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अटल जी को बेहद पसंद थी अमृतसरी दाल, सादी रोटी व खीर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अमृतसर से खासा लगाव था। वह कई बार अमृतसर अाए थे। उनको अमृतसरी दाल, रोटी और खीर बेहद पसंद थी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:21 PM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 09:08 PM (IST)
अटल जी को बेहद पसंद थी अमृतसरी दाल, सादी रोटी व खीर
अटल जी को बेहद पसंद थी अमृतसरी दाल, सादी रोटी व खीर

अमृतसर, [नितिन धीमान]। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अमृतसर से गहरा नाता था। वह पहली बार 1953 में गुरु नगरी आए थे। वह वहां टाउन हाल में जनसंघ ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था। वह कई बार यहां अाए। अटल खाने-पीने के शौकीन थे और उन्‍हें यहां अमृतसरी दाल, रोटी और खीर बेहद पसंद थी।

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वाजपेयी 1953 में फ्रंटियर मेल से अमृतसर पहुंचे अटल जी को कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाने के लिए शहर के बड़े कपड़ा व्यापारी स्व. लाल रोशन लाल की बग्घी का प्रयोग किया गया। लाला रोशन लाल के साथ अटल जी के घनिष्ठ संबंध थे। लाला जी भी जनसंघ के प्रमुख कार्यकर्ता थे। अटल जी जितनी बार अमृतसर आए, कटड़ा जैमल सिंह स्थित उनके घर रात्रि विश्राम किया।

अमृतसर से गहरा नाता था, पहली बार 1953 में आए थे, लाला रोशन लाल के घर रुकते थे

लाला रोशन लाल के भतीजे विमल अरोड़ा बताते हैं कि हमारी कोठी का एक कमरा अटल जी के लिए था। वह इसी कमरे में रुकते और कोठी के बड़े पार्क में लाला रोशन लाल के साथ सैर करते। खाने में उन्हें अमृतसरी दाल व सादी रोटी बहुत पसंद थी। खाने के बाद मीठे में उन्हें खीर पसंद थी। वह हमारे पूरे परिवार के साथ बैठकर खाना खाते थे।

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शादी में तभी आएंगी जब फल दिए जाएंगे

1972 में ताया जी रोशन लाल के बेटे किशन कुमार के विवाह का न्यौता अटल जी को भेजा गया। उस समय देश में अन्न संकट को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने शादी-विवाह में खाना परोसने पर रोक लगा रखी थी। अटल जी ने न्यौता तो स्वीकार किया, पर साथ ही यह कहा कि वह शादी में तभी आएंगे जब बरातियों खाने की बजाय दूध व फल दिए जाएंगे। उनकी इच्छा के अनुरूप हमने दूध व फल ही स्टॉल पर सजाए।

अटल जी पैदल ही चले थे

विमल अरोड़ा का कहना है कि मुझे याद है कि अटल जी हमारी कोठी से लेकर पुलिस लाइन तक पैदल ही बरात के संग चले थे। उनकी खासियत थी कि वे जमीन से जुड़े नेता थे। साधारण कार्यकर्ताओं को गले लगाते थे और सादा जीवन जीते थे। 2008 में लाला रोशन लाल का देहांत हो गया। अटल जी ने गहरा शोक व्यक्त किया। उनका संबंध गुरु नगरी के पूर्व सांसद दया सिंह सोढी, बलरामजी दास टंडन, डॉ. बलदेव प्रकाश व शहीद हरबंस लाल खन्ना के साथ भी रहा।

अमृतसर में दिया था आखिरी भाषण

कवि, पत्रकार और फिर देश के शीर्ष पद पर विराजमान हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पंजाब में 2007 में अपना आखिरी भाषण अमृतसर में दिया था। अमृतसर लोकसभा उपचुनाव में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू के पक्ष में मतदान की अपील करने पहुंचे वाजपेयी जी ने मंच से कहा था कि कांग्रेस नेताओं ने पंजाब में आतंकवाद का हौव्वा खड़ा करने की कोशिश की है। आतंकवाद की चर्चा करना यह दिखाता है कि वोट के लिए कहां तक गिरा जा सकता है, लेकिन हमें मिलकर पंजाब और देश को बचाना है।

अकाली दल व भाजपा का मिलन पंजाब को बदलेगा

अटल जी ने मंच से यूपीए सरकार से पूछा था  गरीब दाल में कितना पानी डालेगा। दिल्ली और पंजाब में जब हमारी सरकार थी, तब हमने महंगाई नहीं बढऩे दी। हमने लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ा। पंजाब में सरकार बदलेगी तो यहां भी कीमतों को काबू में रखने का प्रबंध किया जाएगा। अकाली दल और भाजपा का मिलन दो दिलों का मिलन है, जो पंजाब की स्थिति को बदलेगा।

अटल जी से अच्छा नेता और कोई नहीं

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला कहती हैं कि अटल जी से अच्छा नेता और कोई नहीं। मैं बचपन से ही इनके साथ चली हूं। 14 साल की थी। जनसंघ के कार्यक्रमों में आम कार्यकर्ता की तरह सेवा कार्य करती थी। बस मुझे पता चल जाए कि अटल जी आने वाले हैं। मैं उसी वक्त रैलियों अथवा समारोहों की तैयारियों में सेवा निभाने पहुंच जाती थी।

मेरी बहन है, आतंकवाद से सीधे लड़ती है

चावला बताती हैैं कि अटल जी अमृतसर के गोलबाग में जलसा करने आए थे। मैं स्कूल से निकलकर जलसे में पहुंच गई। अटल जी मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते थे। मेरी सेवा भावना के चलते वे मुझे शाबाशी देते। मुझे याद है कि मैं हरिद्वार गई थी। काफी भीड़ थी, लेकिन अटल जी ने मुझे देखते ही आवाज लगाई- आइए बहनजी! कार्यकर्ताओं से बोले- ये मेरी बहन है जो आतंकवाद से सीधी लड़ाई लड़ती है।

सुरक्षाकर्मियों ने मुझे रोका तो अटल जी ने मंच पर बुला लिया

प्रो. चावला के अनुसार 2007 में अटल और लालकृष्ण आडवाणी अमृतसर आए थे। मैं नारियल की माला अटल जी को पहनाना चाहती थी, पर सुरक्षा कर्मचारियों ने मुझे इसकी आज्ञा नहीं दी। मैं अड़ गई कि माला पहनाए बिना वापस नहीं जाऊंगी। इसी दौरान अटल जी ने मुझे देखा और मंच पर बुलाया। मैंने माला पहनाई। उन्होंने मुझसे कुशलक्षेम पहुंचा। उनके निधन के कारण देश को अपूर्णीय क्षति हुई है। ऐसे राष्ट्र निर्माता कई शताब्दियों बाद पैदा होते हैं।

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