इसके अलावा इसे ईजाद करने का श्रेय भी भारत को मिलेगा। वह सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन हाइपसोनिक एंड प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ ऐरोस्पेस इंजीनियङ्क्षरग के तौर पर काम कर रहे हैं। वह शुक्रवार को जीसीजी सेक्टर-11 में साइंस डे पर आयोजित इंटरनेशनल वर्कशॉप में पहुंचे थे।
दस साल लगे डिवाइस बनाने में
डॉ. जगदीश ने बताया कि इस डिवाइस को बनाने में करीब दस साल का समय लगा है। आने वाले एक साल में इसे मेडिकल काउंसिल की तरफ से भी मंजूरी मिल जाएगी। इसके बाद हर अस्पताल में इसका इस्तेमाल किया जाने लगेगा।
सुपरहिल डिवाइस से ऐसे होगा इलाज
गैंगरीन के मरीजों के इलाज में सुपरहिल डिवाइस काफी फायदेमंद साबित होगी। शोधकर्ता के अनुसार, इस डिवाइज में प्रति मरीज के इलाज पर सिर्फ दो रुपये का खर्च आएगा। इसमें मरीज को किसी तरह की दवाई देने की जरुरत नहीं होती। सिर्फ रेज इफैक्ट से मरीज का इलाज किया जाएगा। अभी तक किए गए सभी टेस्ट में यह सफल पाया गया है।
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क्या है गैंगरीन
मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति को यदि कोई चोट लग जाती है तो वह ठीक होने के बजाए बढ़ती जाती है। एक समय ऐसा भी आ जाता है कि जब मरीज गैंगरीन का शिकार हो जाता है। इस अवस्था में मरीज के जिस हिस्से में जख्म होता है वह पूरी तरह से सुन्न हो जाता है और उसमें किसी प्रकार की हलचल महसूस नहीं होती। एक छोटा जख्म भी नहीं भरता है और इससे साल भर में मरीज की मौत तक हो सकती है। इस समय भारत में पांच प्रतिशत लोगों की मौत इस बीमारी के कारण हो जाती है।
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