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    मांस से अलग हो गया नाखून.., दर्द दोनों को होगा, शिअद और भाजपा के संबंध में रहे कई आयाम

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sun, 27 Sep 2020 02:07 PM (IST)

    पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के नेता दोनों दलों के रिश्‍ते को मांस और नाखून जैसा बताते थे। दोनों का गठबंधन टूटने से मांस से नाखूून अलग हो गया। ...और पढ़ें

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    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पंजाब के पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल। (फाइल फोटो)

    चंडीगढ़, [इन्‍द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के नेता दोनाें दलों के संबंध को सियासी से अधिक मांस और नाखून जैसा बताते थे। लेकिन, दोनों दलों का गठबंधन टूटने से मांस से नाखून अलग हो गया है। इससे दोनों को दर्द होगा। यह पीड़ा सियासी और आपसी सद्भाव दोनों पहलुओं पर होगी। 24 साल पुराना यह रिश्‍ता टूटने से दोनाें दलों को पंजाब की राजनीति में चोट देगी।

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    भाजपा और शिअद का सियासी गठजोड़ राजग के गठन से पहले का है। दोनों दलों का गठबंधन 1997 में हुआ था। इसके बाद साल 1998 में लोकसभा चुनाव चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का गठन किया गया। राजग के गठन से पहले अटल बिहारी वाजपेयी (दिवंगत प्रधानमंत्री) विभिन्न पार्टियों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे तो कई पार्टियों ने भाजपा के साथ आने से मना कर दिया। उस समय पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पूरी तरह अटल बिहारी वाजपेयी के साथ डटे रहे।

    केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ पंजाब में पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल।

    1997 में विधानसभा चुनाव में हुआ शिअद और भाजपा गठबंधन, 1998 में पहली बार साथ लड़े लोकसभा चुनाव

    पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन 1997 में में ही हो गया था और दोनों दलों ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़कर सरकार बनाई। इसके बाद पहली बार दोनों दलों ने 1998 में एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ा। पंजाब में लोकसभा की छह सीटें जीतने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने वाजपेयी सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया। उस दौरान वाजपेयी सरकार बनाने में जरूर कामयाब हुए लेकिन यह सरकार मात्र 13 महीने ही चली। लेकिन शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जो रिश्ता बना, उसे प्रकाश सिंह बादल  नाखून और मांस का रिश्ता कहते रहे।

    पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल की एक फाइल फोटो।

    अकाली दल ने जीती थीं छह सीटें, केंद्र में वाजपेयी सरकार को दिया था बिना शर्त समर्थन

    अब गठबंधन के 24 वें साल में कृषि विधेयकों ने नाखून को मांस से अलग कर दिया है, जो दोनों दलों को दर्द जरूर देगा। शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का रिश्ता राजनीतिक नहीं था। यह रिश्ता उस समय बना जब पंजाब 15 साल के आतंकवाद के काले दौर से बाहर आया। पंजाब में हिंदू और सिखों के बीच बना हुआ सामाजिक ताना बाना बुरी तरह से टूट चुका था। दोनों पार्टियों के एकजुट होने से जहां हिंदू और सिखों के बीच की दूरियां समाप्त हुईं वहीं पंजाब में एक बार फि से सौहार्द का माहौल बना।

    प्रकाश सिंह बादल और बलराम जी दास टंडन। (फाइल फोटो)

    दोनों पार्टियों ने पहले भी 1978 में मिलकर सरकार बनाई थी। उसमें वामपंथी भी शामिल थे लेकिन शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच पहली सरकार 1997 में बनी। 1997 में शिरोमणि अकाली दल ने 75 सीटें और भाजपा ने 18 सीटें जीतकर मजबूत दावा खड़ा कर दिया। दोनों पार्टियों के बीच दोस्ती का मजबूत आधार थे प्रकाश सिंह बादल और भाजपा नेता बलराम जी दास टंडन।

    1998 में जब प्रकाश सिंह बादल ने अटल बिहारी वाजपेयी को समर्थन दिया और एनडीए का गठन हुुआ तो उसमें बादल भी संरक्षक की भूमिका रहे। 1999 में वाजपेयी सरकार मजबूती से उभरकर आए और 2004 तक उन्होंने अपनी सरकार चलाई। इधर, अकाली दल ने भाजपा के साथ मिलकर 2007-12 और 2012-17 में लगातार दो बार सरकार बनाई।

    कई बार हुआ मनमुटाव, लेकिन रिश्‍ते रहे कायम

    दोनों पार्टियों में अक्सर सरकार चलाने के समय कई फैसलों को लेकर मनमुटाव हुुआ, लेकिन रिश्‍ते कायम रहे। 2007 में पंजाब में उप मुख्यमंत्री बनाने को लेकर, शहरी क्षेत्रों की बिजली दरों में बढ़ोतरी, चुंगी समाप्त करने के मुद्दों पर दोनों दलों में मनमुटाव चलते रहे। परंतु प्रकाश सिंह बादल ने कभी इस गठबंधन को टूटने नहीं दिया। वह अक्सर कहा करते कि नाखून से मांस अलग नहीं हो सकता और कम से कम मेरे जीते जी तो यह नहीं हो सकता।

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