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    Model code of conduct in Himachal: क्या है आदर्श आचार संहिता और कब से हुई इसकी शुरूआत

    By Mahen KhannaEdited By:
    Updated: Sat, 15 Oct 2022 03:11 PM (IST)

    Model Code of Conduct हिमाचल प्रदेश में चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो गई है। चुनाव संहिता के चलते निर्णय लेने की शक्ति केवल चुनाव आयोग के पास होगी। आइए चुनाव संहिता के बारे में विस्तार से जानें....

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    हिमाचल प्रदेश में आचार संहिता लागू हो गई है।

    नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। हिमाचल प्रदेश (Himachal pradesh Election) में चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक पार्टियों में हलचल तेज हो गई है। हिमाचल में 12 नवंबर को विधानसभा चुनाव होंगे और 8 दिसंबर को परिणाम आएंगे। चुनाव आयोग द्वारा बीते दिन विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही राज्य में आचार संहिता लागू (Model code of conduct) हो गई है। इसके साथ ही अब यह संहिता चुनाव खत्म होने तक लागू रहेगी। नई सरकार आने तक मौजूदा सरकार ही काम करेगी। हालांकि, चुनाव संहिता के चलते निर्णय लेने की शक्ति केवल चुनाव आयोग के पास होगी। चुनाव संहिता लागू होने के साथ ही अब लोगों के मन में हैं कि आखिर यह क्या है और कब से यह व्यवस्था शुरू हुई थी। आइए आदर्श चुनाव संहिता के बारे में विस्तार से जानें....

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    आदर्श चुनाव संहिता क्या है 

    किसी भी राज्य में चुनाव की घोषणा होते ही सभी पार्टियां अपनी कमर कस लेती हैं। इसी के साथ चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार भी जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए कोई गलत हथकंडे न अपनाए इसी के लिए आदर्श आचार संहिता लागू की गई। बता दें कि चुनाव की तारीखों का जैसे ही ऐलान होता है चुनाव संहिता लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है। इस संहिता में वे दिशा-निर्देश होते हैं, जिसका पालन करते हुए ही राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ना होता है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रचार अभियान को साफ-सुथरा और निष्पक्ष बनाने का होता है। कोई भी सत्ताधारी पार्टी अपनी ताकत का गलत फायदा न उठाए, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करे इसको भी ध्यान में रखा जाता है।

    कैसे हुई आचार संहिता की शुरुआत 

    आदर्श आचार संहिता कानून के द्वारा लाया गया प्रावधान नहीं है। यह सभी राजनीतिक दलों की सर्वसहमति से लाई गई व्यवस्था है जिसका सभी को पालन करना होता है। आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1960 में केरल विधानसभा चुनाव में हुई, जिसमें इसके तहत बताया गया कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं। इसके बाद वर्ष 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता के बारे में सभी राजनीतिक पार्टियों को बताया और वितरित किया गया। आखिर में 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने सभी सरकारों से इसे लागू करने को कहा और यह सिलसिला आज भी जारी है। हालांकि, चुनाव आयोग इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव करता रहता है।

    आदर्श आचार की कैसे पड़ी जरूरत

    आचार संहिता के आने से पहले अलग-अलग पार्टियां और उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते थे। वर्ष 1960 से पहले चुनावों की घोषणा होने से पहले ही लाउडस्पीकरों पर उम्मीदवारों की तारीफों का शोर सुनाई देना शुरू हो जाता था। दिवारें भी पोस्टरों से पट जाती थीं। कई उम्मीदवार तो धन-बल के दम पर चुनाव जीतने के लिए नियमों को भी ताक पर रख देते थे। बूथ कैप्चरिंग और बैलेट बाक्स को लूटना तब आम होता था। चुनाव के दौरान लोगों को धमकाना, पैसे और शराब बांटना बढ़ता जा रहा था। इसी सबको देखते हुए चुनाव आयोग आचार संहिता को लेकर आया। 

    आदर्श आचार संहिता के तहत यह होते हैं नियम

    आदर्श आचार संहिता के तहत राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और सत्ताधारी दलों को निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान कैसा व्‍यवहार करना है यह तय होता है। निर्वाचन प्रक्रिया, बैठकें आयोजित करने, शोभायात्राओं, मतदान दिवस गतिविधियों तथा सत्ताधारी दल के कामकाज आदि के दौरान उनका सामान्‍य आचरण कैसा होगा, यह सब इसमें शामिल होता है। संहिता के तहत यह प्रावधान है....

    • आचार संहिता के नियमों के तहत राजनीतिक दलों की आलोचना केवल उनकी नीतियों, कार्यक्रमों और पुराने रिकार्ड के तहत किया जा सकता है। बिना किसी साक्ष्य के कोई आरोप लगाना, जातिगत और सांप्रदायिक भावनाओं को आहत करना, मतदाताओं को रिश्वत देना आदि चीजों को गैरकानूनी बताया गया है।
    • सभी पार्टियों को चुनाव से संबंधित बैठक करने के लिए भी स्थानीय प्रशासन और पुलिस से इजाजत लेनी होती है। बैठक के स्थान और समय के बारे में बताना पड़ता है। इसके पीछे बैठक में मौजूद लोगों की सुरक्षा मुख्य मुद्दा होता है।
    • किसी भी सरकारी वाहन, विमान आदि सहित कोई भी सरकारी चीज को नेता के हितों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रयोग में लाने की इजाजत नहीं होती है।
    • चुनावी रैली या जुलूस निकालने से पहले भी प्रशासन और पुलिस से इसकी इजाजत लेनी पड़ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके लिए रूट या जगह सुनिश्चित किया जाता है, ताकि किसी और पार्टी से कोई टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो।
    • चुनाव के दिन भी केवल मतदाताओं और चुनाव आयोग द्वारा जारी वैध प्रमाणपत्र वाले लोग ही मतदान केंद्रों में जा सकते हैं।

    आदर्श आचार संहिता के लिए क्यों नहीं बना कानून

    आदर्श आचार संहिता को फिलहाल कानूनी अमलीजामा नहीं पहनाया गया है। कानूनी तौर पर लागू न होने के चलते इसके तहत किसी को सजा देने का भी प्रावधान नहीं है। हालांकि, इसके कुछ प्रावधानों को भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के माध्यम से लागू किया जा सकता है। कई दफा इसको कानूनी रूप देने की बात उठी है, लेकिन चुनाव आयोग का कहना है कि यह व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि चुनाव काफी कम समय के लिए होता है और न्यायिक कार्रवाई में काफी समय लगता है।

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