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    सिर्फ 37 घंटे चर्चा, एक महीने में 12 बिल पास... हंगामे की भेंट चढ़ा मानसून सत्र

    Updated: Thu, 21 Aug 2025 09:03 PM (IST)

    संसद का मानसून सत्र विपक्ष और सत्ता पक्ष के टकराव में हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोकसभा में कामकाज मुश्किल से 37 घंटे और राज्यसभा में लगभग 39 प्रतिशत ही हो पाया। ऑपरेशन सिंदूर पर गरमागरम चर्चा हुई। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन की गरिमा पर चिंता जताई। सांसदों से आत्ममंथन करने की अपील की गई कि भविष्य में ऐसी स्तिथि न आये।

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    मानसून सत्र इस बार विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच टकराव और हंगामे की भेंट चढ़ गया। (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद का मानसून सत्र इस बार विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच टकराव और हंगामे की भेंट चढ़ गया। जुलाई के अंतिम सप्ताह से लेकर अगस्त के तीसरे सप्ताह तक चले इस सत्र से उम्मीद थी कि दोनों सदनों में कई अहम मुद्दों पर गंभीर विमर्श होगा, मगर नतीजा निराशाजनक रहा।

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    120 घंटे की निर्धारित कार्यसूची में लोकसभा मुश्किल से 37 घंटे ही चल सकी, जबकि राज्यसभा में भी महज 38.88 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया। बाकी सारे समय नारेबाजी, सदन में तख्तियां लहराना, विधेयकों की प्रतियां फाड़ना और लगातार व्यवधान के लिए ही यह सत्र जाना जाएगा। कुछ विधेयक जरूर पारित हुए लेकिन चर्चा नहीं हो सकी। चर्चा केवल ऑपरेशन सिंदूर पर हुई जो गरमागर्म रही।

    सांसदों की रवैय्ये पर लोकसभा स्पीकर ने जताई चिंता 

    जबकि उपराष्टपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के कारण माहौल गर्म रहा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सत्र के समापन पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए साफ कहा कि सदन की गरिमा के अनुरूप जो भाषा और आचरण अपेक्षित है, वह इस बार दिखाई नहीं दिया। उन्होंने याद दिलाया कि पूरे देश की नजर सांसदों के आचरण पर होती है और जनता की उम्मीद रहती है कि जनप्रतिनिधि उनके मुद्दों पर गंभीर बहस करेंगे।

    परंतु विपक्षी सदस्यों द्वारा बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर लगातार हंगामे ने कार्यवाही को लगभग ठप कर दिया। विपक्ष का आरोप था कि इस प्रक्रिया में मतदाताओं के अधिकारों से छेड़छाड़ की गई है और इसी विषय पर चर्चा की मांग ने पूरे सत्र को जकड़कर रख दिया।

    सदन में मर्यादा-गरिमा बनाएं रखें सांसद:  ओम बिरला 

    दोनों सदनों में समापन के वक्त यह स्वीकार किया गया कि बहुमूल्य समय नष्ट हुआ और जनता की अपेक्षाएं अधूरी रह गईं। ओम बिरला और हरिवंश ने सांसदों से आत्ममंथन करने एवं भविष्य में ऐसी परिस्थितियां नहीं बनने देने की अपील की, क्योंकि इससे लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था की गरिमा आहत होती है। उन्होंने जोर दिया कि असहमति लोकतंत्र का स्वाभाविक हिस्सा है, किंतु इसे गरिमा और मर्यादा के साथ व्यक्त किया जाना चाहिए।

    राज्यसभा में भी तस्वीर लगभग वैसी ही रही। उपसभापति हरिवंश ने सत्र की उत्पादकता मात्र 38.88 प्रतिशत रहने पर गहरी निराशा जताई और इसे “आत्ममंथन का विषय'' बताया। पूरे सत्र में सदन ने केवल 41 घंटे 15 मिनट ही काम किया। प्रश्नकाल और शून्यकाल बुरी तरह प्रभावित रहे। कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषय चर्चा से बाहर रह गए।

    सत्र का समापन भले ही औपचारिक धन्यवाद ज्ञापनों और त्योहारों की शुभकामनाओं के साथ हुआ, लेकिन पीछे छूट गया वह गूंज, जिसमें संसद की गरिमा के क्षरण की गहरी चिंता दर्ज है।

    देश की सर्वोच्च विधायिका का यह मानसून सत्र आखिरकार इस सवाल के साथ खत्म हुआ कि जब जनहित के मुद्दे नारेबाजी और गतिरोध के बीच दब जाएं तो लोकतंत्र अपने नागरिकों को कौन-सा संदेश देता है। यही प्रश्न आने वाले शीतकालीन सत्र के लिए चुनौती बनकर खड़ा रहेगा। हालांकि विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बावजूद विधायी कामकाज रुका नहीं।

    लोकसभा में 14 विधेयक पेश हुए, जिनमें 12 पारित किए गए। इनमें आयकर विधेयक, कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक और आनलाइन गेमिंग विनियमन विधेयक शामिल हैं। संविधान के 130वें संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है।

    प्रश्नकाल का हाल और भी खराब रहा। लोकसभा में 419 तारांकित प्रश्न सूचीबद्ध थे, किंतु सिर्फ 55 का उत्तर दिया जा सका। 'आपरेशन ¨सदूर' और भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों पर विशेष विमर्श हुआ, लेकिन अंतरिक्ष कार्यक्रम पर चर्चा अधूरी रह गई।

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