सरकार का 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' पर पुनर्विचार से इनकार, केंद्रीय मंत्री ने कहा- फिलहाल नहीं है कोई योजना
केंद्र सरकार ने राज्यसभा को बताया कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और पंथनिरपेक्षता शब्दों को हटाने का कोई इरादा नहीं है। कानून मंत्री अर्जुन राम म ...और पढ़ें

पीटीआई, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने राज्यसभा को सूचित किया है कि संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'पंथनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने या उस पर पुनर्विचार करने की 'कोई वर्तमान योजना या इरादा' नहीं है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह दोनों ही शब्द तत्कालीन केंद्र सरकार ने आपातकाल के दौरान जोड़े थे। संसद को यह भी बताया गया कि सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से इन दो शब्दों को हटाने के लिए औपचारिक रूप से कोई कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है।
सरकार ने क्या कहा?
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को एक लिखित उत्तर में कहा कि जबकि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक हलकों में चर्चाएं या बहसें हो सकती हैं कि सरकार द्वारा इन शब्दों में संशोधन के संबंध में कोई औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव नहीं घोषित किया गया है।
उन्होंने कहा कि सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'पंथनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने या पुनर्विचार करने का कोई वर्तमान योजना या इरादा नहीं है।
प्रस्तावना में संशोधन के संबंध में किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सहमति की आवश्यकता होगी, लेकिन वर्तमान में सरकार ने इन प्रविधानों को बदलने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है।
कोर्ट ने किया स्पष्ट
नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने 1976 के संशोधन (42वें संवैधानिक संशोधन) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें यह पुष्टि की गई थी कि संसद का संविधान में संशोधन करने का अधिकार प्रस्तावना तक फैला हुआ है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में 'समाजवाद' का अर्थ कल्याणकारी राज्य है और यह निजी क्षेत्र की वृद्धि में बाधा नहीं डालता, जबकि 'पंथनिरपेक्षता' संविधान की मूल संरचना का अभिन्न हिस्सा है। कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों के बनाए गए माहौल के संबंध में मेघवाल ने कहा कि कुछ समूह इन शब्दों के पुनर्विचार के लिए राय व्यक्त कर सकते हैं।
जजों की 193 रिक्तियों के लिए अभी तक नामों की सिफारिश नहीं
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा को सूचित किया कि देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में कुल 371 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं और उच्च न्यायालयों की कॉलेजियम ने इन रिक्तियों में से 50 प्रतिशत से अधिक के लिए अभी तक कोई सिफारिश नहीं भेजी है।
उच्च न्यायालयों से 193 रिक्तियों के खिलाफ सिफारिशें अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं। सरकार ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालयों को रिक्ति होने से कम से कम छह महीने पहले सिफारिशें करनी होती हैं। इस समयसीमा का कभी-कभी ही पालन होता है।
कितने न्यायाधीश हैं कार्यरत
मेघवाल ने कहा कि 18 जुलाई तक, 1122 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 751 कार्यरत हैं। विभिन्न उच्च न्यायालयों में इन रिक्तियों के खिलाफ 178 नियुक्तियों के लिए प्रस्ताव सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच विभिन्न प्रक्रियाओं में हैं।

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