Bihar Election 2025: बिहार चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग का धमाका, क्या हैं इसके सियासी मायने?
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकॉर्ड 64.69% मतदान हुआ, जो राज्य के इतिहास में सबसे अधिक है। चुनाव आयोग ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया है। विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है कि क्या यह बढ़ा हुआ मतदान नीतीश सरकार को हिला देगा या मजबूत करेगा। वोटर रोल में बदलाव और कुछ हिंसक घटनाओं के बावजूद चुनाव शांतिपूर्ण रहा। देखें क्या कहता है प्रथम चरण का विश्लेषण।

बिहार में बंपर वोटिंग डेमोक्रेसी की बड़ी जीत।
डॉ चंदन शर्मा, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Election 2025) के पहले चरण में 121 सीटों पर रिकॉर्ड 64.69% मतदान हुआ। यह राज्य के इतिहास में अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा है, जो 1951 से लेकर अब तक के हर रिकॉर्ड को पीछे छोड़ चुका है। चीफ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार ने इसे डेमोक्रेसी की बड़ी जीत बताया है।
सीईसी ने कहा, बिहार ने पूरे राष्ट्र को रास्ता दिखाया है। SIR (स्पेशल समरी रिवीजन) में जीरो अपील्स के साथ 1951 के बाद सबसे ज्यादा वोटर टर्नआउट।
सबसे शुद्ध इलेक्टोरल रोल्स और वोटर्स की उत्साही भागीदारी। ट्रांसपेरेंट और डेडिकेटेड इलेक्शन मशीनरी। डेमोक्रेसी जीत गई। चुनाव आयोग के लिए यह एक अमेजिंग जर्नी रही।
2020 के पहले फेज (55.68%) की तुलना में यह 8.98% की भारी बढ़ोतरी है। क्या यह बढ़ा हुआ टर्नआउट नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की एनडीए सरकार को हिला देगा या मजबूत करेगा। आजादी के बाद के चुनावों का एनालिसिस बताता है कि जब भी 5% से ज्यादा वोटिंग में बदलाव आया, तो सियासी मंजर बदला है।
एक्सपर्ट्स की राय इस बार बंटी हुई है। ज्यादातर NDA की वापसी पर दांव लगा रहे हैं, जबकि कुछ सत्ता परिवर्तन की संभावना देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया है कि एनडीए ने पहले फेज में मासिव लीड हासिल की है। वहीं जनसुराज के प्रशांत किशोर ने कहा कि हाई टर्नआउट से बिहार में बदलाव आ रहा है, 14 नवंबर को नई व्यवस्था बनेगी।
वोटर रोल में बड़े बदलावों ने 100 से ज्यादा सीटों पर असर डाला है और चुनावी दिन पर कुछ हिंसक घटनाएं भी सुर्खियां बनीं। हालांकि पहले चरण में छपरा में मांझी विधायक सत्येंद्र यादव की गाड़ी पर हमला और डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा से बदतमीजी व नोक झोंक के अलावा चुनाव शांतिपूर्ण ही रहा।
ऐतिहासिक विश्लेषण: जब-जब वोटिंग में 5% से ज्यादा का उछाल, तब-तब सत्ता का भूकंप
बिहार के विधानसभा चुनावों (1951 से अब तक) का डेटा साफ बताता है कि वोटिंग प्रतिशत में बड़ा फेरबदल हमेशा राजनीतिक क्रांति लाया।
CEC ज्ञानेश कुमार ने खुद इसे 1951 के बाद का सबसे ऊंचा टर्नआउट बताया। जब लोकसभा चुनावों में सिर्फ 40.35% वोटिंग हुई थी, राज्य का अब तक का सबसे कम आंकड़ा रहा था।
1998 के लोकसभा चुनावों में 64.6% टर्नआउट रिकॉर्ड था, लेकिन विधानसभा में 2000 के 62.57% को अब 2025 ने पीछे छोड़ दिया। इन उदाहरणों से देखें, जहां 5% से ज्यादा बदलाव ने इतिहास रचा।
- 1967: 7% प्लस वोटिंग। गैर-कांग्रेसी दौर की शुरुआत। कांग्रेस का वर्चस्व टूटा, महामाया प्रसाद सिन्हा CM बने। जन क्रांति दल और शोषित दल ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन अस्थिरता रही। कांग्रेस की कमजोरी की नींव पड़ी।
- 1980: 6.8 % ज्यादा वोटिंग। कांग्रेस की धमाकेदार वापसी। जनता पार्टी की आपसी लड़ाई का फायदा उठाकर कांग्रेस ने अकेले सत्ता हासिल की, जगन्नाथ मिश्र CM बने। लेकिन 10 साल बाद कांग्रेस का शासन खत्म हो गया।
- 1990: 5.8 प्लस % वोटिंग। लालू युग की दस्तक, कांग्रेस की विदाई। जनता दल की सरकार बनी और लालू यादव मुख्यमंत्री बने। मंडल राजनीति ने बिहार को बदल दिया, कांग्रेस आज तक नहीं उबर पाई। लालू-राबड़ी ने 15 साल राज किया।
- 2005: माइनस 16.1% वोटिंग। लालू-राबड़ी राज का अंत। कम टर्नआउट के बावजूद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सीएम बने, सुशासन की छवि बनाई। 20 साल से सत्ता पर काबिज हैं।
- 2010 : सात प्रतिशत प्लस वोटिंग। महिलाओं की भागिदारी पहली बार जोरदार हुई। पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा बाहर आईं। नीतीश कुमार के फेवर में यह ट्रेंड अब तक जारी है।
इस बार 8% प्लस की बढ़ोतरी से क्या सत्ता पलटेगी? इतिहास कहता है– हां, लेकिन मौजूदा माहौल एनडीए के पक्ष में लग रहा है। CEC ने ECI की सराहना की है कि पहली बार 100% पोलिंग स्टेशन्स में लाइव वेबकास्टिंग हुई और इवीएम में कलर्ड कैंडिडेट फोटोज जोड़े गए, जिससे कन्फ्यूजन कम हुआ। राजनैतिक विशेषज्ञों की राय में भिन्नता है।
एक्सपर्ट्स की राय: नीतीश मजबूत या सत्ता परिवर्तन का खेल?
पुष्यमित्र (सीनियर जर्नलिस्ट): महिलाओं और कोर वोटर्स की भागीदारी से नीतीश को फायदा। ऐतिहासिक टर्नआउट की बात मिथ है। क्योंकि एसआईआर के बाद नौ प्रतिशत के आसपास निष्क्रिय वोटर हटाए गए थे।
ओमप्रकाश अश्क (पॉलिटिकल एनालिस्ट): कोई नाराजगी नहीं, नीतीश को हटाने की जल्दबाजी में नहीं दिख रही जनता। 1990, 1995 व 2000 में भी बंपर वोटिंग हुई थी, लेकर सत्ता नहीं बदली थी।
अरुण अशेष (सीनियर जर्नलिस्ट): एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपने घोषणा पत्र में लोक लुभावन वादों की बारिश की है। इससे महिलाएं, युवा सहित सभी वर्ग के वोटरों ने भागीदारी बढ़ाई। 14 इंतजार का करना होगा।
प्रमोद मुकेश (सीनियर जर्नलिस्ट): प्रशांत किशोर को फायदा, भविष्य में तीसरा पक्ष बन कर उभरेंगे। हालांकि सीट में कंवर्ट होने की संभावना कम। नीतीश की योजना (महिलाओं को 10 हजार) कामयाब। वापसी कर सकते हैं।
हेमंत कुमार (सीनियर जर्नलिस्ट): एग्रेसिव वोटिंग सत्ता बदलाव का संकेत। अगर ट्रेंड जारी रहा, तो सरकार जा सकती है।
राजनीतिक असर: चार संभावित सिनैरियो जो बिहार बदल देंगे
- नीतीश का पुराना रुतबा लौट सकता: मजबूत जीत से BJP के साथ 2010 जैसी पोजिशन, जहां JDU 115 सीटों पर थी। 2020 में JDU तीसरे नंबर पर थी, अब दखल कम होगा।
- प्रशांत किशोर थर्ड फोर्स बनेंगे: 10% वोट से जन सुराज मजबूत, नीतीश के उत्तराधिकारी की कमी का फायदा। आगे थर्ड फ्रंट की संभावना।
- तेजस्वी को चुनौती: महागठबंधन हारा तो कांग्रेस अलग रास्ता ले सकती। IRCTC घोटाले से नुकसान, 5 साल विपक्ष में रहना मुश्किल।
- सहयोगी पार्टी घाटे में: पहले चरण में ज्यादातर सीटों पर सीधी फाइट दिख रही है। दोनों गठबंधन के छोटे दलों के प्रति कई जगर नाराजगी देखी जा रही है।
वोटिंग बढ़ने की वजहें: महिलाओं से छठ तक का कमाल
महिला केंद्रित वादे: NDA की 1.21 करोड़ महिलाओं को 10 हजार की किस्त, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का 30 हजार सालाना वादा। महिलाएं घर से निकलीं।
SIR मुद्दा: महागठबंधन ने वोट चोरी का ऐंगल बनाया, पिछड़ों में जागरूकता। एक्स्पर्ट कहते हैं, 65 लाख नाम कटने से प्रतिशत बढ़ा।
जन सुराज इफैक्ट: प्रशांत किशोर ने जनता के धड़े में उम्मीद जगाई, वोटर्स उत्साहित।
छठ पर्व का असर: बाहर से आए लोग रुके, पार्टियों की अपील काम आई। 2010 के बाद पहली बार छठ बाद वोटिंग।
घोषणा पत्र में वादे: एनडीए और महागठबंधन में लोक लुभावन वादों की बारिश की है। इससे सभी वर्ग के वोटरों का आकर्षण बढ़ा। रोजगार की उम्मीद में युवा आगे आए।
वोटर रोल चेंजेस और चुनावी हिंसा ने बढ़ाई गर्मी
सितंबर 2025 तक की स्पेशल समरी रिवीजन (SIR) में वोटर रोल में बड़े बदलाव हुए। राज्यव्यापी औसतन वोटरों की संख्या में कमी आई, जो 100 से ज्यादा सीटों पर चुनावी समीकरण प्रभावित कर सकती है। इससे टर्नआउट प्रतिशत बढ़ा दिख रहा है, क्योंकि मृत या डुप्लिकेट वोटरों के नाम कटे।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे पिछड़े और अति पिछड़े वोटर्स में जागरूकता बढ़ी। CEC ने SIR को प्योरेस्ट इलेक्टोरल रोल्स कहा, जहां जीरो अपील्स आईं।
चुनावी दिन पर भी ड्रामा: डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के काफिले पर गोबर फेंका गया और आरजेडी-बीजेपी के बीच तीखी झड़प हुई। सहरसा में सुबह 15.27% टर्नआउट दर्ज हुआ, जो पहले घंटों में सबसे ज्यादा था। इवीएम विवाद और बिजली कटौती की शिकायतें भी आईं, लेकिन आयोग ने चुनाव शांतिपूर्ण बताया।
बक्सर और फतुहा में कुछ जगहों पर बॉयकॉट का मामला भी सामने आया, लेकिन अधिकारियों ने मतदाताओं को समझाने में सफलता पाई। ओवरऑल 3.75 करोड़ वोटर्स में से 2 लाख प्लस सीनियर सिटिजन्स (85 प्लस) ने वोट डाला।
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