असमंजस में विपक्षी गठबंधन, न बसपा छोड़ते बन रही न पकड़ते; लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए दुविधा
क्या बसपा भी विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में शामिल होगी? यह प्रश्न कई बार उठा और कई बार बसपा प्रमुख मायावती ने इसे सिरे से खारिज भी किया लेकिन लोकसभा चुनाव पास आते-आते मायावती के बयान किसी को भी किसी की जरूरत कभी भी पड़ सकती है ने अटकलों को फिर हवा दी है। विपक्षी गठबंधन की रणनीति अब सीटों के बंटवारे के निकट पहुंच चुकी है।
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। क्या बसपा भी विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में शामिल होगी? यह प्रश्न कई बार उठा और कई बार बसपा प्रमुख मायावती ने इसे सिरे से खारिज भी किया, लेकिन लोकसभा चुनाव पास आते-आते मायावती के बयान 'किसी को भी किसी की जरूरत कभी भी पड़ सकती है' ने अटकलों को फिर हवा दी है।
यह माना जा रहा है इस तरह बसपा प्रमुख ने समझौते की बातचीत के लिए खिड़की खोल दी है, लेकिन फिलहाल गठबंधन में उनके लिए दरवाजे खुलना आसान नजर नहीं आ रहा। खास तौर पर कांग्रेस दुविधा में है, क्योंकि पार्टी में बसपा के पक्ष की मजबूत दलीलों के साथ कांग्रेसी पैरोकार बड़ी संख्या में हैं तो इसके विरोध में खड़ी सपा के साथ आईएनडीआईए के दूसरे दलों के दिग्गज हैं।
विपक्षी गठबंधन की रणनीति अब सीटों के बंटवारे के निकट पहुंच चुकी है। कई राज्यों में जहां दलों में आपसी खींचतान है, वहां उसे सुलझाने के प्रयास तेज हो गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख राज्य है उत्तर प्रदेश।
80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में कांग्रेस के साथ अब सपा और रालोद के तालमेल में कोई मुश्किल नजर नहीं आ रही, लेकिन यहां पेंच फंसा है तो बसपा का। निस्संदेह बसपा को अब तक गठबंधन में शामिल होने का न्योता नहीं है और मायावती भी कई बार इसमें शामिल होने की संभावनाओं को खारिज कर चुकी हैं, लेकिन आईएनडीआईए के रणनीतिकार इसे पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं। दरअसल, यूपी में लगभग 22 प्रतिशत दलित आबादी है। बेशक इस वोटबैंक में अपनी कल्याणकारी योजनाओं से भाजपा ने मजबूत सेंध लगा ली हो, लेकिन इस 22 में से 12 प्रतिशत जाटव बिरादरी पर सजातीय मायावती की अब भी मजबूत पकड़ है। साथ ही मुस्लिम मतों में भी उनकी कुछ भागीदारी है।
कांग्रेसी रणनीतिकार मान रहे हैं कि यदि बसपा को अकेला छोड़ा तो वह विपक्षी गठबंधन का नुकसान करेगी। बसपा को यदि दलित वर्ग कुछ कमजोर आंकेगा भी तो भाजपा उसके लिए विकल्प बन सकती है। सूत्रों ने बताया कि हाल ही में कांग्रेस हाईकमान ने उत्तर प्रदेश के पार्टी नेताओं के साथ जो बैठक की थी, उसमें ऐसे कई तर्क बसपा की पैरोकारी में रखे गए थे। इनमें खास तौर पर बसपा के जमीनी आधार को जानने-समझने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेता थे, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई नेता सपा के साथ ही गठबंधन के पक्षधर थे।
'गठबंधन के बाद भी वोट ट्रांसफर नहीं कर पाती बसपा'
विपक्षी दलों के साथ मिलकर बनाए गए इस गठबंधन में सपा या बसपा विकल्प के रूप में इसलिए हैं, क्योंकि सपा नेता बसपा को साथ रखने के पक्ष में नहीं हैं। उनका तर्क है कि बसपा गठबंधन करने के बाद भी अपना वोट ट्रांसफर नहीं कर पाती या नहीं कराती। उस पर भाजपा से निकटता के आरोप भी लगाए जाते हैं। सपा महासचिव शिवपाल यादव तो स्पष्ट कह भी चुके हैं कि बसपा यदि भाजपा से दूरी बना ले तो उसे गठबंधन में शामिल करने पर विचार हो सकता है।
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वहीं, बसपा के मुकाबले सपा का पलड़ा इसलिए भी भारी है, क्योंकि अखिलेश यादव के रिश्तेदार राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी उसके पक्ष में पूरी तरह से खड़े हैं। रालोद मुखिया भी अखिलेश के साथ मजबूती से हैं। हालांकि, इस लड़ाई को 'करो या मरो' के इरादे से मैदान में उतरने जा रहे एकजुट विपक्ष में बसपा के लिए संभावनाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। ताजा बयान से मायावती ने भी बातचीत के लिए कुछ संकेत दिया है।
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