आदिवासी बहुल राज्यों में लागू न हो सका पेसा एक्ट, केंद्र सरकार ने जताई चिंता, जानिए कानून की खासियत
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने उद्घाटन समारोह में आदिवासी समाज के लिए केंद्र सरकार की ओर से किए गए कार्यो का ब्योरा देते हुए कहा कि कई नीतिगत फैसलों से वनों पर निर्भर समाज को काफी लाभ हुआ है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आदिवासी समाज के रीति रिवाज और उनकी प्राचीन संस्कृति को संजोए रखने और उनकी माली हालत में सुधार के लिए संसद से पारित स्थानीय पंचायतों को अधिकार देने वाले पेसा कानून को अब भी प्रमुख आदिवासी बहुल राज्यों में लागू नहीं किया गया है। जिनके लिए कानून बनाया गया, उन्हें इसका फायदा न मिलने पर सरकार ने गंभीर चिंता जताई है। सभी प्रमुख आदिवासी बहुल राज्यों के साथ ग्रामीण विकास, आदिवासी मामले और वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें पेसा कानून के उन सभी प्रविधानों पर चर्चा हुई, जिन्हें लागू करने में राज्य आनाकानी कर रहे हैं।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने उद्घाटन समारोह में आदिवासी समाज के लिए केंद्र सरकार की ओर से किए गए कार्यो का ब्योरा देते हुए कहा कि कई नीतिगत फैसलों से वनों पर निर्भर समाज को काफी लाभ हुआ है। बांस को पेड़ की श्रेणी से बाहर करने के सरकार के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इससे जंगलों में 125 से ज्यादा किस्मों का दोहन करने में मदद मिलेगी। विकास की दौड़ में पीछे छूट गए आदिवासी समाज के लिए केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने विशेष कार्यक्रम संचालित किया है। इसके तहत 112 आकांक्षी जिलों को चिह्नित किया गया है, जिनमें 42 जिलों में आदिवासी लोगों की संख्या सर्वाधिक है। उनके लिए विशेष विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
वर्ष 1996 में संसद से प्रोविजन आफ द पंचायत (एक्सटेंसन आफ शिड्यूल्ड एरियाज) एक्ट पेसा पारित किया गया। इसका उद्देश्य आदिवासी समाज की प्राचीन संस्कृति को बनाए रखने के साथ उनकी माली हालत में सुधार करना था। इसे उन सभी 10 आदिवासी बहुल राज्यों को लागू करने के लिए भेज दिया गया। लेकिन हालत यह हुई कि झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में यह कानून आज तक लागू नहीं किया गया। पेसा को देश के 700 से ज्यादा जातीय समूहों और 10 करोड़ से अधिक की आबादी के लाभ के लिए 22,141 ग्राम पंचायतों को ध्यान में रखकर पारित कराया गया था। लेकिन 25 वर्षो बाद भी इसे आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और तेलंगाना में इसे अधिसूचित किया गया है।
गिरिराज सिंह ने कुछ आशंकाएं जाहिर करते हुए कहा कि ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं को सीधे वित्त आयोग से अनुदान प्राप्त होता है। लेकिन उन राज्यों को काफी दिक्कतें हुई थीं, जहां इन स्थानीय निकायों का चुनाव ही नहीं हुआ था। अगर आने वाले दिनों में पेसा कानून लागू न करने वाले राज्यों के अनुदान को आयोग जारी करने से मना कर दे तो बड़ी दिक्कत हो सकती है। उन्होंने राज्यों से इसे तत्काल लागू कर उन्हें अधिकार सौंप देने की अपील की।
केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने स्थानीय निकायों को मजबूत बनाने के लिए पेसा कानून को लागू करने पर जोर दिया। उन्होंने इसके लिए राज्यों के अफसरों को कानून के बारे में लोगों को जागरूक करने को कहा। मुंडा ने राज्यों से सुविधा के हिसाब से नहीं बल्कि जरूरत के हिसाब से बदलाव लाने की अपील की। आदिवासी समाज के लिए कानून ऐसा हो, जिससे उनका जीवन सरल और सहज बनाए रखने में मदद मिले। आदिवासी बहुल राज्यों के साथ पिछले 25 वर्षो में पहली बार इस पिछड़े समाज की ¨चता करने के लिए केंद्रीय मंत्रालय एक साथ बैठे हैं।
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