Maharashtra Politics: विशेष अधिवेशन के पहले ही दिन MVA में दरार, समाजवादी पार्टी ने खुद को किया अलग
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के एक महीने के भीतर ही महाविकासअघाड़ी में दरार पड़नी शुरू हो गई है। महाराष्ट्र सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबु आजमी ने उद्धव गुट वाली शिवसेना पर आरोप लगाया है कि वह हिंदुत्व का एजेंडा चला रही है। आजमी ने कहा कि वह अखिलेश यादव से बात करेंगे और समाजवादी पार्टी महाविकासअघाड़ी से अलग हो जाएगी।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में 15वीं विधानसभा के पहले ही दिन विपक्षी गठबंधन महाविकासअघाड़ी में दरार दिखाई देने लगी है। समाजवादी पार्टी ने खुद को इससे अलग करने का फैसला सुना दिया है, तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के नेता जीतेंद्र आह्वाड भी अधूरे मन से सदन के बहिष्कार में शामिल हुए।
बता दें कि 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (मविआ) के विधायकों की संख्या सिर्फ 46 है। जबकि सत्तारूढ़ महायुति के 235 विधायक हैं।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद विधायकों के शपथ ग्रहण के लिए आज से तीन दिन का विशेष अधिवेशन बुलाया गया था। पहले ही दिन शिवसेना (यूबीटी) विधायक दल के नेता आदित्य ठाकरे ने अपने विधायकों को शपथ न दिलाने एवं सदन के बहिष्कार का फैसला किया।
सहमत नहीं थे सहयोगी दल
उन्होंने एक बयान देकर कहा कि महायुति की यह जीत जनता द्वारा दिए गए जनादेश के कारण नहीं, बल्कि ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) के कारण हुई है। इसलिए वह अपने विधायकों के साथ सदन का बहिष्कार करेंगे। उनके इस फैसले से राकांपा (शरदचंद्र पवार) के विधायक दल के नेता जीतेंद्र आह्वाड सहमत नजर नहीं आए।
उन्होंने कहा कि क्या विधायकों के शपथ न लेने से ईवीएम के विरुद्ध लड़ाई में कोई फर्क पड़ेगा? हालांकि फिर भी राकांपा और कांग्रेस आज शिवसेना (यूबीटी) के साथ सदन के बहिष्कार में शामिल हुईं और उनके विधायक सदन छोड़कर बाहर निकल गए।
सपा ने नहीं किया बहिष्कार
लेकिन महाविकास अघाड़ी में शामिल समाजवादी पार्टी के दो विधायक बाहर नहीं गए। उन्होंने नए विधायक के रूप में शपथ भी ली। मविआ से अलग उनके इस रुख के बारे में पूछे जाने पर समाजवादी पार्टी महाराष्ट्र के अध्यक्ष अबू आसिम आजमी ने कहा कि उन्हें किसी ने सदन के बहिष्कार की न तो सूचना दी, ना ही उनसे इस बारे में कोई सलाह ली गई।
उन्होंने कहा कि 'जब अचानक विपक्षी खेमे के विधायक बाहर जाने लगे, तो हमें पता चला कि ईवीएम के विरोध में ये लोग सदन का बहिष्कार कर रहे हैं। इसलिए हमनें इस बहिष्कार का हिस्सा बनना स्वीकार नहीं किया। अब समाजवादी पार्टी ने विपक्षी गठबंधन महाविकासअघाड़ी से अलग होने का फैसला किया है।
अबु आजमी ने उद्धव पर बोला हमला
सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबु आजमी ने आरोप लगाते हुए कहा कि 'उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने हिंदुत्व का एजेंडा अपना लिया है। ऐसे में हमें उनके साथ गठबंधन को लेकर एक बार फिर सोचना होगा।'
सपा प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से यह बयान तब आया है, जब उद्धव ठाकरे के करीबी मिलिंद नार्वेकर ने सोशल मीडिया पर बाबरी विध्वंस से जुड़ा पोस्ट शेयर कर उसका स्वागत किया था। इस पोस्ट में बाल ठाकरे की भी तस्वीर लगी हुई थी।
अखिलेश यादव से करेंगे बात
अबु आजमी ने कहा, 'महाविकासअघाड़ी के साथ हमारा न तो सीट शेयरिंग और न ही प्रचार के दौरान को-ऑर्डिनेशन रहा। चुनाव में मिली हार के बाद उद्धव ठाकरे ने एक मीटिंग में अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिंदुत्व का एजेंडा आक्रामक तौर पर उठाने को कहा है।'
आजमी ने आगे कहा, '6 दिसंबर को शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से सोशल मीडिया पर बाबरी विध्वंस के पक्ष में मैसेज शेयर किया गया था। हम ये सहन नहीं कर सकते। इसलिए हमने अपनी पार्टी को महाविकासअघाड़ी से अलग करने का फैसला किया है।'
अबु आजमी ने कहा कि वह इस संबंध में अखिलेश यादव से बात करेंगे। उन्होंने कहा, 'शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से अखबार में विज्ञापन दिया गया और बाबरी विध्वंस में शामिल लोगों को शुभकामना दी गई। उद्धव के सहयोगी ने भी तस्वीर पोस्ट की।'
आजमी ने कहा कि अगर महाविकासअघाड़ी में भी कोई ऐसी भाषा बोलेगा, तो भाजपा और उनमें क्या फर्क रह जाएगा? आपको बता दें कि हाल के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के दो विधायक चुनकर आए हैं। एक स्वयं अबू आसिम आजमी, और दूसरे भिवंडी की एक सीट से रईस शेख।
सपा के दो विधायक जीते हैं चुनाव
ये दोनों 14वीं विधानसभा के भी सदस्य थे। इस बार अबू आजमी मविआ का हिस्सा बनकर कम से कम 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करना चाहते थे। उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मालेगांव आकर एक साथ पांच उम्मीदवारों के नाम की घोषणा भी कर दी थी।
लेकिन मविआ में उन्हें सिर्फ उनकी पहले की जीती हुई सीटें ही मिलीं। उन पर वे फिर से जीतकर भी आ गए। यहां तक कि चुनाव से पहले सीट समझौते की बैठकों में भी सपा को वह सम्मान नहीं मिला, जो वह चाहती थी। इसलिए अब निकाय चुनावों से पहले सपा अपना रास्ता अलग कर अपने दम पर सारे चुनाव लड़ना चाहती है।
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