Punjab Assembly: विवादों से भरे विधानसभा सत्र में खुली नई राहें, पढ़ें क्या-क्या हुआ पहली बार
Punjab Assembly पंजाब विधानसभा के 3 अक्टूबर को समाप्त हुए सत्र में कई नई राहें निकलींं और सदन में पहली बार कई कदम उठाए गए। पंजाब विधानसभा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी सत्र में प्रश्नकाल नहीं हुआ।
चंडीगढ़, जेएनएन। Punjab Assembly: पंजाब विधानसभा का 27 सितंबर से 3 अक्टूबर तक चला सत्र विवादों से घिरा रहा। विवादों के बीच इस सत्र में 'नई राहें' भी खुलीं। विधानसभा के इतिहास में यह पहला ऐसा सत्र था जब प्रश्नकाल हुआ ही नहीं। इसके साथ ही सत्र के अंतिम दिन शून्यकाल अंतिम के कुछ क्षणों के लिए हुआ। वहीं भगवंत मान पंजाब के दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री बने जो सदन में विश्वास प्रस्ताव लाए। पंजाब विधानसभा में पहली बार विश्वास प्रस्ताव फरवरी 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह लाए थे।
विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले ही विवादों में घिर गया था
इस बार विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले ही विवादों में घिर गया था। पहले यह सत्र 22 सितंबर को होना था। इसकी इजाजत भी राज्यपाल ने दे दी, लेकिन विपक्ष ने इस बात पर आपत्ति उठाई कि सरकार के खिलाफ जब अविश्वास ही प्रकट नहीं किया गया तो फिर विश्वास प्रस्ताव कैसे आ रहा है।
इसके बाद राज्यपाल ने भी 22 सितंबर को होने वाले सत्र को दी गई मंजूरी को वापस ले ली। बाद में सरकार ने पराली, जीएसटी और बिजली के मुद्दे को लेकर सत्र बुलाया। आनन-फानन में बुलाए गए सत्र के कारण विधानसभा में प्रश्नकाल हो ही नहीं सका। जबकि सत्र के पहले दिन ही मुख्यमंत्री ने विश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया। शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी ने विश्वास प्रस्ताव का विरोध नहीं किया लेकिन कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने विरोध दर्ज करवाया। भाजपा ने सत्र का बहिष्कार कर दिया तो स्पीकर को कांग्रेस के विधायकों को नेम करके बाहर भेजना पड़ा।
स्पीकर और विपक्ष में बनी रही तनातनी
विधानसभा के स्पीकर कुलतार संधावा विपक्ष के निशाने पर रहे। विश्वास प्रस्ताव लाने का जब कांग्रेस ने विरोध किया तो स्पीकर ने कांग्रेस के सभी विधायकों को नेम कर दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान विश्वास प्रस्ताव पेश कर सके। वहीं विपक्ष ने फौजा सिंह सरारी को कैबिनेट से बर्खास्त करने को लेकर मुद्दा उठाया। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री से सदन में इसे लेकर बयान देने को कहा, लेकिन उस समय मान सदन में नहीं थे। इसे लेकर विपक्ष ने स्पीकर के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
कैबिनेट मंत्री फौजा सिंह सरारी पर 'भ्रष्टाचार' के आरोप से बैकफुट पर रही भगवंत मान सरकार
अगले ही दिन जब विपक्ष के नेता सुखपाल खैहरा को स्पीकर ने शून्यकाल में बोलने की इजाजत नहीं दी तब भी विपक्ष ने हंगामा किया। विधानसभा में भगवंत मान सरकार कैबिनेट मंत्री फौजा सिंह सरारी पर भ्रष्टाचार के आरोप के मुद्दे पर बैकफुुटपर रही।
नई राहें तो तीन अक्टूबर को तब खुली जब स्पीकर ने शून्यकाल के लिए समय दिया ही नहीं। विपक्ष के नेता प्रताप ¨सह बाजवा ने लोकसभा और राज्यसभा के नियमों का हवाला दिया तो स्पीकर ने बगैर किसी हंगामे के 15 मिनट के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। लेकर विपक्ष ने स्पीकर पर उंगली उठाई कि वह 'दिशानिर्देश' लेने गए हैं।
इसके बाद स्पीकर ने पहले ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के लिए समय दिया और बाद में विश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू करवा दी। स्पीकर ने स्पष्ट कर दिया कि शून्यकाल के लिए समय बहस पूरी होने के दिया जाएगा। कांग्रेस ने तो वाकआउट किया लेकिन तब तक सदन में नई राहें खुल चुकी थीं। क्योंकि विधानसभा में पहले प्रश्नकाल और उसके बाद शून्यकाल होता रहा है। शून्यकाल के अंत में जाने से अब सत्ताधारी दल के लिए नए रास्ते खुल गए हैं।
आप सरकार के समर्थन में 93 वोट
विश्वास प्रस्ताव तो सरकार जीत गई लेकिन हैरानीजनक बात यह रही कि सरकार के हक में 93 वोट पड़े। स्पीकर को छोड़ कर आप के 91 विधायक मौजूद थे। शिअद के मनप्रीत अयाली और बसपा के विधायक नछत्तर पाल का वोट भी सरकार के ही पक्ष में गिना गया।
पंजाब में पहली बार दरबारा सिंह इसलिए लाए थे विश्वास प्रस्ताव
विधानसभा के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब सरकार विश्वास प्रस्ताव लेकर आई। पहली बार 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह विश्वास प्रस्ताव लाए थे। हालांकि उस समय यह प्रस्ताव इसलिए लाया गया क्योंकि अकाली दल के डा. भगत सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए। इसके हक में 25 विधायक भी खड़े हो गए लेकिन बाद में अकाली दल सदन में प्रस्ताव पेश नहीं कर पाया। इस कारण अविश्वास प्रस्ताव आया ही नहीं।
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इसे लेकर दरबारा सिंह ने सदन में घोषणा कर दी कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सका, लेकिन वह विश्वास प्रस्ताव लाएंगे। इस पर फिरोजपुर कैंट के तत्कालीन विधायक गुरनायब सिंह बराड़ ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया। हालांकि इस बार जब मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया तब उनके खिलाफ किसी ने भी अविश्वास प्रकट नहीं किया था।