पूर्व सैनिक की विधवा को 57 साल बाद न्याय, अब मिलेगी दो-दो पेंशन
चंडीगढ़ एएफटी ने 57 साल बाद पूर्व सैनिक की विधवा को पेंशन देने का आदेश दिया। लांस नायक उमरावत सिंह की पत्नी को 1968 से अमान्यता पेंशन और 2011 से पारिवारिक पेंशन मिलेगी। उमरावत सिंह 1965 के भारत-पाक युद्ध में शामिल थे बाद में मानसिक तनाव के कारण सेवा से हटा दिए गए।

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। 57 साल बाद एक पूर्व सैनिक की विधवा को आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (एएफटी) से न्याय मिला है। एएफटी की चंडीगढ़ बेंच ने आदेश दिया है कि दिवंगत सैनिक लांस नायक उमरावत सिंह की पत्नी चंदर पाती को 1968 से अमान्यता (इनवैलिड) पेंशन और 2011 से पारिवारिक पेंशन का भुगतान किया जाए। सरकार को तीन माह के भीतर बकाया राशि जारी करने के निर्देश दिए गए हैं।
लांस नायक उमरावत सिंह ने 12 सितंबर 1961 को भारतीय सेना में चिकित्सकीय रूप से फिट पाए जाने के बाद भर्ती ली थी। उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में बहादुरी से हिस्सा लिया और उन्हें ‘समर सेवा स्टार-65’ से सम्मानित किया गया। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लंबे समय तक तैनाती से उन्हें मानसिक तनाव हुआ और बाद में उन्हें ‘स्किजोफ्रेनिक रिएक्शन’ का निदान हुआ।
इसी कारण 17 दिसंबर 1968 को सात वर्ष तीन माह की सेवा के बाद उन्हें चिकित्सकीय आधार पर सेवा से हटा दिया गया। उमरावत सिंह ने 1972 में डिफेंस सिक्योरिटी कोर में दोबारा जॉइन किया, लेकिन कुछ ही महीनों में वहां से भी सेवा समाप्त हो गई। 31 जनवरी 2011 को उनका निधन हो गया।
पत्नी ने एएफटी में दायर की याचिका
पति के निधन के बाद चंदर पाती ने 2018 में एएफटी में याचिका दायर की। उन्होंने जीवनभर की अमान्यता/विकलांगता पेंशन और फरवरी 2011 से पारिवारिक पेंशन की मांग की। याचिका के विरोध में केंद्र ने कहा कि उमरावत सिंह ने 15 वर्ष की अनिवार्य सेवा पूरी नहीं की, जो आर्मी पेंशन रेगुलेशन 1961 के तहत जरूरी है।
साथ ही उनकी विकलांगता को 'न तो सैन्य सेवा से जुड़ा और न ही उससे बढ़ा हुआ' बताया गया था और यह 20% से कम आंकी गई थी। सरकार ने यह भी कहा कि इतने पुराने रिकॉर्ड तय अवधि पूरी होने के बाद नष्ट कर दिए गए हैं।
ट्रिब्यूनल का फैसला
न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर मित्तल और प्रशासनिक सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह की बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि उमरावत सिंह 18 दिसंबर 1968 से लेकर 31 जनवरी 2011 तक अमान्यता पेंशन के हकदार थे। इसलिए उनकी पत्नी एक पारिवारिक पेंशन पाने की हकदार है। इस फैसले से दशकों बाद सैनिक की विधवा को न्याय मिला है।
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