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    3 दशक पहले माकपा कार्यकर्ताओं ने काट दिए थे दोनों पैर, झकझोर देगी कण्णूर के सदानंदन मास्टर की कहानी

    Updated: Sun, 13 Jul 2025 09:41 PM (IST)

    कण्णूर के सदानंदन मास्टर के राज्यसभा में मनोनित होने से केरल में वामपंथी हिंसा का सच सामने आएगा। केरल में आरएसएस और भाजपा के 300 से अधिक कार्यकर्ता मारे गए हैं। अमित शाह ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं का सपना साकार करने का समय आ गया है जिन्हें वामपंथी गुंडों ने मारा था।

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    सदानंदन मास्टर को राज्यसभा में मनोनीत करना भाजपा का मास्टरस्ट्रोक (फोटो: पीटीआई)

    नीलू रंजन, जागरण, नई दिल्ली। कण्णूर के सदानंदन मास्टर के राज्यसभा में मनोनित किये जाने के बाद संसद और उसके साथ ही पूरे देश में केरल में वामपंथी हिंसा का क्रूर सच दिखेगा। पिछले पांच दशक में केरल और खासकर कन्नूर में आरएसएस और भाजपा के 300 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है और सदानंदन जैसे हजारों को जीवन भर के लिए अपाहिज बना दिया गया।

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    खुद माकपा के कुछ वरिष्ठ नेता समय-समय पर इन राजनीतिक हत्याओं की हकीकत को सार्वजनिक रूप में स्वीकार करते रहे हैं। अगले साल अप्रैल में केरल विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दोनों पैरों से अपाहिज बना दिए सदानंदन मास्टर को राज्यसभा में मनोनीत करने को भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से काफी अहम माना जा रहा है।

    4 लोग राज्यसभा के लिए मनोनित

    शनिवार की देर रात राष्ट्रपति ने सदानंदन समेत चार लोगों को मनोनीत किया, उसी दिन तिरुवनंतपुरम में अमित शाह ने 'विकसित केरलम सम्मेलन' को संबोधित करते हुए कहा कि 'लेफ्ट के गुंडों द्वारा हत्या किये गए भाजपा के सैंकड़ों कार्यकर्ताओं ने केरल में भाजपा को लाने का जो स्वप्न देखा था, उसे साकार करने का समय आ गया है।'

    भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने ही 2017 में वामपंथी हिंसा के खिलाफ अक्टूबर में कन्नूर से तिरुवनंतपुरम तक 21 दिनों की पदयात्रा निकाली थी। उस साल जुलाई में कन्नूर में भाजपा व आरएसएस के एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं के घरों पर एक साथ हमला कर मारपीट, आगजनी और तोड़फोड़ की गई थी। उसी रात वहां के आरएसएस के कार्यालय में आग लगा दी गई थी।

    माकपा ने आपातकाल समर्थन किया था

    • वैसे तो केरल में आरएसएस के एक कार्यक्रम पर सीपीएम कार्यकर्ताओं द्वारा हमले के साथ राजनीतिक हिंसा की शुरूआत 1969 में ही हो गई थी, लेकिन 1975 में माकपा ने जब आपातकाल समर्थन किया, तो उसके बहुत सारे कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर आरएसएस में शामिल होने लगे। इसी के बाद राजनीतिक हिंसा का दौर शुरू हुआ। सदानंदन खुद पहले माकपा के कार्यकर्ता थे, जो बाद में आरएसएस से जुड़ गए।
    • 1994 में माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा दोनों पैर काटने के बाद मरणासन्न छोड़ दिए गए सदानंदन न सिर्फ कृत्रिम पैरों के सहारे उठ खड़े हुए बल्कि माकपा के सबसे मजबूत गढ़ कन्नूर में वामपंथी हिंसा के प्रतिरोध की मिसाल बन गए। केरल माकपा के तत्कालीन सचिव कोडियारी बालाकृष्णन ने 2016 में भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा को उचित बताया था और कहा कि पार्टी के कैडर को इसके लिए विशेष रूप से ट्रेनिंग दी गई है।
    • यही नहीं, 2012 में उडुक्की के माकपा के जिला सचिव एमएम मणि ने स्वीकार किया कि किस तरह से माकपा अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म कर चुकी है। इन राजनीतिक हत्याओं की जांच में माकपा कैडर की संलिप्तता के ठोस सबूत हैं, उनकी गिरफ्तारी और सबूतों के आधार पर अदालत से सजा मिलने से इसकी पुष्टि होती है।

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