रास्ते में लाशें व हड्डियां, फल-पानी पर महीनों जिंदा; पनामा के रास्ते अमेरिका से डिपोर्ट हुए जुगराज की दर्दनाक कहानी
अमेरिका से एक बार फिर भारतीयों को डिपोर्ट कर भारत भेजा गया है। इस बार उन्हें पहले पनामा डिपोर्ट किया गया जहां से एक संस्था के माध्यम से उन्हें भारत भेजा गया। जानिए कैसे जुगराज सिंह ने जमीन बेचकर और कर्ज उठाकर 40 लाख रुपए खर्च कर अमेरिका जाने का सपना देखा था लेकिन यह सपना कैसे चकनाचूर हो गया।

जागरण संवाददाता, गुरदासपुर। अमेरिका से फिर भारतीयों को डिपोर्ट कर उनको देश भेजा गया है। इस बार इन्हें पहले पनामा डिपोर्ट किया गया, जहां से एक संस्था के माध्यम से इन्हें भारत भेजा गया। अमेरिका से डिपोर्ट होकर पहुंचे युवकों में कस्बा धारीवाल के गांव चौधरपुर का रहने वाला जुगराज सिंह भी शामिल है।
उसने बताया कि वह जमीन बेचकर और कर्ज उठाकर 40 लाख रुपए खर्च कर अमेरिका गया था, लेकिन उसे क्या पता था कि परिवार के अच्छे भविष्य के लिए देखे गए सपने पूरी तरह से बिखर जाएंगे।
उन्होंने बताया कि एजेंट ने उसे कानूनी ढंग से विदेश भेजने का विश्वास दिलाया था, लेकिन बाद में डंकी के रास्ते अमेरिका तक पहुंचाया। जुगराज ने बताया कि वह अमेरिका जाने के लिए 28 जुलाई को घर से निकला था। यहां से वह सूरिनाम पहुंचा, जहां पर उसे दस दिन के लिए रखा गया।
एजेंट ने उसे कहा था कि यहां पर उसके बायोमीट्रिक होंगे और विमान से आगे भेजा जाएगा, लेकिन वहां पर डोंकरे ने पासपोर्ट व अन्य कागजात ले लिए। उसके बाद शिप के जरिये उसे पेरू, कोलंबिया के रास्ते पनामा ले जाया गया।
अमेरिका पहुंचते ही कर लिया गिरफ्तार
पनामा के जंगलों के सफर के बारे में उसने बताया कि रास्ते में जगह-जगह लाशें और हड्डियों के ढेर लगे हुए थे। वहां से मेक्सिको के रास्ते काफी मशक्कत के बाद उसने 7 फरवरी की रात करीब 11 बजे एरिजोना अमेरिका का बार्डर क्रॉस किया।
वहां पर कुछ ही समय के बाद बॉर्डर पेट्रोलिंग ने उसे पकड़ लिया। यहां से 8 फरवरी को उसे चौकी ले जाया गया, जहां पर उससे कुछ कागजात पर साइन कराए गए।
उसके बाद उसे अमेरिकी कैंप में भेज दिया गया। उसने बताया कि कैंप में और भी कई भारतीय थे। वहां पर उन्हें खाने के लिए कुछ फल और पानी दिया जाता था। कुछ दिन वहां रखने के बाद उन्हें 14 फरवरी को पनामा डिपोर्ट कर दिया गया। अमेरिका से सैन्य विमान में उन्हें बेड़ियों में जकड़ कर पनामा ले जाया गया।

हर समय सैनिक रहते थे साथ
जुगराज ने बताया कि पनामा पहुंचते ही सेना उन्हें वहां के एक होटल में ले गई। वहां पर करीब 70 और भी लोग मौजूद थे। उसने बताया कि होटल को पूरी तरह से सैन्य छावनी में तब्दील किया गया था। कमरे से बाहर निकलते समय भी सैनिक उनके साथ रहते थे। इस दौरान उन्हें किसी से बात नहीं करने दी जाती थी।
उसने बताया कि 18 फरवरी को यूएनओ की किसी संस्था के सहयोग से उन्हें भारत भेजने का प्रबंध किया गया। वहां से उन्हें तुर्कमेनिस्तान एयरलाइन्स के विमान में दिल्ली तक भेजा गया। रास्ते में उसकी फ्लाइट दो जगह पर रुकी।
वहां पर इमिग्रेशन अधिकारी उनके पासपोर्ट अपने पास रख लेते थे, ताकि कोई भागने न पाए। उसने बताया कि पनामा से दिल्ली तक उन्हें आम यात्रियों की तरह ही लाया गया।
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