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महागठबंधन के लिए कांग्रेस को देनी पड़ेगी बड़ी कुर्बानी, भाजपा के खिलाफ विपक्ष के एक ही उम्मीदवार की तैयारी

विपक्षी एकता के लिए प्रयासरत कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व और जदयू-राजद बुधवार की बैठक को ऐतिहासिक तो बता रहा है लेकिन जो फार्मूले प्रस्तावित हैं उसपर अमल किया गया तो कांग्रेस को बड़ी कुर्बानी देनी होगी। File Photo

By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyPublished: Thu, 13 Apr 2023 07:36 PM (IST)Updated: Thu, 13 Apr 2023 07:36 PM (IST)
महागठबंधन के लिए कांग्रेस को देनी पड़ेगी बड़ी कुर्बानी।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। विपक्षी एकता के लिए प्रयासरत कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व और जदयू-राजद बुधवार की बैठक को ऐतिहासिक तो बता रहा है, लेकिन जो फार्मूले प्रस्तावित हैं उसपर अमल किया गया तो कांग्रेस को बड़ी कुर्बानी देनी होगी। बताया जाता है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को यह संकेत दे दिया है कि उसे उन सीटों पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां पार्टी जीती थी या फिर दूसरे नंबर पर आई थी।

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कांग्रेस को करीब 260 सीटों पर होना पड़ेगा सीमित

ऐसे में कांग्रेस को लगभग 260 सीटों पर सीमित होना पड़ेगा और बाकी की 300 सीटों पर साथी दल उतरेंगे। यह प्रस्ताव कुछ इस लिहाज से आया है कि ऐसी स्थिति में ही भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ एक ही संयुक्त उम्मीदवार दिया जा सकेगा। वरना क्षेत्रीय दलों को साथ लाना मुश्किल होगा।

कांग्रेस, राजद और जदयू में बनी सहमति

सूत्रों का कहना है कि बैठक में यह बताया गया कि बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होकर 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद समेत तीन बड़े दलों का गठबंधन बनाकर इसी फार्मूले से भाजपा को सत्ता में आने से रोका था। दावा यह भी किया जा रहा है कि कांग्रेस, राजद और जदयू में इस फार्मूले पर सहमति बन चुकी है। अब बाकी दलों को बताना है। किसी दल के पास अगर कोई दूसरा फार्मूला है, तो उसे भी विचार के लिए आमंत्रित किया जाएगा।

विपक्षी एकता को लेकर प्रयास तेज

तबतक विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास जारी रहेगा और इसके लिए अलग अलग नेता अलग अलग दलों से बात करेंगे। बताया जाता है कि नीतीश कुमार को तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दलों से बात करने की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि तेजस्वी समाजवादी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति आदि से बात करेगे। सपा मुखिया अखिलेश यादव से तेजस्वी का पारिवारिक रिश्ता भी है। कांग्रेस बाकी दलों के साथ वार्ता करेगी।

इसी क्रम में नीतीश ने दो दिनों में आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी और भाकपा के महासचिव डी राजा से मुलाकात कर भाजपा विरोधी मोर्चे पर सहमति बनाने का प्रयास किया। तीनों ने नीतीश के प्रस्ताव से सहमति भी दिखाई है। अगले कुछ दिनों में नीतीश की मुलाकात की बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी हो सकती है।

ममता बनर्जी ने एकला चलने का दिया था नारा

इधर, पिछले महीने बंगाल की सागरदीघी सीट पर उपचुनाव में वामदलों के सहयोग से कांग्रेस की जीत और तृणमूल की हार से व्यथित ममता ने लोकसभा चुनाव में एकला चलने की घोषणा कर दी है। प्रस्तावित फार्मूला केरल जैसे राज्य में नाकाम रहेगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में वाम दल राजी नहीं होगा।

पिछले आम चुनावों में दक्षिण भारत में कांग्रेस का प्रदर्शन

पिछले लोकसभा चुनाव को अगर आधार मान लिया जाए तो सिर्फ तीन राज्यों केरल, तमिलनाडु एवं पंजाब में ही कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा था। इन राज्यो में 38 सीटों पर लड़कर कांग्रेस ने 31 सीटों पर जीत प्राप्त की थी। बाकी देशभर में 383 सीटों पर लड़कर कांग्रेस सिर्फ 21 सीटें ही जीत पाई थी।

कांग्रेस ने 148 सीटों पर गंवाई थी जमानत

पूर्ण रूप से देखें तो कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में कुल 421 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। इनमें सिर्फ 52 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी और 209 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी। राजद एवं सपा समेत विपक्ष के कई दलों का प्रस्ताव है कि कांग्रेस को अधिकतम इन्हीं 261 सीटों पर ध्यान देना चाहिए। शेष सीटें मित्र दलों को सौंप देनी चाहिए। साथ ही जिन राज्यों में जो क्षेत्रीय दल सशक्त हैं, उन्हें उस राज्य की कमान भी मिलनी चाहिए। पिछले संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने 148 सीटों पर जमानत गंवा दी थी।


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