'जाली दस्तावेजों के आधार पर नहीं चलाया जा सकता केस...', हाईकोर्ट ने MBBS दाखिले में ठगी का 20 साल पुराना मामला किया रद
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एमबीबीएस में दाखिले के नाम पर ठगी के दो दशक पुराने मामले को रद कर दिया। अदालत ने कहा कि यदि कोई तीसरा व्यक्ति दस्तावेजों का ...और पढ़ें

एमबीबीएस दाखिले के नाम पर ठगी, 20 साल पुरानी आपराधिक शिकायत रद
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। एमबीबीएस में दाखिले के नाम पर कथित ठगी और आपराधिक विश्वासघात से जुड़े लगभग दो दशक पुराने आपराधिक मामले को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने रद कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी तीसरे व्यक्ति ने किसी संस्था या व्यक्ति के नाम व दस्तावेजों का दुरुपयोग कर शिकायतकर्ता से धोखाधड़ी की हो, तो मात्र इस आधार पर संबंधित संस्था या व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती।
मामला बटाला की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की अदालत में लंबित एक शिकायत से जुड़ा था, जिसमें आईपीसी की धाराएं 406, 420 और 120-बी लगाई गई थीं। शिकायतकर्ता का आरोप था कि सचिन शाह ने खुद को विश्वविद्यालय का अधिकृत प्रतिनिधि बताकर उसकी भतीजी के लिए प्रबंधन कोटे में एमबीबीएस सीट दिलाने के नाम पर 7.75 लाख रुपये लिए।
बाद में जब दाखिला नहीं हुआ और रकम वापस नहीं मिली, तो न केवल सचिन शाह बल्कि विश्वविद्यालय और उसके पदाधिकारियों, जिनमें एक पूर्व राज्यपाल भी शामिल थे, के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई। मजिस्ट्रेट ने 30 सितंबर 2015 को समन आदेश जारी किया, जिसे वर्तमान याचिका में चुनौती दी गई।
इसी बीच, शिकायतकर्ता ने धनवसूली के लिए सिविल मुकदमा भी दायर किया। सिविल कोर्ट ने पूर्ण सुनवाई के बाद स्पष्ट रूप से पाया कि विश्वविद्यालय या याचिकाकर्ताओं और सचिन शाह के बीच कोई संबंध नहीं था।
शिकायतकर्ता यह भी सिद्ध नहीं कर सका कि उसकी कभी याचिकाकर्ताओं से कोई बातचीत हुई या उनकी ओर से कोई आश्वासन दिया गया। अदालत ने यह भी माना कि कथित आवंटन व पुष्टि पत्र जाली थे और विश्वविद्यालय द्वारा जारी नहीं किए गए थे।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता के साथ हुई ठगी, कथित तौर पर सचिन शाह द्वारा की गई गलत बयानी का परिणाम थी। यदि शिकायतकर्ता को आर्थिक नुकसान हुआ है, तो मात्र यह तथ्य ही याचिकाकर्ताओं को आपराधिक मुकदमे में घसीटने का कानूनी आधार नहीं बन सकता।
जब तक आरोपी के विरुद्ध उसके द्वारा किए गए धोखे या प्रलोभन का कोई ठोस प्रमाण न हो, तब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत अपराध नहीं बनता। अदालत ने दो टूक कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए उसके सीधे तौर पर अपराध में शामिल होने का सामग्रीगत साक्ष्य होना आवश्यक है।

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