Punjab: ‘संविधान स्वतंत्रता का अधिकार देता है, पर यह अंतिम नहीं’; अमृतपाल के सहयोगी की याचिका को खारिज करते हुए HC ने की टिप्पणी
हाई कोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत ने अलगाववादी अमृतपाल सिंह के सहयोगी और फाइनेंसर सरबजीत उर्फ दलजीत सिंह कलसी की याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान चाहे प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार देता है लेकिन यह अधिकार अंतिम नहीं है। किसी की स्वतंत्रता का अधिकार अन्य लोगों की स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकता।

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। भारत का संविधान चाहे प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार अंतिम नहीं है। किसी की स्वतंत्रता का अधिकार अन्य लोगों की स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकता। हाई कोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत ने अलगाववादी अमृतपाल सिंह के सहयोगी और फाइनेंसर सरबजीत उर्फ दलजीत सिंह कलसी की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
मामले में नहीं हुई गिरफ्तारी
याचिका में कलसी ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत निवारक हिरासत में रखने के बजाय अजनाला थाने पर हुए हमले में दर्ज एफआइआर में गिरफ्तारी मांग की थी। कलसी का कहना था कि अजनाला थाने पर हुए हमले को लेकर दर्ज एफआइआर में उसका नाम कॉलम दो में है।
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इस मामले में पुलिस ने उसे अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है। उसे अब भी एनएसए लगाकर डिब्रूगढ़ जेल में रखा हुआ है, इसलिए अजनाला थाने पर हुए हमले के मामले में पुलिस चाहे तो असम जाकर या आनलाइन उससे पूछताछ करे।
राज्य को जांच पूरी करने के दिए जाने चाहिए निर्देश
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस निर्णय में हाई कोर्ट ने कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया की जगह पर कांस्टीट्यूशन ऑफ भारत लिखा है। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को त्वरित सुनवाई का अधिकार है, जिसमें जांच सहित मुकदमे के सभी चरणों में त्वरित कार्रवाई शामिल है। राज्य को एफआइआर मामले में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने और तत्परता के साथ जांच पूरी करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
इससे इस पहलू पर निर्णय लिया जा सकेगा कि याचिकाकर्ता पर उपरोक्त एफआइआर में उल्लिखित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए या नहीं। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि कलसी को राज्य सरकार ने अगर एनएसए लगाकर पंजाब से दूर असम में भेजा हुआ है तो इसके पीछे कई कारण हैं।
केस में कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती
एनएसए लगाने के खिलाफ अभी कलसी सहित अन्य की याचिकाएं हाई कोर्ट में लंबित हैं, इसलिए इस पर इस केस में कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति को निवारक हिरासत में रखा गया है तो उसे यह दावा करने का भी अधिकार नहीं है कि उसके खिलाफ आपराधिक मामले में जल्द कार्रवाई की जाए।
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इस कोर्ट की सुविचारित राय में किसी भी कोर्ट के लिए किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी का निर्देश देना उचित नहीं होगा, जब राज्य या पुलिस स्वयं किसी अपराध में ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का इरादा नहीं रखती है। कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया कि एफआइआर में जांच शुरू न करने से याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई और जांच के अधिकार का उल्लंघन होता है।

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