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    चंडीगढ़ नगर निगम की हालत खस्ता, कर्मचारियों को नहीं दे पा रहे सैलरी, ऑडिट रिपोर्ट में हुआ खुलासा

    Updated: Sun, 16 Mar 2025 11:49 AM (IST)

    चंडीगढ़ नगर निगम की हालत खस्ता हो गई है। निगम कर्मचारियों को वेतन देने में भी असमर्थ है। ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पिछले 28 सालों में ग्राम पंचायत की अधिग्रहित जमीन का मुआवजा नहीं वसूला गया जिससे करीब 31 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। साल1996 से 2018 के बीच यूटी प्रशासन ने पहले एक फिर 9 और उसके बाद 13 गांव नगर निगम को हस्तांतरित किए।

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    चंडीगढ़ नगर निगम कार्यालय का फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। इस समय नगर निगम पाई-पाई को मोहताज हो गया है जिस कारण शहर का विकास तो रुक ही गया है निगम को अपने कर्मचारियों को वेतन देने में भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जबकि दस साल पहले तक नगर निगम के पास 500 करोड़ रुपये के एफडी हुआ करती थी। लेकिन इस समय यह हाल है कि नगर निगम खुद लोन लेने की सोच रही है।

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    इस समय नगर निगम जिस हालात में पहुंच गया है इसके लिए निगम खुद भी जिम्मेदार है क्योंकि नगर निगम अपनी रिकवरी भी नहीं कर पा रहा है। नगर निगम की बड़ी लापरवाही सामने आई है। पिछले 28 साल में ग्राम पंचायत की अधिग्रहित जमीन का मुआवजा नहीं वसूला गया है जिससे करीब 31 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। 

    ऑडिट रिपोर्ट में हुआ अनियमितताओं का खुलासा

    इस मामले को लेकर निदेशक महालेखाकार (केंद्रीय) कार्यालय की ऑडिट रिपोर्ट में अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। ऑडिट विभाग ने नगर-निगम से इतने सालों तक मुआवजा न लेने के कारणों की रिपोर्ट मांगी है।रिपोर्ट के अनुसार साल 1996 से 2018 के बीच यूटी प्रशासन ने पहले एक, फिर 9 और उसके बाद 13 गांव नगर निगम को हस्तांतरित किए।

    इसके बाद नगर निगम को इन गांवों का विकास करने और राजस्व जुटाने की जिम्मेदारी दी गई। नगर निगम को संपत्ति कर वसूलने,भवन योजनाओं को मंजूरी देने और अधिग्रहित भूमि का मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार था। लेकिन 28 साल बीत जाने के बावजूद नगर निगम ने मुआवजा वसूलने की कोई प्रक्रिया ही शुरू नहीं की। मलोया गांव की अधिग्रहित जमीन का मुआवजा करीब 31.79 करोड़ रुपये का बनता है।

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    7.05 करोड़ की राशि साल 2004 में पंजाब नेशनल बैंक में जमा कराई गई थी जिस पर 20 वर्षों में ब्याज के साथ यह रकम 20 करोड़ से अधिक हो गई होगी।

    शेष 24 करोड़ की राशि करीब तीन साल पहले अदालत में प्रशासन की ओर से जमा कर दी गई है लेकिन नगर निगम इतने साल बीत जाने के बावजूद इसे लेने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार मुआवजे की राशि पर पिछले 20 वर्षों में काफी ब्याज जुड़ चुका होगा लेकिन नगर निगम ने इसे वसूलने में कोई रुचि नहीं दिखाई। अगर नगर निगम समय पर कार्रवाई करता तो यह राशि कई गुना बढ़ सकती थी।

    नगर निगम और भूमि अधिग्रहण अधिकारी के बीच पत्राचार साल 2023 में शुरू हुआ लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। नगर निगम के रिकार्ड में ग्राम पंचायत भूमि के अधिग्रहण की तिथि और सीमांकन से जुड़ी जानकारी भी दर्ज नहीं है। यह ऑडिट रिपोर्ट आरके गर्ग ने सूचना के अधिकार के तहत ली है।

    सप्लाई और बिलिंग में अंतर

    शहर से पानी की सप्लाई में नगर निगम को काफी घाटा है। हर साल सप्लाई से ही नगर निगम को 100 करोड़ रुपये का घाटा है। नगर निगम को कजौली वॉटर वर्क्स से जो पानी की सप्लाई आ रही है उसमे और उसकी लोगों से मिलने वाली बिलिंग में काफी अंतर है।

    पिछले दो साल से नगर निगम शहर की पार्किंग भी चलाने के लिए अलॉट नहीं कर पाया है जिससे करीब 15 करोड़ रुपये का राजस्व का नुकसान हुआ है।

    ऑडिट विभाग ने नगर निगम को सप्लाई होने वाले पानी और उसकी बिलिंग में काफी अंतर पाया है जिसके कारण नगर निगम को वित्तीय नकसान हुआ। ऑडिट रिपोर्ट में कुल 33 करोड़ 34 लाख 55 हज़ार किलोलीटर पानी की बिलिंग कम पाई गई है। इस समय नगर निगम ने 100 करोड़ रुपये से ज्यादा प्रॉपर्टी टैक्स डिफॉल्टर्स से लेने हैं जिनमें अहम बकाया सरकारी विभागों पर है।

    आरटीआइ एक्टविस्ट आरके गर्ग ने कहा कि कितनी हैरानी की बात है कि शहरवासियों से हर तरह के टैक्स लेने के बावजूद नगर निगम की हालत पतली है। असल में नगर निगम में योजना की भारी कमी है।

    इस समय शहर में 200 करोड़ से ज्यादा के पेवर ब्लॉक लगे हुए हैं जिनकी कोई जरूरत नहीं थी इस तरह की पिछले सालों में कई फिजूलखर्ची की गई है।

    नगर निगम सरकारी विभागों से अपना करोड़ों रुपये का बकाया भी नहीं ले पाया है जिसका खुलासा ऑडिट विभाग में हुआ है। मुआवजे की भूमि अधिग्रहण करने के बाद प्रशासन ने नगर-निगम को राशि का भुगतान न करके कोर्ट में क्यों किया और नगर निगम ने इतने सालों से मुआवजा राशि क्यों नहीं मांगी इसकी जांच होनी चाहिए।

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