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    ‘ब्रांड ठाकरे’ के पतन का सेमीफाइनल था नगर परिषद चुनाव, महानगरपालिका इलेक्शन में क्या होगा?

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 07:58 PM (IST)

    महाराष्ट्र नगर परिषद चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन (भाजपा, शिवसेना, राकांपा) ने 70% से अधिक सीटें जीतीं। विपक्षी दलों ने ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ा है। ...और पढ़ें

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    29 महानगरपालिकाओं के चुनाव इसका फाइनल हो सकते हैं (फाइल फोटो)

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में 288 नगर परिषद एवं नगर पंचायतों के लिए हुए चुनावों के परिणाम ब्रांड ठाकरे के पतन का सेमीफाइनल बनकर सामने आए हैं। अगले महीने होने जा रहे 29 महानगरपालिकाओं के चुनाव इसका फाइनल हो सकते हैं। खासतौर से मुंबई महानगरपालिका में ठाकरे परिवार की करीब 30 साल से चली आ रही सत्ता का भी अंत हो जाए तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

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    राज्य की 246 नगर परिषद एवं 42 नगर पंचायतों के लिए हुए चुनाव में 70 प्रतिशत से अधिक नगराध्यक्ष सत्तारूढ़ गठबंधन, अर्थात भाजपा, शिवसेना एवं राकांपा के चुनकर आए हैं। ये चुनाव परिणाम आते ही विपक्षी दलों कांग्रेस एवं शिवसेना (यूबीटी) की ओर से अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा जाने लगा है, तथा भाजपानीत गठबंधन की जीत का श्रेय राज्य के चुनाव आयोग को दिया जा रहा है।

    कमियों की ओर नहीं दे रहे ध्यान

    लेकिन ये दल अपनी कमियों की ओर अब भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। इस भारी जीत के बाद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जहां जीत का श्रेय अपनी टीम के सदस्यों को दिया, और कहा कि इस छोटे चुनाव में भी वह अपने उन कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहे, जो लोकसभा एवं विधानसभा जैसे बड़े चुनावों में पार्टी के लिए जी जान से मेहनत करते हैं।

    फडणवीस ने कहा कि चुनाव के दौरान वह 10 हजार से अधिक आबादी वाली सभी नगर पंचायतों तक प्रचार के लिए गए, जिससे उनकी पार्टी के कार्यकर्ता ऊँचे मनोबल के साथ चुनाव लड़ सकें। जो बात फडणवीस अपने बारे में कह रहे हैं, वही बात दोनों उपमुख्यमंत्रियों एकनाथ शिंदे एवं अजीत पवार के मामले में भी सामने आई। ये दोनों वरिष्ठ नेता भी अपने नगर परिषद एवं नगर पंचायत प्रत्याशियों के पक्ष में जमकर प्रचार करते दिखाई दिए।

    प्रचार के लिए नहीं निकले उद्धव

    जबकि दूसरी ओर का चित्र इसके बिल्कुल विपरीत था। न तो उद्धव ठाकरे प्रचार के लिए बाहर निकले, ना ही उनके विधायक पुत्र आदित्य ठाकरे। जिन दिनों प्रचार अपने चरम पर था, उन्हीं दिनों आदित्य ठाकरे कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सुर में सुर मिलाकर वोट चोरी के विरुद्ध अभियान चलाते दिखाई दे रहे थे। संभवतः इसी का परिणाम है कि 60 साल पहले बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना को तोड़ देनेवाले एकनाथ शिंदे शिवसेना के जहां 57 नगराध्यक्ष चुने गए, वहीं शिंदे पर पार्टी और चुनाव चिन्ह चुराने का आरोप लगानेवाले उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) दहाई के अंक तक भी नहीं पहुंच पाई।

    उसके सिर्फ नौ नगराध्यक्ष चुनकर आए हैं, और उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे तो अपना खाता भी नहीं खुलवा सके। करीब 19 साल अलग दल की राजनीति करते रहे राज ठाकरे इसी वर्ष जुलाई में मराठी भाषा के बहाने उद्धव के साथ एक मंच पर आए थे। तभी से ‘ब्रांड ठाकरे’ की बहुत चर्चा हो रही है।

    लेकिन यह ‘ब्रांड ठाकरे’ को तो इस एकता के एक माह के अंदर अगस्त में ही झटका लग चुका है, जब मुंबई बेस्ट कर्मचारी कोआपरेटिव क्रेडिट सोसायटी के चुनाव में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और शिवसेना (यूबीटी) के संयुक्त पैनल को भाजपा के सामने मुंह की खानी पड़ी थी। उसके विरुद्ध भाजपा समर्थित पैनल ने सभी 21 सीटें जीतकर ‘ब्रांड ठाकरे’ की हवा निकाल दी थी।

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