झारखंड में पेसा कानून पर पंगा: हाईकोर्ट ने खनिजों की नीलामी रोकी; पूछा- क्या CM को जेल भेज दें?
झारखंड में पेसा कानून को लागू करने को लेकर सियासी घमासान जारी है। दरअसल झारखंड हाई कोर्ट ने पेसा कानून लागू न होने पर नाराजगी जताते हुए राज्य में बालू घाट समेत सभी लघु खनिजों की नीलामी पर रोक लगा दी है। क्या है पूरा मामला किन राज्यों में लागू हैं पेसा कानून?

शशि शेखर, रांची। झारखंड में पेसा कानून लागू करने को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है। पिछले 24 वर्षों से यह राज्य इस कानूनी प्रविधान को लागू होने की प्रतीक्षा कर रहा है, लेकिन आज तक इसे लागू नहीं किया जा सका। पिछले महीने पेसा कानून से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने इसे लागू करने में हो रहे विलंब पर आपत्ति जताते हुए झारखंड सरकार को इसे शीघ्र लागू करने का निर्देश दिया है।
दो दिन पहले भी इससे जुड़ी अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने हुए राज्य में पेसा कानून लागू होने तक बालू घाट सहित सभी प्रकार के लघु खनिजों की नीलामी पर रोक लगा दी है। इसे लेकर विभागीय सचिव अदालत में पेश हुए थे। कड़ी टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि क्या मुख्यमंत्री और मंत्रियों को जेल भेज दें?
पेसा कानून को लागू करने की प्रोसेस कहां तक पहुंची?
हाल के दिनों में राज्य सरकार ने भी लगातार पेसा कानून को शीघ्र लागू करने की बात कही है। झारखंड सरकार ने पंचायती राज विभाग ने पेसा एक्ट को लेकर एक ड्राफ्ट जारी किया है, जिस पर लोगों से राय ली जा रही है। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मामले को फिर छेड़ दिया है। उन्होंने गठबंधन सरकार पर हमला बोला है।
झामुमो और कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठाते हुए रघुवर दास ने कहा है कि संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस-झामुमो सरकार आज राज्य के आदिवासियों व पिछड़ों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने राज्य में पेसा कानून लागू करने की दिशा में सार्थक पहल की थी।
रघुवर दास पेसा कानून की बारीकियों के बारे में कहते हैं कि पेसा कानून अधिसूचित क्षेत्रों की रूढ़िवादी ग्रामसभा को लघु खनिज, बालू, पत्थर के उत्खनन, नीलामी, तालाबों में मछली पालन आदि प्रबंधन का अधिकार देता है।
क्या बोले झामुमो के महासचिव?
रघुवर दास के बोल पर पलटवार करते हुए झामुमो के महासचिव एवं प्रवक्ता विनोद पांडेय आरोप लगाते हैं कि सत्ता से बाहर होने के बाद भाजपा नेताओं को झूठ और दुष्प्रचार का सहारा लेने की आदत हो गई है। आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों की चिंता का दिखावा करने वाले रघुवर दास जब मुख्यमंत्री थे, तब पेसा कानून को लागू करने की दिशा में उन्होंने क्यों नहीं ठोस कदम उठाया?
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यदि भाजपा को आदिवासी समाज की इतनी ही चिंता थी तो रघुवर दास बताएं कि अपने शासन काल में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर क्यों राजभवन भेजा?
इन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच पिछले 24 वर्षों से आदिवासी अपने ही संवैधानिक अधिकारों से वंचित हैं। परेशानी यह है कि पेसा कानून को लेकर हर राज्य को नियमावली बनानी थी। यह काम आज तक झारखंड सरकार नहीं कर पाई।
पंचायती राज विभाग की मंत्री दीपिका पांडेय सिंह कहती हैं कि पेसा नियमावली पर पंचायती राज विभाग तत्परता से काम कर रहा है। आधे से अधिक विभागों ने अपना मंतव्य विभाग को दे दिया है। यानी, इतने समय बाद भी विभागों का सुस्त रवैया इसमें सबसे बड़ी बाधा है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 24 दिसंबर, 1996 को ही पेसा कानून लागू कर दिया था।
किन राज्यों में लागू हैं पेसा कानून?
देश में कुल 10 राज्य ऐसे हैं, जहां पेसा है। इनमें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना शामिल हैं। लेकिन ओडिशा और झारखंड में यह कानून आज तक लागू नहीं हो सका, जबकि अन्य आठ राज्यों ने लागू कर दिया है।
क्या कहते हैं जानकार?
पेसा पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर पाल कहते हैं कि पेसा का पूरा ढांचा पंचायती राज प्रणाली पर आधारित है।
अगर पंचायतों को हटा दिया जाए तो पेसा सिर्फ कागज पर लिखा एक अधिनियम बनकर रह जाएगा, क्योंकि इसका क्रियान्वयन और प्रभाव ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं के बिना संभव नहीं है। इस अधिनियम के राज्य में लागू होने से सर्वाधिक अधिकार ग्राम सभा या पंचायतों को मिल जाएंगे।
अधिकारियों को लगता है कि इसे लागू कर दिया गया तो उनकी मनमानी खत्म हो जाएगी और ग्रामसभा के बिना वे कुछ कर नहीं पाएंगे। ऐसे में राज्य सरकार पेसा नियमावली 2024 लेकर आई है।
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