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    एनसीपी से बगावत अजित पवार को पड़ेगी भारी! बागी विधायकों पर क्यों लटकी दल-बदल कानून की तलवार?

    By Devshanker ChovdharyEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Tue, 04 Jul 2023 04:18 PM (IST)

    Maharashtra Politics महाराष्ट्र में रविवार से राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। अजित पवार (Ajit Pawar) ने एनसीपी के कई विधायकों के साथ अपना समर्थन महाराष्ट्र की शिंदे सरकार को दे दिया। इसके बाद शरद पवार (Sharad Pawar) और अजित पवार दोनों खेमे से एनसीपी पर दावा ठोकने का दौर भी शुरू हो गया है। वहीं शरद पवार इसे बगावत करार देते हुए एक्शन मूड में दिख रहे हैं।

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    बागी विधायकों पर क्यों लटकी दल-बदल कानून की तलवार?

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में रविवार से राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। अजित पवार (Ajit Pawar) ने एनसीपी के कई विधायकों के साथ अपना समर्थन महाराष्ट्र की शिंदे सरकार को दे दिया। इसके बाद, शरद पवार (Sharad Pawar) और अजित पवार दोनों खेमे से एनसीपी पर दावा ठोकने का दौर भी शुरू हो गया है। वहीं, शरद पवार इसे बगावत करार देते हुए एक्शन मूड में दिख रहे हैं।

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    दल-बदल कानून बन सकता है खतरा

    इस वक्त शरद पवार एनसीपी प्रमुख हैं। उन्होंने अजित पवार के इस रवैये को गलत बताते हुए कार्रवाई करने की बात कही है। इसके साथ ही जिन विधायकों ने पार्टी के खिलाफ बगावत की है उनकी सदस्यता पर भी तलवार लटक सकती है, क्योंकि अगर उन विधायकों के खिलाफ दल-बदल कानून लागू हुआ, तो उन सब को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ सकती है।

    क्या होता है दल-बदल कानून?

    Anti Defection Daw: जब कोई नेता किसी दल से निर्वाचित होकर बाद में अन्य दल शामिल हो जाते हैं, तो उसकी सदस्यता रद कर दी जाती है या फिर विधायक या सांसद को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।

    किस पर लागू होता है दल-बदल कानून?

    दल बदल कानून निर्वाचित सदस्य के साथ-साथ निर्दलीय विधायक या सांसद पर भी लागू होता है। जब कोई विधायक या सांसद निर्दलीय चुना जाता है और बाद में वह किसी पार्टी में शामिल हो जाता है, तो उस पर दल बदल कानून लागू होता है।

    इसके साथ ही मनोनीत सदस्य पर भी दल बदल कानून लागू होता है। जब किसी नेता को मनोनीत किया जाता है और वह छह महीने बाद किसी पार्टी का दामन थाम लेता है तो उस पर भी दल बदल कानून लागू होता है।

    दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई

    दल-बदल कानून के तहत निर्वाचित सदस्य की सदन की सदस्यता रद कर दिया जाता है या फिर उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। दल बदल कानून लागू होने पर नेता को लाभ त्यागना पड़ता है।

    कब बना दल-बदल कानून?

    18 मार्च 1985 में 52वें संविधान संशोधन के तहत दल-बदल कानून लागू किया गया था। इस कानून को संविधान की 10वीं अनुसूची में रखा गया है। दल-बदल कानून का मकसद भारत की राजनीति में दल बदलने की प्रथा को खत्म करना है।

    कब लागू होता है दल-बदल कानून?

    • जब एक निर्वाचित सदस्य अपनी पार्टी को छोड़ देता है।
    • जब कोई निर्दलीय विधायक या सांसद किसी पार्टी का दामन थाम लेता है।
    • जब कोई सदस्य अपनी पार्टी के फरमान के खिलाफ मतदान करता है।
    • जब कोई सदस्य पार्टी आदेश की अवहेलना करते हुए वोट नहीं करता है।
    • जब कोई मनोनीत सदस्य छह महीने के बाद किसी पार्टी में शामिल हो जाता है।

    क्या है दल-बदल कानून का तोड़?

    बता दें कि दल-बदल कानून में ऐसे भी प्रावधान है, जिससे किसी विधायक या सांसद की सदस्यता रद होने से बच जाती है। इसमें प्रावधान है कि अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक अपना दल बदल लेते हैं तो उन सभी की सदस्यता रद नहीं होगी और न ही वे सब इस कानून के दायरे में आएंगे।