क्या बंगाल भाजपा को मिल गई मोदी-शाह जैसी जोड़ी? 10 साल बाद चुनाव प्रभारी की नियुक्ति; इनसाइड टोरी
पश्चिम बंगाल में 2026 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने लगभग एक दशक बाद केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनाव प्रभारी और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब को सह-चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। इस जोड़ी की तुलना मोदी और शाह की जोड़ी से की जा रही है। क्या यह जोड़ी राज्य में पार्टी के लिए चमत्कार कर पाएगी?

जयकृष्ण वाजपेयी, राज्य ब्यूरो। बंगाल में आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में पार्टी के चुनावी कार्यों की देखरेख के लिए लगभग एक दशक बाद ‘प्रभारी’ नियुक्त किया है। शीर्ष नेतृत्व के निर्देशानुसार प्रदेश में सुनील बंसल व मंगल पांडेय जैसे वरिष्ठ नेता पार्टी की प्रदेश इकाई के सांगठनिक और राजनीतिक मामलों के पर्यवेक्षक के रूप में पहले से ही कार्य कर रहे हैं।
इस बार एक केंद्रीय मंत्री को केवल चुनाव कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। साथ ही एक पूर्व मुख्यमंत्री को उनका सहयोगी नियुक्त किया गया है।
भाजपा ने 2021 चुनाव में जीत की प्रबल संभावना के बावजूद बंगाल के लिए ‘चुनाव प्रभारी’ नियुक्त नहीं किया था, परंतु 2026 के विधानसभा चुनाव में 10 वर्ष बाद इस बार चुनाव प्रभारी नियुक्त करने के बाद से यह प्रश्न उठ रहा है कि ऐसा क्यों किया गया है?
किसको नियुक्त किया चुनाव प्रभारी और सह-चुनाव प्रभारी?
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बीते गुरुवार को केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को ‘चुनाव प्रभारी’ और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद बिप्लब देब को ‘सह-चुनाव प्रभारी’ नियुक्त करने की घोषणा की है यानी भूपेंद्र-बिप्लब की जोड़ी चुनाव तक राज्य में उन नेताओं के साथ काम करेगी, जो केंद्रीय नेतृत्व की ओर से पर्यवेक्षक के रूप में कार्यभार संभाल रहे हैं।
भूपेंद्र यादव ने यह जिम्मेदारी मिलने पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के प्रति आभार व्यक्त किया। वैसे बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को ‘चुनाव प्रभारी’ नियुक्त करना भाजपा में कोई नई बात नहीं है, परंतु यहां प्रश्न यह है कि क्या इससे राज्य में भाजपा के लिए कोई चमत्कार होगा?
इससे पहले 2006 और 2011 में बंगाल विधानसभा चुनाव में अरुण जेटली को ‘चुनाव प्रभारी’ बनाया गया था। इसके बाद 2016 में निर्मला सीतारमण को यह जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन नतीजा क्या रहा था, यह सर्वविदित है।
साल 2021 में आधिकारिक तौर पर किसी को यह जिम्मेदारी नहीं दी गई। उस समय शिव प्रकाश राज्य में ‘सांगठनिक पर्यवेक्षक’ और कैलाश विजयवर्गीय ‘राजनीतिक पर्यवेक्षक’ के रूप में कार्य देख रहे थे। शीर्ष नेतृत्व ने भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रबंधन में उनकी मदद के लिए भेजा था। इस बार भूपेंद्र को आधिकारिक तौर पर चुनाव प्रभारी बनाया गया है। प्रदेश भाजपा इस नियुक्ति से खुश है।
राज्य भाजपा नेतृत्व का दावा है कि चुनाव की देखरेख की जिम्मेदारी ‘उचित’ हाथों में सौंपी गई है। यहां के नेताओं का कहना है कि भूपेंद्र यादव पहले भी इस राज्य में चुनावों में काम कर चुके हैं इसलिए वे यहां की चुनावी रणनीति को समझते हैं और उसी के अनुसार मैदान में उतरेंगे।
इन दोनों के लिए बंगाल नया नहीं है। चुनाव प्रबंधन का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली और राज्य के बीच ‘समन्वय’ के रूप में काम करना भी होता है। यह समन्वय केवल पार्टी के राज्य नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व के बीच ही नहीं है। सरकार के साथ भी समन्वय बढ़ाना जरूरी होता है।
भूपेंद्र को ही क्यों बनाया चुनाव प्रभारी?
माना जा रहा है कि यदि भूपेंद्र जैसे पूर्णकालिक मंत्री प्रभारी हों तो यह समन्वय ज्यादा सहज होगा। ऐसे में विभिन्न मामलों में केंद्रीय हस्तक्षेप आसानी से हो सकता है। राज्य भाजपा के कई नेताओं का दावा है कि बंगाल के लिए ‘चुनाव प्रभारी’ का चुनाव इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर किया गया है।
भूपेंद्र-बिप्लब को भाजपा में भरोसेमंद रणनीतिकार माना जाता हैं। भूपेंद्र यादव ने पिछले बिहार विधानसभा चुनाव समेत राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
वहीं बिप्लब कुमार देब इससे पहले हरियाणा के चुनाव में पार्टी के प्रभारी के रूप में काम कर चुके हैं। वह अपने अनुभव और क्षमता से हरियाणा सहित दिल्ली के चुनावों में भी अहम भूमिका निभा चुके हैं, इसलिए इस बार केंद्रीय नेतृत्व ने इन दोनों नेताओं पर बंगाल चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी है। दूसरी तरफ बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने इस नियुक्ति की आलोचना की है, जैसा कि अपेक्षित था।
तृणमूल की ओर से एक्स हैंडल पर बिप्लब देव को ‘बिग-फ्लॉप देव’ लिखा गया। इसके साथ पोस्ट किए गए एक वीडियो में तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा-
‘जिस व्यक्ति को भाजपा ने बंगाल में चुनाव की जिम्मेदारी देकर भेजा है, वह बिप्लब देव अपने ही राज्य त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। जो व्यक्ति त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य को संभाल नहीं पाया, जिसे भाजपा ने बीच में ही पद से हटा दिया, उसे बंगाल भेजा है। बंगाल की जनता सब देख रही है। वह सबको एक साथ बिठाकर वापस भेज देगी।'
प्रदेश भाजपा के नेता तृणमूल के इस कटाक्ष पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। वैसे बंगाल में भूपेंद्र-बिप्लब की जोड़ी के लिए पार्टी स्तर पर कई चुनौतियां होंगी, जिससे निपटना उनके लिए आसान नहीं होगा। राज्य भाजपा में गुटबाजी, नए-पुराने के बीच द्वंद्व काफी जटिल है। अब देखना है कि विधानसभा चुनाव से पहले इस गुटबाजी से यह जोड़ी कैसे निपटती है और भाजपा को राज्य की सत्ता के शिखर पर पहुंचाने में कामयाब होती है या नहीं।
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