सोनिया गांधी ने दी जेवीएम के दो विधायकों का कांग्रेस में विलय की मंजूरी
पार्टी ने जेवीएम के और भी कार्यकर्ताओं के जल्द ही कांग्रेस में विलय की योजना बनाई है। इसे लेकर झारखंड में जल्द ही एक बड़ी रैली की जाएगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) का गठन करने वाले और उसके मुखिया बाबू लाल मरांडी ने भले ही अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर दिया है, लेकिन उनकी पार्टी के दो विधायकों ने उनसे अलग होकर सोमवार को दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। साथ ही खुद के असली जेवीएम होने का दावा किया है।
झारखंड विकास मोर्चा के दो विधायकों ने किया कांग्रेस में विलय का ऐलान
कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह की मौजूदगी में जेवीएम के जिन दो विधायकों ने खुद के कांग्रेस में विलय का ऐलान किया है, उनमें प्रदीप यादव और बंधु तिर्की शामिल है। उसके साथ पार्टी के दूसरे कुछ नेता भी कांग्रेस में शामिल हुए।
सोनिया गांधी ने दी विलय को मंजूरी
झारखंड विधानसभा चुनाव में जेवीएम के कुल तीन विधायक ही चुनाव जीते थे। जिसमें से दो विधायकों ने पार्टी से अलग होकर कांग्रेस के साथ जाने का फैसला लिया है। इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी उनके विलय को मंजूरी दे दी है। पार्टी ने जेवीएम के और भी कार्यकर्ताओं के जल्द ही कांग्रेस में विलय की योजना बनाई है। इसे लेकर झारखंड में जल्द ही एक बड़ी रैली की जाएगी।
बीजेपी में 14 साल बाद लौटे बाबूलाल मरांडी
झारखंड की राजनीति में सोमवार को एक बदलाव आया. बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय हो गया। रांची में इस विलय कार्यक्रम में झारखंड भाजपा के सभी नेता उपस्थित थे वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद इस कार्यक्रम में मौजूद थे। बाबूलाल मरांडी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद कहा कि जो भी काम देंगे करूंगा यहां तक कि झाड़ू लगाने का काम दें तो करूंगा।
आदिवासी वोटरों में पकड़ मजबूत करने के लिए भाजपा ने मरांडी को किया शामिल
रांची के प्रभात तारा मैदान में आयोजित इस मिलन समारोह में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली। माना जाता है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने आदिवासी वोटरों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मरांडी की पार्टी का झारखंड चुनाव के परिणाम आने के दो महीने से कम समय में विलय कराया है। भाजपा को इस बात का अंदाजा हो गया है कि उसके पास वर्तमान आदिवासी नेताओं में कोई हेमंत सोरेन की बराबरी का नहीं है। इसलिए आदिवासी समाज का विश्वास जीतने के लिए मरांडी को चौदह वर्षों के बाद पार्टी में शामिल कराया गया है।