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    कभी न्यायपालिका पर साधा निशाना, हिरण केस में सलमान खान के थे वकील... जगदीप धनखड़ की जिंदगी के अहम पड़ाव

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 09:14 AM (IST)

    जगदीप धनखड़ जिन्होंने कभी खुद को अनिच्छुक राजनेता कहा था उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल में न्यायपालिका के साथ टकराव और राज्यसभा में विपक्ष के साथ विवादों के लिए जाने गए। उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर न्यायपालिका की आलोचना की। 2022 में उपराष्ट्रपति चुने गए धनखड़ ने अपने कार्यकाल में इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति बनकर इतिहास रचा।

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    धनखड़ ने इसी महीने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह 'सही समय' पर, 'दैवीय हस्तक्षेप' के अधीन, सेवानिवृत्त होंगे।

    पीटीआई, नई दिल्ली। कभी खुद को 'अनिच्छुक राजनेता' कहने वाले जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर न्यायपालिका को आड़े हाथों लिया और राज्यसभा में विपक्ष के साथ लगभग हर दिन उनका टकराव हुआ।

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    74 वर्षीय धनखड़ ने इसी महीने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह 'सही समय' पर, 'दैवीय हस्तक्षेप' के अधीन, सेवानिवृत्त होंगे। धनखड़ 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार थे। वे वीवी गिरि और आर वेंकटरमन के बाद, अपने कार्यकाल के दौरान इस्तीफा देने वाले भारत के तीसरे उपराष्ट्रपति हैं।

    धनखड़ 2008 में भाजपा में शामिल हुए

    गिरि और वेंकटरमन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था। धनखड़ इतिहास में एकमात्र ऐसे उपराष्ट्रपति के रूप में भी जाने जाएंगे, जिनके खिलाफ विपक्ष ने उच्च सदन के सभापति के रूप में 'पक्षपातपूर्ण' आचरण अपनाने का आरोप लगाया और उन्हें हटाने के लिए नोटिस दिया।

    नोटिस को उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था। कभी जनता दल और कांग्रेस से जुड़े रहे धनखड़ 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे।

    उन्होंने राजस्थान में जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा देने सहित पिछड़ा वर्ग से संबंधित अन्य मुद्दों की वकालत की। वर्ष 2019 में बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति ने उन्हें राजनीतिक सुर्खियों में वापस ला दिया। राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के साथ उनका अक्सर टकराव होता रहा। धनखड़ ने राज्यसभा में व्यवधान से लेकर बिना चर्चा के विधेयक पारित होने के आरोपों तक, कई मुद्दों पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया।

    न्यायपालिका पर भी साधते रहे हैं निशाना

    उन्होंने खास तौर पर उन शीर्ष वकीलों पर निशाना साधा, जो विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यसभा सदस्य भी हैं। पेशे से वकील, धनखड़ ने न्यायपालिका पर भी निशाना साधा, खासकर शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर। उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम रद करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की।

    भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की उपस्थिति में उन्होंने दोनों सदनों द्वारा लगभग सर्वसम्मति से पारित कानून को रद करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया था।

    उन्होंने सांसदों की भी आलोचना करते हुए कहा था कि जब कानून को रद किया गया, तो सांसदों की तरफ से विरोध का एक स्वर तक नहीं उभरा। वर्ष राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में 18 मई, 1951 को जन्मे धनखड़ ने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में छात्रवृत्ति पर शिक्षा प्राप्त की।

    कई अहम केस में वकील के तौर पर शामिल रहे

    1990 में राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित धनखड़ ने मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट में वकालत की थी। उनकी मुकदमेबाजी के क्षेत्र में इस्पात, कोयला, खनन और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता शामिल थे। वकील के रूप में, वह अभिनेता सलमान खान से जुड़े काला हिरण मामले से जुड़े थे और उन्हें जमानत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

    जुलाई 2019 में बंगाल के राज्यपाल का पद संभालने तक, उन्होंने देश के विभिन्न हाई कोर्ट में विभिन्न मामलों में पैरवी की। अध्यात्म और ध्यान में भी गहरी रुचि रखने वाले धनखड़ ने जनता दल के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और 1989 में बोफोर्स घोटाले के मुद्दे के तूल पकड़ने के बीच आयोजित लोकसभा चुनाव में राजस्थान के झुंझुनू से जीत दर्ज की। धनखड़ ने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में संसदीय कार्य राज्य मंत्री के रूप में काम किया।

    देवीलाल की राजनीति से प्रभावित थे धनखड़

    धनखड़ राजनीति में अपने शुरुआती सफर में देवीलाल से प्रभावित थे। बाद में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस में शामिल हो गए।

    राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्यकाल खत्म होने के बाद, धनखड़ ने अपने कानूनी करियर पर ध्यान केंद्रित किया और सुप्रीम कोर्ट में वकील के रूप में प्रैक्टिस की। उपराष्ट्रपति पद के लिए राजग उम्मीदवार के रूप में उनका नाम घोषित करते हुए।

    भाजपा ने उन्हें ''किसान पुत्र'' बताया था। राजनीतिक हलकों में यह कदम राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जाट समुदाय तक पहुंच बनाने के उद्देश्य से देखा गया था।

    उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद, धनखड़ ने राष्ट्रीय राजधानी, हरियाणा और राजस्थान में किसानों के कई समूहों से मुलाकात की और उनसे कृषि से आगे बढ़कर खाद्य प्रसंस्करण और विपणन क्षेत्र में कदम रखने का आग्रह किया ताकि उनकी आय बढ़े।

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