Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Pasmanda Muslims: मुस्लिम राजनीति का खेल बदल सकती है पीएम मोदी की अपील! कौन होगा विजेता, जानें- मुसलमानों का नजरिया

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Thu, 14 Jul 2022 05:20 PM (IST)

    Pasmanda Muslims पसमांदा को लेकर मुस्लिम समाज में दो तरह की राय है। कुछ इसे मुद्दा नहीं मानते तो कुछ इसे भारतीय मुस्लिमों की हकीकत बताते हैं। ऐसे में पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने की भाजपा की मुहिम का क्या रंग लाएगी? पढ़ें- विशेषज्ञों की राय।

    Hero Image
    Pasmanda Muslims को जोड़ने की पीएम मोदी की अपील का क्या होगा असर। फोटो - फाइल

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। हिंदू बाहुल्य देश में मुसलमानों की राजनीति का एक खास मुकाम है। चुनावी सीजन में तमाम दलों में मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की होड़ रहती है। फिलहाल चुनावी सीजन नहीं है लेकिन मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका (पसमांदा) राजनीति का केंद्र बना हुआ है। वजह है पिछले दिनों पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने के लिए की गई अपील। हैदराबाद के कार्यकर्ता सम्मेलन में पीएम मोदी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से ये अपील की थी। भाजपा ने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है। इसके साथ ही विपक्षी दलों में भी मुस्लिम वोटों को लेकर झटपटाहट साफ देखी जा सकती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पीएम मोदी की इस अपील के दो मुख्य आयाम हैं। पहला क्या भाजपा पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने और उन्हें अपने वोट बैंक में तब्दील करने में सफल होगी? पिछले कुछ चुनावों से भाजपा को आठ से नौ फीसद मुस्लिम वोट मिलने के आंकड़े आते रहे हैं। भाजपा इसी वोट बैंक को और मजबूत करना चाहती है। इससे भाजपा को लंबे समय तक केंद्र में सत्ता बनाए रखने और दक्षिण के राज्यों में पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है, क्या भाजपा की इस मुहिम का पसमांदा या कहें दलित व पिछड़े मुस्लिमों पर कोई असर पड़ेगा?

    'दलित मुस्लिम जैसा कुछ नहीं है'

    इंकलाब के पूर्व संपादक शकील शम्सी बताते हैं कि इस्लाम में जातपात का कोई भेदभाव नहीं है। यही वजह है कि पूर्व में बड़े पैमाने पर गैर मुस्लिम लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया था। हिंदुओं मे भी सामान्य, पिछड़े और दलित वर्ग के काफी लोगों ने धर्म परिवर्तन किया था। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों में ही ये भेद देखने को मिलता है। यहां जिन्होंने धर्म परिवर्तन किया, वो अपनी वंशावली सिस्टम से बाहर नहीं निकल सके। पसमांदा मुस्लिमों की राजनीति, मुसलमानों को बांटने का एक प्रयास है।

    'किसी दल ने पसमांदा मुस्लिमों पर ध्यान नहीं दिया'

    राज्यसभा के पूर्व सांसद और 'मसावत की जंग' व 'दलित मुस्लिम' किताब के लेखक अली अनवर 'पसमांदा मुस्लिम महाज' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अली अनवर के मुताबिक अभी मुस्लिमों की जो राजनीति है, उसका केंद्र अशराफ (अपर कास्ट) हैं। अजलाफ (ओबीसी) और अरजाल (दलित), जिन्हें मिलाकर पसमांदा कहा जाता है, राजनीति में उनकी हिस्सेदारी बहुत सीमित है। अरजाल मुस्लिमों को तो दलित आरक्षण का लाभ तक नहीं मिलता। नौकरियों में भी उनकी भागीदारी बहुत कम है। केवल पसमांदा की बात करने से कुछ नहीं होगा। पसमांदा मुस्लिमों से हमदर्दी है तो उन्हें भी हिंदू दलितों की तरह आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ानी होगी। मुस्लिमों के खिलाफ नफरती बयान हो या उनके खिलाफ कार्रवाई या आर्थिक बहिस्कार, इन सबका शिकार सबसे ज्यादा पसमांदा ही होते हैं। आज तक किसी दल ने पसमांदा मुस्लिमों की तरफ ध्यान नहीं दिया, इसीलिए भाजपा को ये मौका मिल रहा है। इसका दूरगामी प्रभाव अवश्य पड़ेगा। मुस्लिमों में पसमांदा का अनुपात अगर 100 में से 80 का है तो उन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिए। भाजपा के इस कदम से अन्य दलों को भी इस तरफ ध्यान देना होगा।

    जमाल सिद्दीकी ने बताया भाजपा का ब्लू प्रिंट

    भाजपा में अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी खुद पसमांदा वर्ग से हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा में सभी स्तर पर पसमांदा मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व है। पीएम की अपील पर काम करते हुए मोर्चा एक राष्ट्रीय कमेटी गठित कर रहा है। ये कमेटी राज्यों में पिछड़ों की भागीदारी और उन्हें मिलने वाली सरकारी योजनाओं के लाभ की निगरानी करेगी। राज्य स्तर पर भी इसी तरह की कमेटी बनेगी। इसके अलावा संगठन में पसमांदा मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। सिद्दीकी के अनुसार मुस्लिमों की राजनीति करने वाले दलों ने भी उन्हें हमेशा उन्हें नजरअंदाज कर अशराफ को आगे बढ़ाया है। इन्हीं दलों ने मुस्लिम समाज में ये खाई, भ्रम और डर पैदा किया है। यही वजह है कि मुस्लिम समाज लगातार भाजपा से जुड़ रहा है। आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव इसका ताजा उदाहरण है।

    पसमांदा मुस्लिमों का भविष्य

    अलग-अलग टीवी डिबेट, विभिन्न समाचार पत्रों के संपादकीय, वरिष्ठ पत्रकारों और समाजशास्त्रियों ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। इसके मुताबिक पसमांदा मुस्लिमों की राजनीति से भाजपा को लाभ मिलेगा या नहीं, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन इतना साफ है कि भाजपा कि इस पहल से पसमांदा मुस्लिमों की स्थिति मजबूत होगी। पसमांदा मुस्लिमों की अनदेखी करने वाले अन्य दलों को भी अब इनकी तरफ ध्यान देना होगा। यूपी के एमएलसी चुनाव में इसका उदाहरण देखा जा चुका है। योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में पसमांदा मुस्लिम दानिश अंसारी को कैबिनेट में जगह दी। दानिश तब राज्य के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। भाजपा के इस कदम ने सभी दलों को चौंका दिया। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी को जैसे ही विधान परिषद में किसी को भेजने का मौका मिला, उसने भी पसमांदा मुस्लिम जसमीर अंसारी को चुना।

    यह भी पढ़ें -

    Explainer: कौन हैं पसमांदा मुसलमान, पीएम ने जिन्हें जोड़ने का किया आव्हान; क्या हैं राजनीतिक मायने