'2013 में अध्यादेश फाड़ने वाले राहुल की अब कहां गई नैतिकता', अमित शाह का राहुल गांधी पर निशाना
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान संशोधन विधेयक पर राहुल गांधी से सवाल किया कि 2013 में अध्यादेश फाड़ने वाले राहुल गांधी की नैतिकता अब कहां गई? उन्होंने कहा कि यह विधेयक राजनीति में नैतिकता स्थापित करेगा। शाह ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि जेल से सरकार चलाना लोकतंत्र का अपमान है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को पद से हटाने के प्रविधान वाले संविधान (130वां संशोधन) विधेयक पर विपक्षी दलों के संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से बहिष्कार के एलान के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल गांधी से किए सवाल।
उन्होंने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष से सवाल किया है कि 2013 में अध्यादेश फाड़ने वाले राहुल गांधी की नैतिकता अब कहां गई, क्या लगातार तीन चुनाव हारने के बाद उनकी नैतिकता बदल गई है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक राजनीति में नैतिकता और जनविश्वास को स्थापित करने का आधार बनेगा।
अमित शाह ने 2013 की घटना का किया जिक्र
साथ ही साफ किया, अगर जेपीसी बनाने का निर्णय होने के बाद कोई भी पार्टी इसका बहिष्कार करती है तो सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है। अमित शाह ने एक न्यूज एजेंसी को दिए साक्षात्कार में 2013 की उस घटना का जिक्र किया जब राहुल गांधी ने लालू प्रसाद यादव को राहत देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लाए गए अध्यादेश को फाड़ दिया था।
उन्होंने इसकी तुलना संविधान (130वां संशोधन) विधेयक के उनके मौजूदा विरोध से की। शाह ने पूछा, "राहुल जी ने लालू जी को बचाने के लिए मनमोहन सिंह द्वारा लाए गए अध्यादेश को क्यों फाड़ दिया था? अगर उस दिन नैतिकता थी, तो अब क्या हो गया? सिर्फ इसलिए कि आप लगातार तीन चुनाव हार गए हैं? नैतिकता के मानदंड चुनावों में जीत या हार से जुड़े नहीं होते। ये सूर्य और चंद्रमा की तरह स्थिर होने चाहिए।"
विपक्ष पर साधा निशाना
चारा घोटाले में लालू यादव की दोषसिद्धि के बाद उक्त अध्यादेश में दोषी सांसदों को अपनी सीटें बरकरार रखने के लिए तीन महीने की राहत दी थी। इसमें दोषी सांसदों और विधायकों की अयोग्यता पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकार दिया गया था, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया था।
शाह ने विधेयक पर आगे बढ़ने का संकेत देते हुए कहा कि सरकार विपक्ष को बात रखने का मौका देती है, लेकिन अगर विपक्ष अपनी बात रखना ही नहीं चाहता, तो देश की जनता सब देख रही है। ध्यान देने की बात है कि तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने जेपीसी में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों ने भी ऐसा करने का संकेत दिया है।
पार्टी के दूसरे सदस्य चला सकते हैं सरकार
शाह ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि भविष्य में ऐसे नेता आएंगे, जो जेल में रहकर सरकार चलाएंगे। इस सिलसिले में उन्होंने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली व तमिलनाडु के मंत्रियों का हवाला दिया, जिन्होंने जेल जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं दिया था।
उन्होंने कहा कि जेल जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं देने का नया ट्रेंड शुरू हो गया है। किसी प्रधानमंत्री, मंत्री और मुख्यमंत्री का जेल से सरकार चलाना देश के लोकतंत्र का अपमान है। सरकार के सचिव और मुख्य सचिव प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री का आदेश लेने के लिए जेल जाएं, यह हमारे लोकतंत्र को शोभा नहीं देता।
उन्होंने कहा कि इस प्रविधान से संसद या विधानसभा में किसी के बहुमत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। एक सदस्य जाएगा, पार्टी के दूसरे सदस्य सरकार चलाएंगे और जब जमानत मिल जाएगी, तो आकर दोबारा शपथ ले सकते हैं। इसमें क्या आपत्ति है?
जमानत में देरी की आशंका निराधार
शाह ने इस कानून के आने के बाद कोर्ट से जमानत मिलने में देरी होने की विपक्ष की आशंकाओं को भी खारिज कर दिया। कहा कि इसमें फैसला जल्दी होगा क्योंकि हमारी अदालतें भी कानून की गंभीरता को समझती हैं। शाह के अनुसार, मूल विधेयक में प्रधानमंत्री को इस कानून के दायरे में नहीं रखा गया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं अपने आप को इसके तहत रखा है।
हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट आंखें मूंदकर नहीं बैठे
विधेयक पास होने की स्थिति में विपक्षी मुख्यमंत्रियों को निशाना बनाने के आरोप खारिज करते हुए शाह ने कहा कि यह हमारे मुख्यमंत्रियों के लिए भी है। अगर मामला फर्जी होगा, तो देश के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आंखें मूंदकर नहीं बैठे हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में जमानत देने का अधिकार है। अगर जमानत नहीं मिली, तो आपको पद छोड़ना पड़ेगा।
सबके लिए खुला है कोर्ट का दरवाजा
शाह ने सरकार के लोगों के विरुद्ध एफआईआर नहीं होने के विपक्ष के आरोप को भी गुमराह करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश से 12 एफआइआर दर्ज कराई गई थीं। ठोस सुबूतों के साथ अदालत जाने का रास्ता सबके लिए खुला है। उन्होंने फिर साफ किया कि फर्जी केस में फंसाए जाने के बावजूद उन्होंने न सिर्फ अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, बल्कि दोषमुक्त हुए बिना कोई भी संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया था।
विपक्षी दल भी करेंगे समर्थन
शाह के अनुसार, इस विधेयक पर राजग के सभी सहयोगी दल पूरी तरह सहमत हैं। उन्होंने विधेयक के संसद से पारित होने पर भरोसा जताते हुए कहा कि कांग्रेस और विपक्ष में भी कई लोग ऐसे होंगे, जो नैतिकता के आधार पर इसका समर्थन करेंगे। लेकिन पार्टी की व्हिप लाइन से बंधे सांसद ऐसा कैसा करेंगे, उन्होंने स्पष्ट नहीं किया।
जस्टिस सुदर्शन रेड्डी के विरुद्ध आरोपों पर कायम
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहते हुए जस्टिस सुदर्शन रेड्डी द्वारा नक्सलियों की मदद करने के अपने बयान पर अमित शाह कायम हैं। उन्होंने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही स्पष्ट है कि कैसे आदिवासियों के स्वरक्षा करने के अधिकार को छीन लिया गया था।
इसके कारण बहुत सारे जवानों और आदिवासियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। उन्होंने कहा कि सिर्फ वामपंथी विचारधारा के कारण ही विपक्ष ने जस्टिस सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है।
NDA के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार का समर्थन
महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को राजग का उम्मीदवार बनाने का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा, "यह स्वाभाविक है कि उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार दक्षिण भारत से आए, क्योंकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु पूर्वी भारत से हैं और प्रधानमंत्री पश्चिम व उत्तर भारत से हैं।"
शाह ने उन अटकलों को खारिज कर दिया कि राधाकृष्णन के चयन का 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से कोई लेना-देना है। जब उनसे पूछा गया कि क्या राधाकृष्णन का चयन आरएसएस से जुड़े होने के कारण हुआ है, तो शाह ने कहा कि संघ से जुड़े होना कोई कमी नहीं है।
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