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अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम बनाने में पहला सहयोगी था पंजाब

अटल बिहारी वाजपेयी जब 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो सरकार गठित करने के लिए बनाए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में उनका सबसे पहला सहयोगी शिरोमणि अकाली दल बना था।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 07:22 PM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 09:08 PM (IST)
अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम बनाने में पहला सहयोगी था पंजाब
अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम बनाने में पहला सहयोगी था पंजाब

जेएनएन, चंडीगढ़। अटल बिहारी वाजपेयी जब 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो सरकार गठित करने के लिए बनाए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में उनका सबसे पहला सहयोगी शिरोमणि अकाली दल बना था। अकाली दल के प्रधान प्रकाश सिंह बादल ने दिल्ली जाकर उन्हें बिना शर्त सहयोग देने का वादा किया। हालांकि तब अटल बिहारी वाजपेयी सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए और सरकार मात्र 13 दिन में ही गिर गई, लेकिन 1998 में जब फिर से चुनाव हुए तो अकाली दल ने अपने छह सांसदों का उन्हें सहयोग दिया। यह सरकार भी मात्र 13 माह चली और 1999 में फिर से 5 सांसदों का सहयोग दिया।

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गठबंधन सरकारें चलाने का सबसे पहला मौका अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ ही आया। हालांकि यह वह दौर था जब दूसरी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने को तैयार नहीं होती थीं। लेकिन, पंजाब की शिरोमणि अकाली दल ने इस गतिरोध को तोड़ा और बिना शर्त समर्थन देकर सबसे पहले पहल की। उसके बाद कई पार्टियां और चली गईं, लेकिन वाजपेयी और प्रकाश सिंह बादल का बना गठजोड़ आज भी कायम है।

प्रकाश सिंह बादल के साथ संबंधों के कारण ही 1999 में जब खालसा पंथ का 300 साला स्थापना दिवस मनाने की बात आई तो न केवल प्रधानमंत्री इन समारोहों में शामिल हुए, बल्कि 300 करोड़ रुपये देने का भी ऐलान किया। श्री आनंदपुर साहिब में बना विरासत-ए-खालसा बनाने का ऐलान भी इसी समारोह में हुआ था। बात चाहे बठिंडा में रिफाइनरी स्थापित करने की हो या फिर पाकिस्तान के साथ बने गतिरोध को तोड़ने की, वाजपेयी हमेशा आगे बढ़कर यह काम करते रहे, जिसका फायदा पंजाब को मिला।

1999 के सितंबर महीने में जब न्यूयार्क में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाश शरीफ के साथ उनकी मीटिंग हुई तो दोनों देशों के लोगों के एक-दूसरे के देश में बनी हुई रिश्तेदारियों में जाने की मांग को पूरा करने के लिए वाजपेयी ने ही बस चलाने का सुझाव दिया था। जिसे उन्होंने पूरा भी किया। यह बस आज भी दोनों देशों के बीच चल रही है।

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