Exclusive: सनातन धर्म के विरोध का पाप और जातिवाद की राजनीति कांग्रेस को ले डूबेगी- आचार्य प्रमोद कृष्णम
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम समय-समय पर शीर्ष नेतृत्व को नसीहत देते रहे हैं। हाल ही में तीन राज्यों में भाजपा की जीत पर उन्होंने अपनी ही पार्टी को कठघरे में खड़ा किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुकाबले के लिए प्रियंका गांधी को नेतृत्व सौंपने के पक्षधर आचार्य ने विधानसभा चुनाव के परिणाम और आगे की परिस्थितियों पर खुलकर बात की।

संजय रुस्तगी, नई दिल्ली। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य व कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम समय-समय पर शीर्ष नेतृत्व को नसीहत देते रहे हैं। हाल ही में तीन राज्यों में भाजपा की जीत पर उन्होंने अपनी ही पार्टी को कठघरे में खड़ा किया। पार्टी की करारी हार के पीछे सनातन धर्म का विरोध मुख्य कारण बताया। दो बार चुनावी मैदान में उतारे जाने के बाद भी संसद पहुंचने में नाकामयाब रहे आचार्य पार्टी के कुछ नेताओं के खिलाफ लेकर मुखर हैं। उनका मानना है कि जो सनातन धर्म का नहीं, वह भारत का भी नहीं हो सकता है। इसके विरोध के कारण ही छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता हाथ से निकल गई और मध्य प्रदेश में पराजय का मुंह देखना पड़ा है। उनका साफ कहना है कि सनातन धर्म के विरोध का पाप और जातिवाद की राजनीति कांग्रेस को ले डूबेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुकाबले के लिए प्रियंका गांधी को नेतृत्व सौंपने के पक्षधर आचार्य ने विधानसभा चुनाव के परिणाम और आगे की परिस्थितियों पर दैनिक जागरण के डिप्टी न्यूज एडिटर संजय रुस्तगी से बातचीत में खुलकर अपनी राय रखी। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
हाल के चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस को कम से कम छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ऐसी करारी हार की उम्मीद नहीं थी। शुरुआत में वह मध्य प्रदेश में बराबरी की टक्कर और छत्तीसगढ़ में एकतरफा मुकाबले में दिख रही थी। आखिर परिणाम कैसे उम्मीदों के विपरीत रहे?
कांग्रेस पूरे देश में लड़ रही है। गांधी परिवार कांग्रेस के साथ खड़ा है। भाजपा को कांग्रेस ही टक्कर दे रही है। इसके साथ हमें ध्यान रखना चाहिए कि सनातन धर्म भारत के आत्मा में बसा है। सनातन के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सनातन धर्म सबको साथ लेकर चलता है, जो इस धर्म का नहीं, वह भारत का भी नहीं हो सकता है। कांग्रेस में कुछ नेताओं की कोटरी बन गई है, जो सनातन का विरोध कर रहे हैं। वह कोटरी वामपंथी विचारधारा से ओतप्रोत है। सनातन धर्म का विरोध पार्टी को ले डूबेगा। तीनों राज्यों में हार का मुख्य कारण सनातन धर्म का विरोध ही रहा है।
राजस्थान चुनाव परिणाम में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के मतभेद का कितना असर मानते हैं?
राजस्थान में सचिन पायलट के साथ नाइंसाफी हुई। उनकी मेहनत से पार्टी 2018 में सत्ता में आई, उन्हें मुख्यमंत्री बनना चाहिए था। इसके बाद भी उन्होंने जो मुद्दे उठाए, उन पर अमल नहीं किया गया। बेरोजगारी, पेपर लीक और भ्रष्टाचार के मुद्दे को उन्होंने जोर-शोर से उठाया था। पदयात्रा भी की, अनशन भी किया था। पार्टी हाईकमान ने पायलट से बात की। उन्हें मुद्दों पर फैसले लेने को लेकर आश्वस्त किया, लेकिन हाईकमान के कहने के बाद भी अशोक गहलोत ने अपनी जिद बरकरार रखी। उनकी (अशोक गहलोत) पद की लालसा ने भी वहां लुटिया डुबो दी। 25 सितंबर को पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री बदलने को राजस्थान में केंद्रीय पर्यवेक्षकों को भेजा। वहां पर्यवेक्षकों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। गहलोत ने खुद बदलने के बजाय पार्टी हाईकमान को ही बदल दिया। राहुल गांधी ने जिन मंत्रियों के भ्रष्ट आचरण के बारे में बताया था, उन्हें फिर चुनाव लड़ाया गया।
कांग्रेस में आप उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं, जो बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि पार्टी को सनातन का विरोध नहीं करना चाहिए। आपकी बात क्यों नहीं सुनी जा रही है ?
जिसका जमीर जिंदा होगा, वह बोलेगा। कोई कमरे के भीतर बोलता है, कोई बाहर। मैं खुलकर बोलता हूं। अपना कर्तव्य निभाता हूं। मेरा काम पार्टी में अलख जगाने का है। साधू का काम भी गलत काम के विरोध में आवाज उठाना है। इसे मैं निभा रहा हूं और जब तक पार्टी में हूं, निभाता रहूंगा। मैं हर हाल में पार्टी को ताकतवर देखना चाहता हूं। कांग्रेस नेताओं को सोचना चाहिए, हम गांधीजी के रास्ते पर चलकर यहां तक पहुंचे हैं। गांधीजी धर्म निरपेक्ष रहे। आज कुछ नेताओं की वजह से कांग्रेस पर हिंदू विरोधी और हिंदुस्तान विरोधी होने के आरोप लग रहे हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
क्या मौजूदा वक्त में भाजपा ही सनातन धर्म पर चलने वाली पार्टी है?
भाजपा का उदय 1980 में हुआ है, सनातन धर्म लाखों वर्ष पुराना है। किसी भी पार्टी की सनातन धर्म से तुलना नहीं की जा सकती है। कांग्रेस, गांधीजी की पार्टी है, उनसे बड़ा सनातनी कौन हो सकता है। नेहरूजी, इंदिराजी और राजीवजी से बड़ा सनातनी कौन हो सकता है, लेकिन वर्तमान में पार्टी में कुछ नेता ऐसे हैं, जो पार्टी को वामपंथ के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं। वह कांग्रेस के बुनियादी उसूलों को नहीं समझते हैं। जहां तक भाजपा की बात है तो वह सनातन धर्म का अनुसरण कर रही है। मैंने पहले भी यह बात पार्टी फोरम पर रखी है कि भाजपा चाहती है कि कांग्रेस हिंदू विरोधी साबित हो जाए। कांग्रेस को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे हिंदू विरोधी छवि बने। सनातन और भगवान श्रीराम का विरोध नहीं करना चाहिए। कांग्रेस के नेताओं को अयोध्या में जाकर रामलला के दर्शन करने चाहिए। 2014 की हार के बाद एके एंटनी के नेतृत्व में बनी कमेटी ने भी इस बात से आगाह किया था। इन बातों को नहीं माना गया, परिणाम आज सबके सामने है।
आप जाति आधारित गणना के भी विरोध में हैं और कहते रहे हैं कि इसका समर्थन कांग्रेस को भारी पड़ेगा। इसके पीछे आपका क्या तर्क है?
6 सितंबर, 1990 को राजीव गांधी ने पार्लियामेंट में कहा था कि हम जातिवाद के खिलाफ हैं। दरअसल, जातिवाद की बातें देशवासियों को पसंद नहीं आती हैं। इन विधानसभा चुनावों में पिछड़े हमें मिले नहीं और सवर्ण भी नाराज हो गए। 1947 में हम एक विभाजन देख चुके हैं। अब जाति के नाम पर विभाजन नहीं होना चाहिए। यदि देश जातिवाद की राजनीति को पसंद करता तो बीपी सिंह को काफी महत्व मिलना चाहिए था। गली-मोहल्लों में उनकी मूर्ति लगनी चाहिए थी। उनका क्या हश्र हुआ, सभी जानते हैं। उन्हें देश ने सपोर्ट नहीं किया। दरअसल, जातियों के नाम पर आरक्षण भी समाज में विघटन पैदा करता है। यह भारत के संविधान के खिलाफ है। कांग्रेस गांधी की पार्टी है। वह धर्म के साथ जातिवाद के पक्षधर भी नहीं थे। कांग्रेस को भी जाति आधारित गणना की बात नहीं करनी चाहिए।
आप जिन मुद्दों को उठा रहे हैं वह निःसंदेह पार्टी में सुधार के लिए जरूरी हैं और इस नाते तो आपको तो राहुल गांधी के इनर कैबिनेट में होना चाहिए?
राहुल गांधी की कैबिनेट में कौन होगा, कौन नहीं? यह उन्हें ही तय करना है। मैं तो अपनी ओर से उनसे कैबिनेट में शामिल करने को कह नहीं सकता हूं। जहां तक कैबिनेट की बात है तो सम्राट चंद्रगुप्त और शहंशाह अकबर के सलाहकार और नवरत्न भी उनकी इच्छा से ही तय होते थे। कांग्रेस पार्टी सही ट्रैक पर चले, इसके लिए मैं अपनी बात रखता हूं। पार्टी में कुछ नेता इसे मेरे भाजपा में जाने का प्रयास भी बताते हैं, लेकिन इसकी मुझे फिक्र नहीं है।
कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि आपको प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता है। आप कई बार कह चुके हैं कि पार्टी का नेतृत्व प्रियंका को दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह ज्यादा सक्षम हैं?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने एक पापुलर चेहरा चाहिए। मैंने उदयपुर के चिंतन शिविर में भी प्रियंका गांधी को नेतृत्व देने की बात रखी थी। आज भी अपनी बात पर कायम हूं। प्रियंका जी, जनता की बात समझती हैं, उनमें नेतृत्व की क्षमता है। उनके आगे आने से पार्टी को मजबूती मिलना तय है। 2024 में जीत हासिल करने के लिए हमें प्रियंका गांधीजी को नेतृत्व सौंपना चाहिए। इसके अलावा चिंतन शिविर में राजस्थान में अशोक गहलोत को बदलकर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की बात रखी थी।
विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पटखनी खाने के बाद पार्टी को तो जैसे काठ मार गया है। ऐसे में आईएनडीएआई में उसकी स्थिति कमजोर हुई है?
आईएनडीएआई का कोई मतलब ही नहीं है। दलों को मिलाने से दिल नहीं मिला करते हैं। एमपी के चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को मतलबी पार्टी कह दिया। कांग्रेस को झूठी पार्टी बना दिया। उन्होंने कांग्रेस को भाजपा से मिला हुआ भी बताया है। आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के नेता गाली दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ में आप ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया। हमारे नेताओं को बुरा-भला कहा। अब अखिलेश यादव को कांग्रेस के साथ नहीं आना चाहिए, ऐसा होने पर जनता भी उन्हें भाजपा से मिला हुआ समझेगी। आज हम एक-दूसरे को गाली दे रहे हैं, कल हम मिल जाएं। जनता तो समझेगी कि हम उसे बेवकूफ बना रहे हैं। जनता सब समझती है। जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसका पूरे देश में जनाधार है। भाजपा को कांग्रेस ही टक्कर दे सकती है।
सपा ने आपसे छह सीटें मांगी थीं और उसने 60 से ज्यादा सीटों पर आपको नुकसान पहुंचा दिया। इसे क्या कहेंगे?
सपा को मध्य प्रदेश में छह सीटें दे देनी चाहिए थीं। उन्होंने मध्य प्रदेश में पार्टी का विरोध किया। इससे जनता के बीच गलत संदेश गया। अब परिणाम सबके सामने है।
कमलनाथ का 'ये अखिलेश-वखिलेश कौन हैं' का डॉयलाग बहुत समय तक पार्टी के कानों में गूंजता रहेगा? अब तो उत्तर प्रदेश में सपा आपको घास भी नहीं डालेगी?
सपा ने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को निशाने पर रखा है। जहां तक कमलनाथजी की बात है, उनका भाव अलग था। वह उनकी बातचीत का तरीका था। वैसे भी पार्टी ने इस बात का भी समर्थन नहीं किया। खुद पार्टी अध्यक्ष खरगेजी ने भी कुछ नहीं कहा, इसलिए इस बात को इश्यू नहीं बनाना चाहिए।
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ऐसे में क्या पार्टी सपा की विरोधी बसपा से समझौता कर सकती है?
बिल्कुल, बसपा से बात करनी चाहिए। बसपा ही क्यों, औवेसी से भी बात होनी चाहिए। उनके साथ आने से ही भाजपा से मुकाबला किया जा सकता है।
पार्टी को यह भी याद रखना चाहिए कि यही बसपा है, जिससे उत्तर प्रदेश में समझौता करके आपने राज्य में अपना जनाधार खोया था?
2017 में कांग्रेस और सपा मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ीं। 2019 के संसदीय चुनाव में सपा-बसपा साथ थीं। इसमें पुराना नफा-नुकसान नहीं देखना चाहिए। परिस्थितियां बदलती रहती हैं। इन्हीं का आकलन कर आगे बढ़ना चाहिए।
आपकी नजर में कांग्रेस की मजबूती के लिए क्या करना चाहिए?
संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता है। वामपंथी विचारधारा वाली कोटरी को हटाया जाना चाहिए। जिस तरह राहुल गांधी ने 2019 में हार के बाद इस्तीफा दे दिया था, कोटरी में शामिल नेताओं को भी नैतिक मूल्यों का निर्वहन करना चाहिए। पार्टी में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अब खरगे अध्यक्ष हैं, लेकिन कोटरी के नेता पुराने ही हैं। वह अपनी विचारधारा से अलग फैसले नहीं लेने देते हैं। खरगेजी को भी फैसला लेने में दिक्कत होती है।
डीएमके सांसद सेंथिल ने कहा है कि भाजपा गोमूत्र वाले राज्यों में चुनाव जीत रही है?
डीएमके नेताओं की यदि यही हरकतें रहीं और सनातन धर्म के खिलाफ वे बकवास करते रहे तो भाजपा गोमूत्र वाले राज्यों में ही नहीं, सांड़ वाले राज्यों में भी चुनाव जीतेगी। जहां तक संसद में गोमूत्र छिड़कने की बात है तो संसद मंदिर है और मंदिर में पंचगव्य प्रयोग होता ही है। यह रावण के खानदान के लोग हैं। आसुरी शक्तियां हैं, ये भारत से सनातन धर्म को मिटाना चाहती हैं, भारतीय लोकतंत्र को खत्म करना चाहती हैं।
आचार्य प्रमोद कृष्णम ने पार्टी नेतृत्व को पत्र लिखकर किया आगाह
आचार्य प्रमोद कृष्णम ने सनातन धर्म का विरोध नहीं करने के लिए पार्टी नेतृत्व को पत्र भी लिखा है। उन्होंने बताया कि पत्र में लिखा है कि पार्टी का खुला सत्र बुलाया जाना चाहिए। उसमें ठोस फैसले लिए जाने चाहिए। सनातन धर्म को लेकर भी खुलकर चर्चा होनी चाहिए।
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