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    Lok Sabha Election: छोटे दलों संग भाजपा की बड़ी रणनीति, साधे पूरब से पश्चिम तक समीकरण, विपक्षी दलों की बढ़ी चुनौती

    By Jagran News Edited By: Abhinav Atrey
    Updated: Thu, 08 Feb 2024 07:13 PM (IST)

    लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजग के लिए अबकी बार 400 पार का नारा सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए नहीं किया बल्कि सरकार के कामकाज की ताकत के साथ-साथ भाजपा संगठन की ठोस रणनीति के आधार पर दिया है। इस बड़े लक्ष्य के लिए भाजपा की प्रदेश इकाइयां किस तरह माइक्रो मैनेजमेंट कर रही हैं उसकी बानगी उत्तर प्रदेश में साफ दिखाई देती है।

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    छोटे दलों संग भाजपा की बड़ी रणनीति, साधे पूरब से पश्चिम तक समीकरण। (फाइल फोटो)

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजग के लिए 'अबकी बार 400 पार' का नारा सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए नहीं किया, बल्कि सरकार के कामकाज की ताकत के साथ-साथ भाजपा संगठन की ठोस रणनीति के आधार पर दिया है। इस बड़े लक्ष्य के लिए भाजपा की प्रदेश इकाइयां किस तरह 'माइक्रो मैनेजमेंट' कर रही हैं, उसकी बानगी उत्तर प्रदेश में साफ दिखाई देती है।

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    सूबे की सभी 80 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ भाजपा छोटे दलों संग बड़ी रणनीति पर काम कर रही है। ब्रज, अवध और बुंदेलखंड पहले से मजबूत थे। कुछ दलों को साथ लेकर सपा के प्रभाव वाले पूर्वांचल को साधा और अब राष्ट्रीय लोकदल के सहारे चुनौतीपूर्ण माने जा रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संतुलन बनाने की भी तैयारी पूरी कर ली है।

    उत्तर प्रदेश में अंचलवार क्षेत्रीय दलों का जातीय प्रभाव

    सर्वाधिक संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश में अंचलवार क्षेत्रीय दलों का जातीय प्रभाव है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के परिणाम बताते हैं कि अवध, ब्रज और बुंदेलखड अंचल में भाजपा के लिए कोई खास चुनौती नहीं है, लेकिन पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश चुनौतीपूर्ण जरूर था। यहां दलितों और पिछड़ों की आबादी अच्छी संख्या में है।

    पूर्वांचल-पश्चिमी यूपी में सात-सात सीटों पर मिली पराजय

    उसी की वजह से 2019 में सपा, बसपा और रालोद ने प्रदेश में गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो सपा के गढ़ मैनपुरी और कांग्रेस की पारंपरिक सीट रायबरेली सहित भाजपा को पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सात-सात सीटों पर पराजय मिली। लिहाजा, इस बार इन दोनों अंचलों में भाजपा सभी जातीय समीकरणों को पूरी तरह दुरुस्त कर लेना चाहती है।

    इन जातियों की पूर्वांचल में मजबूत स्थिति

    पूर्वांचल की बात करें तो यहां जिन जातियों का मजबूत प्रभाव है, उनमें यादव, कुर्मी, निषाद, राजभर और लोनिया मजबूत स्थिति में हैं। यादव मजबूती से सपा के साथ हैं, लेकिन छह प्रतिशत भागीदारी और प्रदेश की करीब दस सीटों पर असर डालने वाली कुर्मी बिरादरी को साधने के लिए भाजपा ने सरकार और संगठन में इस वर्ग के नेताओं को प्रतिनिधित्व देने के साथ अपना दल (एस) का दामन 2014 से थामे रखा है।

    ओमप्रकाश राजभर को भाजपा वापस अपने साथ ले आई

    जदयू के राजग में शामिल होने से नीतीश कुमार का भी कुछ प्रभाव इस जाति-वर्ग पर पड़ेगा। निषाद पार्टी भाजपा के साथ है और चार प्रतिशत वोट की हिस्सेदारी वाली राजभर जाति के असरदार नेता ओमप्रकाश राजभर को भाजपा वापस अपने साथ ले आई, जो कि 2022 में सपा के साथ चले गए थे।

    दारा सिंह चौहान वापस भाजपा में शामिल

    लोनिया चौहान जाति का भी कुछ असर पूर्वांचल की सीटों पर देखते हुए ही इस जाति के नेता दारा सिंह चौहान को वापस भाजपा में शामिल कराते हुए एमएलसी बना दिया गया है। इस तरह वाराणसी से सांसद पीएम मोदी के आकर्षण के साथ ही छोटी-छोटी जातियों के सहारे पूर्वांचल को साधने की कोशिश भाजपा ने की है।

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 18 प्रतिशत वोट जाटों का

    वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 18 प्रतिशत वोट जाटों का है। जाटों की राजनीति करने वाला राष्ट्रीय लोकदल 2019 में सपा और बसपा के साथ मिलकर लड़ा। वह खुद कोई सीट नहीं जीत सका, लेकिन सपा और बसपा के लिए समीकरण दुरुस्त कर दिए, जिसकी वजह से भाजपा को यहां की सात सीटों पर हार मिली।

    जयंत चौधरी की बातचीत भाजपा के साथ अंतिम दौर में

    अभी तक रालोद मुखिया जयंत चौधरी सपा का हाथ थामे आईएनडीआईए के पाले में खड़े थे, लेकिन अचानक घटनाक्रम बदला और उनकी बातचीत भाजपा के साथ अंतिम दौर में है। भाजपा ने जिस तरह 2024 के लिए पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय गोलबंदी की है, वह चुनावी मैदान में विपक्षी दलों के लिए चुनौती बढ़ा सकती है।

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