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    नशे के आरोपियों को बरी रखने का फैसला हाई कोर्ट ने रखा बरकरार, जज साहब ने दिया यह तर्क

    Updated: Thu, 27 Mar 2025 03:56 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नशीले पदार्थों से जुड़े एक मामले में तीन आरोपितों को बरी करने के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को मिली गुप्त सूचना को लिखित में दर्ज नहीं किया गया था जो कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 41(2) और धारा 42 के तहत आवश्यक है। राज्य सरकार ने विशेष अदालत नवांशहर के 2003 के फैसले को चुनौती दी थी।

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    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने नशीले पदार्थों से जुड़े एक मामले में आरोपितों की बरी किए जाने के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को मिली गुप्त सूचना को लिखित में दर्ज नहीं किया गया था, जो कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 41(2) और धारा 42 के तहत आवश्यक है।

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    विशेष अदालत के फैसले को दी थी चुनौती

    जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की पीठ ने कहा कि यदि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 के तहत कोई गुप्त सूचना मिलती है, तो किसी निजी वाहन की तलाशी लेने के लिए धारा 41(1) और 42(2) का पालन आवश्यक होता है। यानी सूचना को लिखित में लेना और 72 घंटे के भीतर अपने वरिष्ठ अधिकारी को भेजना अनिवार्य है।

    हालांकि अगर तलाशी किसी सार्वजनिक वाहन की ली जाती है तो यह प्रक्रिया आवश्यक नहीं होती। इस मामले में राज्य सरकार ने विशेष अदालत नवांशहर के 2003 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें तीन आरोपितों को बरी कर दिया गया था।

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    ट्रक से 30 बैग पोस्ता भूसी बरामद

    एफआईआर के अनुसार, एक ट्रक से 30 बैग पोस्ता भूसी बरामद की गई थी, जिसमें से प्रत्येक बैग से 250-250 ग्राम नमूने लिए गए थे। विशेष अदालत ने आरोपितों को इस आधार पर बरी कर दिया कि गुप्त सूचना को न तो लिखित में लिया गया था और न ही वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा गया था।

    राज्य सरकार का तर्क था कि डीएसपी बलबीर सिंह (जो कि एक राजपत्रित अधिकारी थे) मौके पर मौजूद थे, इसलिए धारा 42(2) के तहत सूचना को वरिष्ठ अधिकारियों को भेजने की जरूरत नहीं थी। हालांकि हाई कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि यदि कोई अधिकारी जिसे तलाशी लेने का अधिकार प्राप्त है, तो उसे गुप्त सूचना को लिखित में लेना और 72 घंटे के भीतर वरिष्ठ अधिकारी को भेजना आवश्यक है।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 42 और 43 अलग-अलग परिस्थितियों में लागू होती हैं। यदि कोई तलाशी सार्वजनिक स्थान पर ली जा रही हो तो धारा 43 लागू होगी जिसमें गुप्त सूचना को लिखित में लेने और वरिष्ठ अधिकारी को भेजने की जरूरत नहीं होती। लेकिन यदि कोई निजी वाहन सार्वजनिक स्थान पर हो तो धारा 42 लागू होगी और सूचना को लिखित में लेना अनिवार्य होगा। इस मामले में चूंकि पुलिस द्वारा मिली गुप्त सूचना को लिखित में नहीं लिया गया था, इसलिए हाई कोर्ट ने आरोपितों की बरी किए जाने के फैसले को सही मानते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी।

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