कांग्रेस ने कहा- उपराष्ट्रपति का केशवानंद भारती फैसले को गलत बताना सुप्रीम कोर्ट पर अभूतपूर्व हमला
संवैधानिक मामलों के लिए नजीर बने सुप्रीम कोर्ट के 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती फैसले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सवाल उठाए जाने को कांग्रेस ने न्यायपालिका पर असाधारण और अभूतपूर्व हमला करार दिया है। पार्टी ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंगों में विचारों की मत भिन्नता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संवैधानिक मामलों के लिए नजीर बने सुप्रीम कोर्ट के 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती फैसले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सवाल उठाए जाने को कांग्रेस ने न्यायपालिका पर असाधारण और अभूतपूर्व हमला करार दिया है। पार्टी ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंगों में विचारों की मत भिन्नता समझी जा सकती है मगर उपराष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से टकराव को अलग मुकाम पर ले जा रहे हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने तो उपराष्ट्रपति के बयानों को चिंताजनक बताते हुए संविधान प्रेमी नागरिकों से भविष्य के खतरों को लेकर सतर्क होने की जरूरत बताई है।
जयराम रमेश ने साधा निशाना
अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारियों के जयपुर में हुए सम्मेलन के उद्घाटन मौके पर बुधवार को उपराष्ट्रपति धनखड़ के शीर्ष न्यायपालिका पर साधे गए निशाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि एक सांसद के रूप में अपने 18 वर्षों की अवधि में मैंने कभी किसी को सुप्रीम कोर्ट के 1973 के केशवानंद भारती के फैसले की आलोचना करते नहीं सुना। वास्तव में अरुण जेटली जैसे भाजपा के कानूनी दिग्गजों ने इस फैसले को मील का पत्थर तक बताया। अब राज्यसभा के सभापति कहते हैं कि यह गलत था।
उपराष्ट्रपति एक संवैधानिक संस्था
जयराम ने कहा कि उपराष्ट्रपति एक संवैधानिक संस्था है और उनका दूसरी संवैधानिक संस्था न्यायपालिका पर किया गया हमला अभूतपूर्व है। मालूम हो कि केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया था कि संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है मगर संविधान की मूल संरचना में नहीं। इसके साथ ही धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून 2015 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने पर भी सवाल उठाए थे।
पी चिदंबरम ने खड़े किए कई सवाल
पी चिदंबरम ने कहा कि राज्यसभा के सभापति गलत हैं जो वे कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है और यह संविधान है जो सर्वोच्च है। संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर एक बहुसंख्यक-संचालित हमले को रोकने के लिए 'मूल संरचना' सिद्धांत विकसित किया गया था। उन्होंने कहा कि मान लीजिए संसद बहुमत से संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली में बदलने के लिए मतदान करती है या अनुसूची सात में राज्य सूची को निरस्त कर, राज्यों की अनन्य विधायी शक्तियों को हटा दे तो क्या ऐसे संशोधन मान्य होंगे? न्यायिक आयोग कानून निरस्त होने के बाद सरकार को नया विधेयक पेश करने से कोई नहीं रोक सकता और एक अधिनियम को रद्द करने का मतलब यह नहीं है कि 'मूल संरचना' सिद्धांत गलत है।
शीर्ष न्यायपालिका पर उपराष्ट्रपति कई बार उठा चुके हैं सवाल
चिदंबरम ने कहा कि वास्तव में सभापति के विचार प्रत्येक संविधान-प्रेमी नागरिक के लिए आने वाले खतरों के प्रति सचेत रहने की चेतावनी है। चिदंबरम ने कहा कि उपराष्ट्रपति पिछले एक महीने के दौरान शीर्ष न्यायपालिका पर कई बार सवाल उठा चुके हैं। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी सांसदों की बैठक को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति के बयानों में छिपे खतरों की ओर इशारा करते हुए सरकार पर यह कहते हुए निशाना साधा था कि संवेधानिक पद की आड़ लेकर अपने राजनीतिक मंसूबों को आगे बढ़ाना चाहती है। धनखड़ की ओर से सोनिया गांधी की टिप्पणियों का जवाब भी दिया गया और इसको लेकर कांग्रेस-भाजपा के बीच सियासी बयानबाजी भी हुई थी।
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