झारखंड के सपने साकार करने की पहल, क्या 'जल, जंगल, जमीन' की विरासत संभाल पाएंगे हेमंत सोरेन?
झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन के प्रतीक शिबू सोरेन दिशोम गुरु बेशक अब नहीं रहे लेकिन उनके जीवन का मूलमंत्र जल जंगल जमीन की लड़ाई था जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ। उनके निधन से पैदा हुई रिक्तता को भरना अब झारखंड मुक्ति मोर्चा और उनके पुत्र हेमंत सोरेन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
प्रदीप सिंह, रांची ब्यूरो। झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन के प्रतीक शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था, इसी माह उनका निधन हो गया। शिबू सोरेन ने शून्य से शुरू करके राजनीति की बड़ी लकीर खींची और उनके सपनों को बड़े फलक पर ले जाना अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई है। उनके निधन से पैदा हुई रिक्तता को उनका वैचारिक आधार ही भर सकता है, क्योंकि सोरेन को सत्ता से अधिक लगाव आम लोगों से जुड़े मुद्दों से था।
शिबू सोरेन का जन्म 1944 में रामगढ़ के निकट नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता की हत्या महाजनों द्वारा की गई थी, जो जमीन हड़पने के महाजनों के कृत्य का विरोध करते थे। यह घटना शिबू सोरेन के जीवन की दिशा तय करने वाली साबित हुई। उन्होंने औपचारिक शिक्षा बहुत कम प्राप्त की, लेकिन सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई में वे स्वयं एक विश्वविद्यालय बन गए।
जल, जंगल, जमीन की लड़ाई उनकी राजनीति का मूलमंत्र था। उन्होंने इस नारे को आंदोलन का रूप दिया, जो आदिवासियों के अस्तित्व की रक्षा का प्रतीक बन गया। जंगल आदिवासियों की संस्कृति और जीविका का आधार हैं, जमीन उनकी पहचान और जल उनका जीवन। लेकिन औद्योगिकीकरण और खनन के नाम पर ये संसाधन छीने जा रहे थे।
उनके आंदोलनों के परिणामस्वरूप वर्ष 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ, जिसमें उनकी भूमिका सबसे अहम थी। आज भी यह लड़ाई प्रासंगिक है। क्लाइमेट चेंज, वन कटाई और कारपोरेट लूट के दौर में आदिवासियों के अधिकार खतरे में हैं। झारखंड में कोयला खनन के कारण हजारों आदिवासी विस्थापित हो रहे हैं। इन्हें न्याय दिलवाने के लिए सोरेन के अभियान को आगे बढ़ाना होगा।
विशाल जनसमर्थन के कारण स्वीकार्यता
शिबू सोरेन के आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में मान्यता देशभर में थी। उन्हें मिलने वाला व्यापक जनसमर्थन और सभाओं में उमड़ने वाली अपार भीड़ उनके विरोधियों को भी उनकी ताकत का अहसास कराती रही है।
यही वजह है कि झारखंड में भाजपा व अन्य विरोधी दलों के लोग भी गुरुजी (शिबू सोरेन) का सम्मान करते रहे हैं। संसद रिश्वत कांड और हत्या जैसे आरोपों के बाद भी गुरुजी का कद ऊंचा बना रहा तो उसके पीछे की बड़ी वजह गुरुजी की जमीनी पकड़ ही है।
वर्तमान में झारखंड में उनके कद का कोई नेता नहीं है। ऐसे में झामुमो की वर्तमान पीढ़ी को यह साबित करना होगा कि वह गुरुजी के रास्ते पर ही आगे बढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस दिशा में प्रयास भी किए हैं। पिछले एक वर्ष से अधिक समय से वह शिबू सोरेन की तरह लंबे बाल और लंबी दाढ़ी रख यह संदेश दे रहे हैं कि उनमें भी उनके पिता शिबू सोरेन की छवि है।
गुरुजी के श्राद्ध के दौरान अपने पैतृक गांव नेमरा में एक साधारण व्यक्ति की तरह आम लोगों के बीच रहकर ठेठ गंवई अंदाज में श्राद्ध विधान पूरे कर और खेतों की मेड़ों पर चलते हुए किसानों-मजदूरों के बीच जाकर उन्होंने बताया कि वह भी शिबू सोरेन की तरह जमीन से जुड़े नेता हैं।
उनके निधन से पैदा हुई रिक्तता बड़ी है। उन्होंने पार्टी को 38 वर्षों तक नेतृत्व दिया। अब उनके सपनों को बढ़ाना और बड़े फलक पर ले जाना झामुमो नेतृत्व की जिम्मेदारी है। हेमंत सोरेन इसे बखूबी संभाल रहे हैं।
शिबू सोरेन की राजधानी का क्या था आधार?
दिशोम गुरु का वैचारिक आधार आदिवासी अधिकार, सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण इसे भर सकता है। दिशोम गुरु का पंचतत्व में विलीन होना एक युग का अंत है। उन्होंने आदिवासी आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया और झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनाया। लेकिन आज प्रदेश में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और आदिवासी विस्थापन जैसे मुद्दे कायम हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी मुद्दों को उठाना भी एक बड़ी जवाबदेही है। उनके वैचारिक आधार से प्रेरणा लेकर पार्टी आगे बढ़ सकती है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने कोर एजेंडे में उन विषयों को बखूबी समाहित किया है, जैसा दिशोम गुरु की परिकल्पना थी। उनकी अनुपस्थिति में इसे सतत बढ़ाने की प्रबल इच्छाशक्ति आवश्यक है, ताकि दिशोम गुरु का सपना मूर्तरूप ले सकें।
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