Updated: Thu, 31 Jul 2025 08:23 PM (IST)
हरियाणा में जल्द ही ज़मीन की रजिस्ट्री महंगी हो सकती है क्योंकि सरकार कलेक्टर रेट बढ़ाने का प्रस्ताव कर रही है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस फैसले का विरोध किया है जबकि सरकार का कहना है कि इससे आम जनता पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में शुक्रवार से नये कलेक्टर रेट लागू हो सकते हैं। इसका अंतिम फैसला मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में शुक्रवार को होने वाली राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया जाएगा।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के जिलों में चूंकि जमीन के रेट काफी महंगे हैं, इसलिए इन जिलों में कलेक्टर रेट बाकी जिलों की अपेक्षा अधिक बढ़ेंगे। कलेक्टर रेट बढ़ने की वजह से पूरे राज्य में जमीन की रजिस्ट्री महंगी हो जाएगी। पिछले साल 12 से 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी जमीन के कलेक्टर रेट में की गई थी, लेकिन इस बार पिछले साल की अपेक्षा अधिक कलेक्टर रेट बढ़ाने का प्रस्ताव है।
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कलेक्टर रेट संशोधित करने का प्रविधान यह है कि इन पर आपत्तियां और सुझाव मांगे जाते हैं, जिसके लिए एक माह का समय दिया जाता है, लेकिन अभी तक बढ़े हुए संशोधित रेट ही जारी नहीं हुए तो इन पर आपत्तियां व सुझाव मांगने की प्रक्रिया पूरी होगी अथवा नहीं, इस पर संदेह बना हुआ है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कलेक्टर रेट बढ़ाने संबंधी राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रस्ताव पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि बढ़े हुए रेट से जमीन का पंजीकरण महंगा हो जाएगा। हुड्डा ने दावा किया कि सरकार ने 10 से 145 प्रतिशत तक जमीन के कलेक्टर रेट बढ़ाने जा रही है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि कलेक्टर रेट बढ़ने से किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी। कांग्रेस के समय में लगातार कलेक्टर रेट में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन हमारी सरकार ने कई साल के बाद कलेक्टर रेट बढ़ाने का निर्णय लिया है। हमने कई चीजों को महंगाई के साथ लिंक किया है। इसका एक फार्मूला बनाया गया है।
बता दें कि अगर एक अगस्त से कलेक्टर रेट की नई दरें लागू होती हैं तो मकान, प्लाट, कामर्शियल व कृषि योग्य जमीन की रजिस्ट्री महंगी हो जाएगी। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में किसी जमीन की रजिस्ट्री में एक लाख रुपये की स्टांप ड्यूटी लगती है और वहां 20% कलेक्टर रेट बढ़ गए हैं, ऐसे में स्टांप ड्यूटी 1 लाख की बजाय 1.20 लाख रुपए लगेगी।
देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक एनसीआर में जमीन अधिक महंगी होने के कारण वहां सबसे अधिक रेट बढ़ने प्रस्तावित हैं। एनसीआर में हरियाणा के 14 जिले आते हैं, लेकिन इनमें से छह जिले ऐसे हैं, जहां जमीन बहुत ज्यादा महंगी है।
गुरुग्राम की अलग-अलग तहसीलों में अलग-अलग कलेक्टर रेट बढ़ने प्रस्तावित हैं। करनाल, पंचकूला, हिसार और सोनीपत में भी जमीन के कलेक्टर रेट ज्यादा बढ़ने की संभावना है। पिछले साल रोहतक, फरीदाबाद, पलवल, बहादुरगढ़, सोनीपत, करनाल और पानीपत में 20 प्रतिशत और गुरुग्राम, सोहना, फरीदाबाद, पटौदी और बल्लभगढ़ के कलेक्टर रेट में 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी की गई थी।
नये कलेक्टर रेट जारी होने की मंजूरी के बाद राज्य की तहसीलों में नई रजिस्ट्री के अप्वाइंटमेंट को फ्रीज कर दिया गया है। तीन अगस्त तक कोई भी नई रजिस्ट्री नहीं होगी। सिर्फ उन्हीं रजिस्ट्रियों को किया जाएगा, जिनका पहले से अप्वाइंटमेंट है। चार अगस्त से नई रजिस्ट्रियां की जाएंगी, लेकिन वह भी तब संभव है, यदि जिला उपायुक्तों ने समय से संशोधित रेट लिस्ट जारी कर दी।
अगर इसे बिना लोगों के सुझाव और आपत्तियों के लागू कर दिया गया तो इसे हाई कोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है। राज्य की वित्तायुक्त सुमिता मिश्रा का कहना है कि नये कलेक्टर रेट लागू करने से पहले तय प्रक्रिया अपनानी होगी। आमतौर पर पांच से 10 प्रतिशत होती रही बढ़ोतरी - भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कलेक्टर रेट में हुई बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग उठाई है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने एक बार फिर जमीनों के रेट आसमान पर पहुंचाने वाला फैसला लिया है। सरकार द्वारा सीधे 10 से लेकर 145 प्रतिशत यानी ढाई गुणा तक बढ़ोतरी कलेक्टर रेट में की गई है। उदाहरण के तौर पर फतेहाबाद के एक इलाके में जमीन का रेट 15000 से बढ़कर सीधे 35000 रुपए प्रति वर्ग गज हो गया है।
हुड्डा ने कहा कि पिछले साल दिसंबर 2024 में ही सरकार ने इस रेट में भारी बढ़ोतरी की थी। तब भी सरकार ने कई जगह तो कलेक्टर रेट में 250% तक बढ़ोतरी कर डाली थी। आमतौर पर यह बढ़ोतरी 5 से 10 प्रतिशत ही होती थी।
अब भाजपा सरकार सरकार हर गली, मोहल्ले और गांव के हिसाब से अलग-अलग दरों में बढ़ोतरी कर रही है। हुड्डा ने कहा कि आठ से नौ महीने के भीतर ही दूसरी बार ऐसा फैसला लिया जाना बताता है कि सरकार को गरीब व मध्यम वर्ग की परेशानियों का कोई ख्याल नहीं है।
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