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कर्नाटक में ये तो होना ही था, भितरघात से जूझ रही 14 महीने पुरानी कुमारस्वामी सरकार का हुआ अंत

कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार विधानसभा में मत विभाजन के दौरान गिर चुकी है। गठबंधन सरकार के पक्ष में 99 और विपक्ष में 105 वोट पड़े। अभी सियासी ड्रामा खत्म नहीं हुआ है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 09:42 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jul 2019 07:23 AM (IST)
कर्नाटक में ये तो होना ही था, भितरघात से जूझ रही 14 महीने पुरानी कुमारस्वामी सरकार का हुआ अंत
कर्नाटक में ये तो होना ही था, भितरघात से जूझ रही 14 महीने पुरानी कुमारस्वामी सरकार का हुआ अंत

प्रशांत मिश्र [ त्वरित टिप्पणी ]। कर्नाटक में पांच छह दिनों से चल रहे राजनीतिक ड्रामा का यही अंजाम होना था। पहले दिन से ही आपसी द्वंद्व, मनभेद और भितरघात से जूझ रही जदएस- कांग्रेस सरकार आखिरकार गिर गई। कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा में बड़ी पार्टी को रोकने के लिए जिस तरह परस्पर विरोधी दल एकजुट हुए थे वह बिखर गए।

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यह सोचना जरूरी है कि लगभग डेढ़ साल तक चली सरकार ने यहां तक पहुंचने के लिए कितना समझौता किया होगा। पर यह कहना उचित नहीं होगा कि ड्रामा खत्म हो गया। अभी एक पार्ट खत्म हुआ है, अब देखना है कि आगे की राजनीति किस करवट बैठती है। क्या भाजपा सरकार बनाने की कोशिश करेगी? भाजपा नेता बीएस येद्दयुरप्पा क्या आखिरी पारी खेल पाएंगे? गेंद राज्यपाल के पाले में है और काफी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जानी है।

कर्नाटक में जो कुछ हुआ वह इतिहास में दर्ज होगा। सत्ताधारी दल के विधायकों की ओर से सरकार पर जनता से वादाखिलाफी करने का आरोप लगाते हुए बड़ी संख्या में इस्तीफा दिया गया।

सरकार को बचाने के हर दांव चले गए। यह जानते हुए कि सरकार बचने वाली नहीं है विश्वास प्रस्ताव लाया गया, विधायकों को परोक्ष रूप से चेताया गया, लेकिन फिर भी बाजी नहीं पलटी। ऐसे लोगों ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया जो लंबे समय से सेनापति रहे थे। खैर इसका जवाब तो कांग्रेस और जद एस को ढूंढना पड़ेगा। लेकिन अब देखना यह है कि राजनीति किधर जाती है।

इसमें शक नहीं है कि 73-74 के हो चुके येद्दयुरप्पा आखिरी पारी खेलने का हर जतन करेंगे, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि 224 सदस्यों वाले विधानसभा में फिलहाल भाजपा के पास 105 हैं और कांग्रेस जदएस के साथ 99 खड़े हैं। इस्तीफा देने वाले विधायकों की सदस्यता रहेगी या नहीं इसका अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है। गेंद कोर्ट और स्पीकर दोनों के पाले में है।

भाजपा नेतृत्व की ओर से अभी कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन कर्नाटक में येद्दयुरप्पा को बधाई देने वालों का तांता लगने लगा है। इधर भाजपा के ही कई विधायकों में संशय घर करने लगा है कि सरकार बनी भी तो क्या उनका अवसर आएगा या फिर वे विधायक बाजी मार ले जाएंगे जिन्होंने कांग्रेस जदएस से पाला तोड़कर यह मौका दिया है।

ध्यान रहे कि विधानसभा चुनाव के बाद भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरकार बनाने का पहला अवसर येद्दयुरप्पा को ही मिला था, लेकिन वह आठ सदस्यों का भी अंक नहीं जुटा पाए थे। बाद में केंद्रीय नेतृत्व ने इस पर नाराजगी भी जताई थी कि अगर संख्याबल नहीं था तो किरकिरी कराने की क्या जरूरत थी।

जाहिर है कि अभी कई सवाल खड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा फिर से खटखटाया जाएगा। सरकार गिर चुकी है और कांग्रेस में नेतृत्व साबित करने के लिए फिर से सिद्धरमैया जैसे नेता अपना प्रभाव दिखाएंगे। भाजपा सरकार बनाती है तो यह दबाव भी होगा कि विधानसभा की घटी हुई संख्या के बल पर ही वास्तविक बहुमत के आधार पर सरकार बनाए। यह सबकुछ एक झटके में हासिल करना संभव नहीं होगा।


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