एनआइटीटीटीआर ने नौकरी के ऑनलाइन फार्म में ट्रासजेंडर्स की जगह लिखा 'गे'
चंडीगढ स्थित एनआइटीटीटीआर द्वारा नौकरी के लिए जारी ऑनलाइन फार्म में ट्रांसजेंडर या अदर्स की जगह कॉलम में 'गे' लिख दिया गया। बाद में हंगामा होने पर इसे ठीक किया गया।
चंडीगढ़, [डॉ. रविंद्र मलिक]। यहां सेक्टर 26 स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च (एनआइटीटीटीआर) की ओर से नौकरी के लिए निकाले गए ऑनलाइन फार्म में मेल, फीमेल और गे (समलैंगिक) का कॉलम दे दिया गया। यहां ट्रांसजेंडर लिखा जाना चाहिए था। सोशल मीडिया पर इस फार्म के वायरल होने और मजाक उड़ने के बाद जब इंस्टीट्यूट का ध्यान इस तरफ गया तब यह गलती सुधारी गई।
हालांकि यहां भी खानापूर्ति होता दिखा, क्योंकि वेबसाइट पर जब इसे सुधारा गया तब जेंडर के विकल्प के साथ स्पेसीफाई प्लीज लिखा गया, जबकि नियमानुसार यहां अदर्स, थर्ड जेंडर व ट्रांसजेंडर्स लिखा जाना जरूरी है।
सोशल मीडिया पर मजाक उड़ने के बाद सुधारी गलती
ऐसी गलती तब हुई, जबकि देश में समलैंगिकता को कोई मान्यता नहीं दी गई है, जबकि ट्रांसजेंडर्स को सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दे रखी है। साथ ही नौकरी या दाखिले के लिए निकाले गए फार्म में अलग से ट्रांसजेंडर्स वर्ग के लिए कॉलम होना जरूरी है। एमई व पीएचडी कोर्स में दाखिले के लिए भी फार्म में ट्रांसजेंडर का विकल्प होता है।
संस्थान द्वारा जारी किया गया आॅनलाइन फार्म।
विज्ञापन संख्या 130 में आया सामने
संस्थान की वेबसाइट पर विज्ञापन संख्या 130 में इस गलती का खुलासा हुआ। विज्ञापन में पहले आवेदक के लिंग के विकल्प में ट्रांसजेंडर, थर्ड जेंडर या अदर्स की बजाय 'गे' का विकल्प दिया था और बाद में सुधार करते हुए इसको आवेदक के ऊपर ही छोड़ दिया कि वह स्वयं अपने लिंग के बारे में जानकारी दे। विज्ञापन में तीन कैटेगरी में नौकरी निकली है।
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दाखिले और नौकरी के फार्म में अलग-अलग नियम
संस्थान ने नौकरी और दाखिले के फार्म में अलग-अलग नियम बनाए हैं जो उनकी ट्रांसजेंडर्स के बारे में जागरूकता की कमी को साफ दर्शाता है। जहां पहले नौकरी के फार्म में 'गे' लिखा, वहीं बाद में इसमें विकल्प के सामने कैंडिडेट को अपना जेंडर लिखने की छूट दे दी। वहीं दाखिले के फार्म में लिंग के सामने ट्रांसजेंडर का विकल्प दिया गया है।
क्या है ट्रंसजेंडर्स एक्ट
लेस्बियन, गे, बायोसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर को मिलाकर एलजीबीटी एक्ट बना है। यौन जरूरतों के आधार पर लेस्बियन, बायोसेक्सुअल और गे कैटेगरी बनाई गई है, जबकि एक्ट सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर बनाया गया है। लेस्बियन महिलाओं में, गे पुरुषों में और बायोसेक्सुअल दोनों कैटेगरी में यौन रुचि रखते हैं। वहीं, ट्रांसजेंडर एक पहचान है।
आधार कार्ड में 1600 ट्रांसजेंडर्स
जानकारी के अनुसार शहर में करीब 1600 ट्रांसजेंडर्स हैं। आधार कार्ड में इस वर्ग के इतने सदस्यों का नाम पंजीकृत किया जा चुका है, लेकिन वोटर्स कार्ड में अब भी ज्यादातर के नाम के आगे महिला ही लिखा है।
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'' किसी भी फार्म में अदर्स का विकल्प जरूरी है। ट्रांसजेंडर भी लिख सकते हैं। संस्थान से जवाब तलब किया जाएगा। सभी संस्थानों को नियमों की अनुपालना के लिए कहा जाएगा।
- राजीव गुप्ता, डायरेक्टर, यूटी ट्रांसजेंडर्स वेलफेयर बोर्ड।
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'' शहर के संस्थानों में अभी हमारे अधिकारों के बारे में सबको जागरूक करने की जरूरत है। ट्रांसजेंडर्स के लिए अदर्स, थर्ड जेंडर या ट्रांसजेंडर का विकल्प होना जरूरी है।
- धनंजय, पीयू स्टूडेंट और इस वर्ग के लिए काम कर रहे ट्रांसजेंडर।
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'' फार्म में जेंडर कॉलम में कैंडीडेट संबंधी जानकारी को लेकर गलती हो गई थी, जिसे बाद में सुधार दिया गया है। अब कैंडीडेट को अपना जेंडर खुद लिखने की छूट दी गई है। जिसमें गे लिख दिया गया था। बाद में गलती को सुधार लिया गया है।
-प्रो. पीके सिंगला, फैकल्टी इंचार्ज एडमिनिस्ट्रेशन एनआइटीटीटीआर सेक्टर-26, चंडीगढ़।
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