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    अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार 'साइमन गो बैक' और 'भारत छोड़ो' का नारा देने वाले थे यूसुफ

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Thu, 09 Aug 2018 10:59 AM (IST)

    बहुत कम लोग जानते हैं कि यूसुफ ने भी आजादी का सबसे कारगर नारा भारत छोड़ो दिया था। बाद में इसी नारे को महात्‍मा गांधी ने 1942 में भारत की आजादी के लिए ...और पढ़ें

    अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार 'साइमन गो बैक' और 'भारत छोड़ो' का नारा देने वाले थे यूसुफ

    नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत आजादी की 81वीं वर्षगांठ मनाने वाला है। आजादी को हासिल करने में कई चेहरे जाने-पहचाने थे तो कुछ ऐसे भी थे जिनका नाम हम लोगों ने शायद ही कभी सुना होगा। इन्‍हीं में से एक नाम है यूसुफ मेहराली का। बहुत कम लोग जानते हैं कि यूसुफ ने भी आजादी का सबसे कारगर नारा भारत छोड़ो दिया था। बाद में इसी नारे को महात्‍मा गांधी ने 1942 में भारत की आजादी के लिए छेड़े गए सबसे बड़े आंदोलन के लिए अपनाया था। उन्होंथने ही पहली बार साइमन गो बैक का नारा दिया था। मन की बात कार्यक्रम में एक बार खुद पीएम मोदी ने उनके नाम का जिक्र किया था।

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    बचपन से यूथ लीग के सदस्‍य बनने तक
    यूसुफ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। यूसुफ मेहराली का जन्म मुंबई के एक संपन्‍न मुस्लिम बोहरा परिवार में 23 सितम्बर, 1903 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बोरीबंदर के न्यू हाईस्कूल में हुई। इसके बाद सेंट जेवियर कालेज और एल्फिंस्टन कालेज उनकी पढ़ाई का केंद्र बना। इसी दौरान उनके अंदर नाटकों और कविताएं लिखने का जुनून सवार हुआ। धीरे-धीरे उनकी दिलचस्‍पी राजनीतिक गतिविधियों में बढ़ने लगी। इसके चलते ही वह बॉम्‍बे स्टूडेंट ब्रदर हुड संगठन में शामिल हुए जिसने 20 मई, 1928 को बंबई के ओपेरा हाउस में एक सभा का आयोजन किया। इस सभा को पंडित जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भी संबोधित किया था। इन दोनों के भाषणों से प्रभावित होकर वे तत्कालीन राष्ट्रभक्त युवाओं की संस्था यूथ लीग के सदस्य बन गए।

    दिया साइमन गो बैक का नारा
    कालेज में फीस वृद्धि और बेंगलौर में छात्रों पर पुलिस की गोलीबारी के विरोध तथा हड़ताली मिल मजदूरों के समर्थन में जनसभाएं आयोजित कर यूसुफ ने अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया। उनकी क्षमताओं से घबराई ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें बॉम्‍बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने तक से रोक दिया। जब भारत को कुछ अधिकार दिए जाने की बात सामने आई तो उसके लिए साइमन की अध्‍यक्षता में एक आयोग बनाया गया। यूसुफ इस आयोग के एकमात्र भारतीय सदस्‍य थे। दिसंबर 1927 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने साइमन कमीशन के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया। 3 फरवरी, 1928 की रात में बंबई के मोल बंदरगाह पर पानी के जहाज से साइमन कमीशन के सदस्य उतरे। तभी समाजवादी नौजवान यूसुफ मेहर अली ने नारा लगाया साइमन गो बैक का नारा दिया। इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठी बरसाईं।

    अदालत में की जीत हासिल
    इस लाठीचार्ज के खिलाफ यूसुफ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और जीत भी हासिल की। यूसुफ मेहर अली ने यूथ लीग के सदस्यों के साथ पूरी बंबई में साइमन कमीशन के खिलाफ पोस्टर चिपकाए। बंबई के ग्रांट रोड पर हजारों लोगों के विरोध प्रदर्शन के बीच यूसुफ को पुलिस ने लहूलुहान हालत में गिरफ्तार कर लिया। साइमन कमीशन के विरोध की लहर पूरे देश में फैल गई। इसके बार 12 सितंबर को बाम्बे प्रेसीडेंसी यूथ लीग का सम्‍मेलन हुआ जिसमें पूर्ण स्‍वराज की बात कही गई। कांग्रेस लाहौर अधिवेशन में भी इसको अपनाया।

    कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन
    क्रांतिकारी जतिनदास की लाहौर जेल में 60 दिन के अनशन के बाद मौत पर यूथ लीग ने एक विशाल जुलूस निकालकर अंग्रेजों के खिलाफ अपनी जबरदस्‍त मुहिम शुरू की। इसके खिलाफ बॉम्‍बे में बड़ाला नमक सत्याग्रह शुरू किया गया। इसको कुचलने के लिए अंग्रेजों ने प्रदर्शनकारियों पर घोड़े दौड़ा दिए। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सन 1934 में जब कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ तो उसमें यूसुफ की महत्वपूर्ण भूमिका थी। 14 जनवरी, 1935 को यूसुफ ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चौपाटी पर एक जनसभा में घोषित किया। सितंबर 1936 में आंध्र समाजवादी पार्टी के सम्मेलन के वे अध्यक्ष बनाए गए। बंगाल में भी उन्होंने जनसभाएं की। इससे डर कर जून, 1937 में मालाबार यात्रा के दौरान उनकी सभाओं पर रोक लगा दी गयी और कालीकट में गिरफ्तार कर 6 माह की जेल की सजा दी गई। कच्छ के शासक के अत्याचारों के खिलाफ उन्होंने आंदोलन चलाया। 1938 में वे लाहौर में हुए समाजवादी दल के अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए गए। 1940 में गांधी जी के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर नासिक की सेंट्रल जेल में रखा गया। 1942 में वह बॉम्‍बे नगरपालिका के महापौर बने।

    भारत छोड़ों का प्रस्ताव
    8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ों का प्रस्ताव पारित हुआ। इस अधिवेशन से घबराई ब्रिटिश हुकूमत ने 9 अगस्त, 1942 को सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया। इसके बाद शुरू हुई अगस्‍त क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी। यही वो वक्‍त था जब यूसुफ को ब्रिटिश हुकूमत ने बंदी बनाकर अनेकानेक यातनाएं दी। लेकिन बाद में उन्‍हें मजबूरन रिहा करना पड़ा। 31 मार्च 1949 को वे मुम्बई नगर (दक्षिणी) निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाने पर विधान सभा के सदस्य बने। 2 जुलाई, 1950 को उन्होंने अपने साथियों से अंतिम समय में विदा ले ली। मृत्यु के समय उनकी आयु मात्र 47 वर्ष थी। जयप्रकाश जी उनके अंतिम समय में मौजूद थे। उनकी शवयात्रा में कई बड़े नेता शामिल हुए और उनके पार्थिव शरीर को कंघा दिया था। अच्युत पटवर्धन ने मेहर अली को लौहपुरुष की संज्ञा दी थी।