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    'खतरे में संविधान, वैचारिक तख्तापलट कर रही है भाजपा'; सोनिया गांधी का बड़ा हमला

    By Agency Edited By: Prince Gourh
    Updated: Sat, 02 Aug 2025 10:00 PM (IST)

    कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि संविधान खतरे में है। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ पार्टी उस ढांचे को खत्म करने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर रही है जिसका वह लंबे समय से विरोध करती रही है। सोनिया गांधी ने कहा कि भाजपा धर्मतंत्र-आधारित कॉर्पोरेट राज्य स्थापित करने की कोशिश कर रही है।

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    सोनिया गांधी का भाजपा पर हमला (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए आरोप लगाया कि संविधान खतरे में है क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी अपनी शक्ति का इस्तेमाल उसी ढांचे को खत्म करने के लिए कर रही है जिसका वह लंबे समय से विरोध करती रही है।

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    उन्होंने कहा कि भाजपा हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य की जगह कुछ ताकतवर लोगों की सेवा करने वाले एक 'धर्मतंत्र-आधारित कॉर्पोरेट राज्य' को स्थापित करके 'वैचारिक तख्तापलट' करने की कोशिश कर रही है।

    सोनिया गांधी का विशेष संदेश

    'संवैधानिक चुनौतियां - परिप्रेक्ष्य और मार्ग' विषय पर आयोजित 'राष्ट्रीय विधि सम्मेलन' में पढ़े गए अपने विशेष संदेश में सोनिया गांधी ने कहा कि संविधान को कमजोर करने के हर प्रयास का कांग्रेस संसद में, अदालतों में और सड़कों पर विरोध करेगी।

    उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रत्येक भारतीय की गरिमा की रक्षा करना न केवल राजनीतिक, बल्कि वैचारिक प्रतिबद्धता भी है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, "आज संविधान खतरे में है। भाजपा-आरएसएस, जिन्होंने कभी स्वतंत्रता के लिए लड़ाई नहीं लड़ी और न ही समानता को बरकरार रखा, अब अपनी शक्ति का इस्तेमाल उसी ढांचे को ध्वस्त करने के लिए कर रहे हैं जिसका वे लंबे समय से विरोध करते रहे हैं।"

    सोनिया गांधी का भाजपा पर आरोप

    उन्होंने कहा, "उनके वैचारिक पूर्वजों ने मनुस्मृति का महिमामंडन किया, तिरंगे को नकारा और एक हिंदू राष्ट्र की कल्पना की, जहां लोकतंत्र खोखला हो और भेदभाव ही कानून हो। सत्ता में रहते हुए उन्होंने संस्थाओं को नष्ट किया, असहमति को अपराध घोषित किया, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया और दलितों, आदिवासियों, ओबीसी और मेहनतकश गरीबों के साथ विश्वासघात किया। अब वे समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को मिटाना चाहते हैं, जो अंबेडकर के समान नागरिकता के दृष्टिकोण के स्तंभ हैं। यह कोई सुधार नहीं है, बल्कि एक वैचारिक तख्तापलट है।"

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