बंटवारे में बंट गई हरभजन, न 'बजरंगी भाईजान' मिला और न हुआ 'गदर'
अमृतसर की हरभजन की कहानी आखें गीली कर देती है। बंटवारे के समय लाहौर से आ रही थीं तो दंगे में परिजन मारे गए। उन्हें वहीं रहना पड़ा। यहां लौटीं तो जिंदगी ने फिर नया खेल दिखाया।
अमृतसर, [नितिन धीमान]। हरभजन कौर की कहानी बेहद मार्मिक है। भारत विभाजन में वह भी बंट गईं और इसका दर्द वह आज भी झेल रही हैं। उनकी कहानी 'बजरंगी भाईजान' और 'गदर' फिल्म से भी ज्यादा विचलित करने वाली है। अमृतसर की हरभजन को न ही किसी बजरंगी भाईजान का सहारा मिला और न ही उनके लिए गदर हुआ। हां, उनकी जिंदगी में ऐसा बवंडर उठा, जो काफी जद्दोजहद के बाद भी थमा नहीं। देश विभाजन के दौरान परिवार भारत आ रहा था तो परिजन दंगे की भेंट चढ़ गए और वह पाकिस्तान में रह गईं। फिर वहां शादी हुई और बच्चे हुए। फिर बच्चे छूट गए और अमृतसर लौटी तो जिंदगी के मायने ही बदल गए।
अमृतसर के राजासांसी क्षेत्र में रहने वाली हरभजन कौर 1946 में शादी कर लाहौर में बस गई थी। 1947 में देश विभाजन के दौरान हरभजन कौर व उनके ससुराली निकल रहे थे। रास्ते में ससुराली दंगाइयों की भेंट चढ़ गए। बदहवास सी भाग रही हरभजन कौर को कराची के रहने वाले अफजल खान नामक शख्स ने बचा लिया। अफजल ने उन्हें भारत भेजने की तमाम कोशिशें कीं, पर सफलता नहीं मिली।
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इस विकट परिस्थिति में हरभजन कौर का धर्म परिवर्तन करवाकर अफजल ने उनसे निकाह कर लिया। निकाह के बाद हरभजन कौर को शहनाज बेगम का नाम मिला। वक्त का पहिया घूमता रहा और हरभजन कौर छह बच्चों की मां बनी। फिर वह दिन आया जब बच्चों के सहारे जिंदगी का ताना-बाना बुन रही हरभजन कौर को भारत आने का अवसर मिला।
वर्ष 1962 में भारत-पाक की सरल वीजा नीति के कारण हरभजन अपने पैतृक गांव राजासांसी (अमृतसर) पहुंची। बेटी को सामने पाकर मां-बाप तड़प उठे। इसके बाद उन्होंने हरभजन कौर को पाकिस्तान नहीं जाने दिया। हालांकि, अपनों के बीच आकर हरभजन काफी खुश थी, पर पाकिस्तान में छह बच्चों की याद उन्हें हमेशा सताती रहती। इसी बीच खबर आई कि पाकिस्तान में छह बच्चों में से एक की मौत हो गई है। इस खबर ने हरभजन को हिला कर रख दिया।
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बेटी की अवस्था को देखकर परिवार वालों ने उसका विवाह अमृतसर में गुरबचन सिंह नामक व्यक्ति से करवा दिया। परिस्थितियों के आगे न चाहते हुए भी हरभजन कौर ने घुटने टेक दिए। गुरबचन सिंह का एक बेटा रोमी था। रोमी बड़ा हुआ तो हरभजन कौर ने उसे अपनी सारी दास्तां सुनाई। मां की दर्द भरी कहानी सुन रोमी ने उनको पाकिस्तान में अपने बच्चों के मिलाने का प्रण किया।
वर्ष 1989 में रोमी यूएसए चला गया। 2007 में पति गुरबचन के निधन के बाद हरभजन भी बेटे के पास चली गई। उसके बाद मां को पाकिस्तान में बच्चों से मिलाने के लिए रोमी ने पाकिस्तान के एक उर्दू समाचार पत्र में विज्ञापन दिया। यह विज्ञापन हरभजन की बड़ी बेटी खुर्शीद ने देखा तो उसने रोमी से संपर्क साधा। इसके बाद खुर्शीद कनाडा पहुंची। खुर्शीद को देखकर 86 वर्षीय हरभजन कौर फफक उठी।
कनाडा की राष्ट्रीयता होने के कारण हरभजन को पाकिस्तान का वीजा आसानी से मिल गया। उसके बाद 7 फरवरी 2017 को हरभजन कौर कराची पहुंची। कराची में हरभजन कौर के पांच बच्चों का एक बड़ा कुनबा उनसे मिला। 51 साल बाद 86 वर्षीय हरभजन कौर की आस पूरी हुई। हरभजन कौर के बच्चों की शादी हो चुकी है और वे दादा-दादी भी बन चुके हैं। परिवार में कुल 42 पोतों-पोतियां, दोहतों-दोहतियों व पड़पोते-पड़पोतियों को देखकर हरभजन कौर रोते हुए बच्चों से लिपट गई।
9 अप्रैल तक का वीजा है
हरभजन कौर के परिवार को नजदीक से जानने वाले इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ बताते हैं कि वह बटवारे में बंट गई। इस मां ने हर पल अपने पाकिस्तानी बच्चों के लिए गुजारा। 51 वर्ष बाद हरभजन को कराची में रहने वाले अपने बच्चों से मिलना नसीब हुआ। फिलहाल हरभजन के पास 9 अप्रैल तक का ही वीजा है। इसके बाद उसे पाकिस्तान से लौटना होगा।