कांग्रेस की राष्ट्रीय सियासत की प्रासंगिकता को हिमाचल के चुनाव नतीजों ने दी संजीवनी
बीते चार साल के दौरान कई राज्यों में हुए चुनावों में जहां भाजपा से उसका सीधे मुकाबला रहा वहां कांग्रेस को लगातार हार का सामना ही करना पड़ा था। हिमाचल के चुनाव नतीजों ने इस चुनावी करवट को 2018 के बाद पहली बार पलटा है।

नई दिल्ली, संजय मिश्र। गुजरात चुनाव के एकतरफा नतीजों से लगे सदमे के बीच हिमाचल प्रदेश की सत्ता में शानदार तरीके से वापसी ने कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में विपक्षी धुरी बने रहने की प्रासंगिकता को संजीवनी दी है। कांग्रेस के लिए हिमाचल की यह जीत सूबे में केवल सत्ता हासिल करने भर तक ही सीमित नहीं है बल्कि भाजपा के संपूर्ण राजनीतिक वर्चस्व के दौर में उसे मुकाबला करने के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
कांग्रेस ने पहली बार सीधे मुकाबले में हासिल की जीत
खासकर इसलिए कि पिछले चार सालों के दौरान तमाम राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा से आमने-सामने के मुकाबले में कांग्रेस की यह पहली सीधी जीत है। अपने राजनीतिक संक्रमण काल की चुनौतियों से गुजर रही कांग्रेस के सामने अपनी सियासी जमीन बचाने का संघर्ष अब भी बहुत लंबा और पथरीला है। लेकिन हिमाचल प्रदेश की जीत से पार्टी को यह हौसला जरूर मिलेगा कि आमने-सामने के चुनावी मुकाबले में भाजपा को पटखनी देने की उसकी क्षमता अब भी बाकी है।
बीते चार साल के दौरान कई राज्यों में हुए चुनावों में जहां भाजपा से उसका सीधे मुकाबला रहा वहां कांग्रेस को लगातार हार का सामना ही करना पड़ा था। हिमाचल के चुनाव नतीजों ने इस चुनावी करवट को 2018 के बाद पहली बार पलटा है। नवंबर-दिसंबर 2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ के चुनाव में कांग्रेस ने आखिरी बार सीधी टक्कर में भाजपा को हराया था। 2019 के लेाकसभा चुनाव की हार के बाद उसी साल हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भी कांग्रेस लगातार दूसरी बार भाजपा से मात खा गई।
इसके बाद असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश सरीखे पूर्वोत्तर के राज्यों में हुए चुनाव में भी यही कहानी दोहरायी गई। गोवा में भी पिछले साल हुए चुनाव में भाजपा को लगातार दूसरी बार सत्ता में आने से कांग्रेस नहीं रोक पायी। जबकि इस साल मार्च में उत्तराखंड के चुनाव में पांच साल में सत्ता बदलने की परिपाटी को पहली दफा तोड़ने में कांग्रेस नाकाम रही। उत्तराखंड में इस हार के बाद पार्टी ही नहीं राजनीतिक हलकों में भी यह सवाल उठाए जाने लगा था कि भाजपा को चुनौती देने और उसे हराने की कांग्रेस की क्षमता खत्म होती जा रही है।
इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन 2024 में उसकी सियासी प्रासंगिकता की तय करेगा दिशा
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो गुजरात के मौजूदा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ इसको लेकर ही सबसे ज्यादा प्रचार किया। ऐसे में हिमाचल की यह जीत मौजूदा दौर में कांग्रेस के राजनीतिक मनोबल के लिए हौसले की कितनी बड़ी खुराक है इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। खासकर यह देखते हुए कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व 2023 में सात राज्यों में से चार बड़े राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है। अगले साल मार्च-अप्रैल में कर्नाटक के चुनाव के लिए हिमाचल के नतीजे कांग्रेस को आत्मविश्वास की नई ऊर्जा दे सकता है।
इसी तरह नवंबर-दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ के साथ मध्यप्रदेश में कांग्रेस अपने पिछले चुनावी प्रदर्शन को दोहराने का दम लगा सकती है। जबकि राजस्थान में अशोक गहलोत तथा सचिन पायलट का झगड़ा खत्म करने में पार्टी कामयाब होती है और एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला करने उतरती है तो चुनाव दिलचस्प होगा।
इसमें संदेह नहीं कि कांग्रेस के लिए 2024 की राह बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यहां राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के वर्चस्व से मुकाबला करने के साथ उसे कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों से भी जूझना होगा। लेकिन हिमाचल चुनाव से मिले हौसले के बाद पार्टी गुजरात चुनाव जैसी रणनीतिक उदासीनता दिखाने की चूक नहीं करती है तो इन राज्यों के चुनाव में कामयाबी हासिल कर कांग्रेस 2024 के चुनाव में अपनी प्रासंगिकता कायम रख सकती है।
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