धरा की धमनियां हैं नदियां, नदियों के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई दिवस
हिमालय का संभरण क्षेत्र हो या फिर प्रायद्वीप भारत का संभरण क्षेत्र दोनों में बड़ी छोटी वर्षभर बहने वाली या फिर बरसात पर निर्भर रहने वाली हजारों नदियों का जाल भारत में है। दुनिया की सर्वाधिक पवित्र नदी गंगा भी यहीं बहती है। भारतवासियों का नदियों से धार्मिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक व सामाजिक नाता है। यही कारण है कि भारत को नदियों के देश के रूप में भी पहचाना जाता है।

संपूर्ण विश्व के इतिहास को नदियों की दृष्टि से खोजने पर चार पुरातन नदी घाटी सभ्यताओं की जानकारी प्राप्त होती है, जिसमें सिंधु घाटी, मिस्र, चीन और मेसोपोटामिया शामिल हैं। मेसोपोटामिया सभ्यता दजला-फरात नदियों के किनारे बसी, मिस्र की सभ्यता नील नदी किनारे विकसित हुई, चीन की आबादी का फैलाव पीली नदी के किनारे हुआ और सिंधु घाटी सभ्यता का विकास सिंधु नदी के क्षेत्र में हुआ।
इन नदी घाटियों में सभ्यताएं बसीं, पलीं, बढ़ीं और विकसित हुईं, जिनके अवशेष आज भी हमें नदियों के महत्व को इंगित करते हैं। भारत भूमि की यदि बात करें तो यहां सिंधु घाटी सभ्यता का फैलाव बहुत विस्तृत था। इसमें जहां मोहनजोदड़ो जैसा घनी आबादी के नगर का इतिहास हमें मिलता है, वहीं धोलावीरा जैसे प्राचीन नगर की कहानी भी इतिहास से पता चलती है।
नदियों के किनारे बसे इस पुरातन समाज की तुलना वर्तमान के महानगरों से भी की जा सकती है, क्योंकि आज भी संसार के अधिकांश देशों के प्रमुख शहर किसी न किसी नदी किनारे स्थित हैं। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि नदियों अर्थात साफ पानी का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व पुरातनकाल से ही है। नदी संभरण क्षेत्रों को यदि हम अपने जीवन का पालना कहें, तो गलत नहीं होगा। भारत के तमाम बड़े व प्राचीन शहर भी नदियों के किनारे ही बसे हैं।
हिमालय का संभरण क्षेत्र हो या फिर प्रायद्वीप भारत का संभरण क्षेत्र, दोनों में तमाम बड़ी, छोटी, वर्षभर बहने वाली या फिर बरसात पर निर्भर रहने वाली हजारों नदियों का जाल भारत भूमि पर विस्तृत है। दुनिया की सर्वाधिक पवित्र नदी गंगा भी यहीं बहती है। भारतवासियों का नदियों से धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व सामाजिक नाता है। यही कारण है कि भारत को नदियों के देश के रूप में भी पहचाना जाता है।
वर्तमान में भारत की नदियां संकट के दौर से गुजर रही हैं। नदियों के सामने जहां प्रदूषण व अतिक्रमण जैसी भयावह चुनौतियां खड़ी हैं, वहीं उनमें निरंतर घट रही पानी की मात्रा भी गंभीर चिंता में डालने वाला है। कस्बों व शहरों के घरेलू बहिस्राव के कारण नदियों ने गंदे नाले का रूप लेना प्रारंभ कर दिया है। सैकड़ों बरसाती नदियां बहुत पहले ही अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। उन नदियों को वर्तमान पीढ़ी गंदा नाला समझती है।
जब नदियां प्रदूषित हो रही हैं तो किनारे बसा समाज भी उस प्रदूषण के असर से बच नहीं पा रहा है। हमारी कृषि व्यवस्था का कुछ हिस्सा भी उससे प्रभावित हो रहा है। आज गंदे पानी को नदी जल से अलग रखने के विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस गंदे पानी को उपचारित करके उसे कृषि कार्यों व उद्योगों में उपयोग में लाया जा सकता है। हमारी जिन नदियों ने नालों को रूप धारण कर लिया है, उन्हें पुनः नदी बनाने का यह भी एक उपाय है। वस्तुत: नदियां हमारे देश की धमनियां हैं।
यदि इन धमनियों में प्रदूषित पानी बहेगा तो शरीर बीमार ही रहेगा। हमें नदी रूपी इन धमनियों में शुद्ध जल के बहाव को बनाना ही होगा। इसके लिए नदियों के प्रति मित्रवत व्यवहार रखना तथा उनकी चिंता करना जरूरी है।
आज यानी 14 मार्च का दिन नदियों के लिए कार्रवाई दिवस के रूप में पूरा विश्व मनाता है, अर्थात अपनी नदियों के सुधार हेतु प्रयास प्रारंभ करने का दिन। हमें अपनी नदियों के प्रति सच्चा प्रेम व आदरभाव दिखाने तथा उनके साथ मित्रवत व्यवहार प्रारंभ करने का दिन है। नदियों के प्रति अपने मित्रवत व्यवहार को मात्र एक दिन के लिए सीमित न रखते हुए उसे प्रतिदिन के लिए अपने जीवन में उतारना होगा।
जब प्रत्येक नागरिक का व्यवहार नदियों के प्रति सच्चे आदर का होगा, तब ही नदियां अपने खोए हुए गौरव को प्राप्त करेंगी। पिछले एक दशक में नदियों के प्रति देश में एक चेतना अवश्य पैदा हुई है, जिसके चलते सरकार व समाज दोनों नदियों की बेहतरी के लिए अपने-अपने स्तर से प्रयासरत हैं। नदियों के लिए किए जा रहे प्रयासों की गति अभी धीमी है। इसमें तेजी लाने के लिए कार्यों में निरंतरता लाने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री ने देश के समक्ष वाटर विजन 2047 प्रस्तुत किया है यानी आजादी के सौ वर्ष पूरे होने तक देश को प्रत्येक वह कार्य करना है, जो देश को पानी के मामलों में सबल बना सके। इसमें हमारी नदियां भी शामिल हैं। हमें अपनी नदियों को 2047 तक निर्मल व अविरल बनाने के संकल्पित लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ना होगा। इसमें यदि देश के सभी नागरिक की भागीदारी होगी तो यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
प्रत्येक नागरिक को नदी प्रेमी बनना होगा। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि पुरातन नदी घाटी सभ्यताएं क्यों विस्मृत हुईं, यदि इस तथ्य से हम परिचित होंगे तो अपनी नदियों के साथ मित्रवत व्यवहार अवश्य करेंगे।
नदियां हमारे देश की धमनियां हैं। इन धमनियों में यदि प्रदूषित जल पहुंचेगा तो शरीर बीमार होगा ही, लिहाजा हमें नदी रूपी इन धमनियों में शुद्ध जल के बहाव को सुनिश्चित करना होगा
- रमन कांत पर्यावरण, संरक्षक
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