ड्यूटी पर नशे में पाए गए चंडीगढ़ पुलिस के दो कर्मचारियों की सजा बरकरार, हाईकोर्ट से भी राहत नहीं
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 22 साल पुराने मामले में पीसीआर ड्यूटी पर नशे में पाए गए चंडीगढ़ पुलिस के दो कर्मियों, हेड काॅन्स्टेबल राजिंदर सिंह और का ...और पढ़ें

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मामले में किसी तरह की रियायत या हस्तक्षेप का कोई उचित आधार नहीं बनता।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पीसीआर ड्यूटी के दौरान नशे में पाए गए चंडीगढ़ पुलिस के दो कर्मचारियों की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मामले में किसी तरह की रियायत या हस्तक्षेप का कोई उचित आधार नहीं बनता।
जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह ने हेड काॅन्स्टेबल राजिंदर सिंह और काॅन्स्टेबल हरवंत सिंह द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और यह खारिज किए जाने योग्य है। मामला जनवरी 2003 का है, जब दोनों पुलिसकर्मी पीजीआइएमईआर के पास पीसीआर ड्यूटी पर तैनात थे।
30 जनवरी 2003 की रात तत्कालीन डिप्टी सुपरिंटेंडेंट आफ पुलिस (डीएसपी) ओम प्रकाश को वाॅयरलेस संदेश मिला कि पीसीआर में तैनात पुलिसकर्मी शराब के नशे में हैं। इसके बाद डीएसपी ने मौके पर पहुंचकर जांच की, जहां दोनों नशे की हालत में थे।
प्रोसिक्यूशन के अनुसार, पुलिस वाहन से शराब की गंध वाला एक गिलास और 180 मिलीलीटर शराब की बोतल भी बरामद की गई थी। इसके आधार पर सेक्टर-11 थाने में आबकारी अधिनियम की धारा 68 के तहत एफआइआर दर्ज की गई।
मामले की सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने 14 जनवरी 2006 को दोनों को दोषी ठहराया, हालांकि उन्हें अच्छे आचरण की शर्त पर प्रोबेशन पर रिहा कर दिया गया। इसके खिलाफ दायर अपील को सत्र न्यायालय ने फरवरी 2009 में खारिज कर दिया था। इसके बाद उसी वर्ष आरोपितों ने हाईकोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि अभियोजन की कहानी विरोधाभासी है, कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है और अधिकतम विभागीय कार्रवाई ही की जा सकती थी। वहीं, यूटी प्रशासन की ओर से कहा गया कि आरोपितों को पहले ही प्रोबेशन का लाभ दिया जा चुका है और सजा न्यूनतम स्तर की है।
स्वतंत्र गवाह न होने की दलील पर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कानून में ऐसा कोई नियम नहीं है कि पुलिसकर्मियों की गवाही को संदेह की दृष्टि से ही देखा जाए। यदि उनकी गवाही विश्वसनीय है, तो उस पर भरोसा किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किया गया साक्ष्य संगत, सुसंगत और भरोसा पैदा करने वाला है। इसी आधार पर कोर्ट ने दोनों पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी।

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