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HC ने 18 से कम उम्र में शादी को बताया वैध, जानें पंजाब में 17 साल की मुस्लिम लड़की की शादी का रोचक मामला

पंजाब में 17 साल की मुस्लिम ल़ड़की ने 36 साल के शख्‍स से निकाह कर ली। इससे परिवार नाराज हो गया और लड़की के कम उम्र का हवाला देकर इसे गलत करार दिया। इसके बाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत शादी को सही करार दिया।

By Sunil kumar jhaEdited By: Published: Wed, 10 Feb 2021 06:12 AM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2021 07:07 AM (IST)
HC ने 18 से कम उम्र में शादी को बताया वैध, जानें पंजाब में 17 साल की मुस्लिम लड़की की शादी का रोचक मामला
मुस्लिम लड़की की शादी पर हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, जेएनएन। पंजाब में 17 साल की एक मुस्लिम लड़की ने 36 साल के शख्‍स से मुस्लिम रीति से शादी कर ली। परिवार के लोगों इससे नाराज हो गए और इस पर एतराज जताया। इसके बाद नवदंपती सुरक्षा के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने मुस्लिम विवाह साहित्‍य और विभिन्न अदालतों के निर्णयों को आधार बनाकर साफ कर दिया है कि 18 साल से कम उम्र में भी शादी कर सकती है। वह मुस्लिम पर्सनल लाॅ के तहत किसी से भी शादी करने को स्वतंत्र है। मुस्लिम पर्सनल लाॅ तहत मुस्लिम लड़की 15 वर्ष की उम्र में शादी कर सकती है।

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हाई कोर्ट ने कहा- युवा मुस्लिम लड़की कर सकती है 18 वर्ष से कम उम्र में शादी

हाई कोर्ट की जस्टिस अलका सरीन ने यह फैसला मोहाली के एक मुस्लिम प्रेमी जोड़े की सुरक्षा की मांग संबंधी याचिका का निपटारा करते हुए सुनाया। दोनों ने 21 जनवरी को मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार शादी की। दोनों की यह पहली शादी है। उनके परिवार व रिश्तेदार इस शादी से खुश नहीं हैं और उनको उनसे जीवन व स्वतंत्रता का खतरा है। इसी बाबत सुरक्षा को लेकर उन्होने मोहाली के एसएसपी को 21 जनवरी को ही एक मांग पत्र देकर सुरक्षा देने की मांग की थी, लेकिन एसएसपी ने कोई कार्रवाई नहीं की। इससे उनको हाई कोर्ट की शरण में आना पड़ा। हाई कोर्ट ने कहा कि युवा मुस्लिम लड़की 18 वर्ष से कम उम्र में शादी कर सकती है।

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मुस्लिम विवाह साहित्य और विभिन्न अदालतों के निर्णयों को आधार बना हाई कोर्ट ने दी व्यवस्था

याची पक्ष ने तर्क दिया था कि मुस्लिम कानून में युवावस्था ही विवाह का आधार है। उनके धर्म के अनुसार 15 वर्ष की उम्र को युवावस्था माना जाता है और लड़की या लड़का शादी के लिए योग्य होते हैं। हाई कोर्ट ने सर डी. फरदुनजी मुल्ला की पुस्तक प्रिंसिपल्स आफ मोहम्मदन ला के लेख 195 का हवाला देते हुए कहा कि एक मुस्लिम लड़का या मुस्लिम लड़की, जिसे यौवन प्राप्त हो चुका है, वह किसी से शादी करने के लिए स्वतंत्र है, जिसे वह पसंद करते हैं और अभिभावक को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।

एक मुस्लिम प्रेमी जोड़े की सुरक्षा की मांग का निपटारा करते हुए सुनाया फैसला

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता विवाह योग्य उम्र के हैं, जैसा कि मुस्लिम पर्सनल ला द्वारा तय किया गया है। ऐसे में उनको किसी की सहमति की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवार के सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया है, लेकिन संविधान ने उनको मौलिक अधिकार भी दिया है, जिससे वे वंचित नहीं हो सकते। इस लिए एसएसपी मोहाली याचिकाकर्ताओं के मांगपत्र पर उचित कार्रवाई कर नियमानुसार उनके जीवन व स्वतंत्रता की रक्षा करें।

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