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    BSP के एजेंडे पर कांग्रेस, दलितों को लुभाने के लिए पार्टी ने बनाया मास्टरप्लान

    कांग्रेस देशभर में अनुसूचित जाति वर्ग पर नजर जमाए जय बापू जय भीम जय संविधान अभियान इसी आस से चला रही है कि जैसे लोकसभा चुनाव में उसने सपा के साथ मिलकर भाजपा को दलित वर्ग के बीच आंबेडकर आरक्षण और संविधान विरोधी प्रचारित कर दिया उसी तरह देशभर में दलितों को अपने साथ लामबंद किया जा सकता है। यूपी में सपा ने पीडीए को अपना राजनीतिक अस्त्र बनाया है।

    By Jagran News Edited By: Piyush Kumar Updated: Sun, 19 Jan 2025 10:00 PM (IST)
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    कांग्रेस देशभर में अनुसूचित जाति वर्ग पर नजर जमाए हुए है।(फोटो सोर्स: पीटीआई)

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली: 'बीएसपी की क्या पहचान. नीला झंडा, हाथी निशान..' हां, बहुत बड़े अनुसूचित जाति वर्ग में यही बसपा की पहचान थी, जिस में सेंध लग रही है। कमजोर हो चुका हाथी तो मायावती के पाले में खड़ा दिख रहा है, लेकिन नीला अंगवस्त्र राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित तमाम कांग्रेस नेताओं के गले में दिखेगा।

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    इतना ही नहीं, कभी बसपा नेताओं का नैतिक संबोधन रहा 'जय भीम' भी अब कांग्रेस का राजनीतिक-रणनीतिक एजेंडा है।

    देश के दलितों को लुभा रही कांग्रेस  

    कांग्रेस देशभर में अनुसूचित जाति वर्ग पर नजर जमाए जय बापू, जय भीम, जय संविधान अभियान इसी आस से चला रही है कि जैसे लोकसभा चुनाव में उसने सपा के साथ मिलकर भाजपा को दलित वर्ग के बीच आंबेडकर, आरक्षण और संविधान विरोधी प्रचारित कर दिया, उसी तरह देशभर में दलितों को अपने साथ लामबंद किया जा सकता है।

    कांग्रेस के इस प्रयोग की आंशिक सफलता 2024 में मायावती देख चुकी हैं। शायद इसीलिए वह भाजपा और सपा की तुलना में कांग्रेस पर अधिक हमलावर हैं। दलित मतदाता लंबे समय तक बहुजन समाज पार्टी के साथ मजबूती से जुड़े रहे।

    सपा-कांग्रेस ने मिलकर साल 2024 में लड़ा था चुनाव   

    उन्हीं के सहारे बसपा ने उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड व पंजाब से लेकर दिल्ली तक कुछ तो जनाधार जरूर खड़ा कर लिया। बीते कुछ वर्षों में दलितों-पिछड़ों का विश्वास भाजपा ने जीता और वह काफी मजबूत हो गई। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा।

    भाजपा को आरक्षण विरोधी व संविधान विरोधी बताते हुए जो नैरेटिव खड़ा किया, उसका काफी असर दिखाई दिया। भाजपा पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई, जबकि सपा 37 तो कांग्रेस एक संसदीय सीट से बढ़कर छह पर पहुंच गई।

    बेशक, इसके बाद हुए हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में दलितों का रुझान कांग्रेस को छोड़ फिर भाजपा की ओर दिखा, लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि बसपा के कमजोर होने के बाद फिलहाल दलित वोटर कहीं स्थाई तौर पर नहीं जुड़ा है।

    दलित वोट बैंक को अपनी ओर खींच रही कांग्रेस 

    भीम आर्मी चीफ चंद्र शेखर जरूर लोकसभा में नगीना सीट जीतकर खड़े होने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन कांग्रेस को लगता है कि लोकसभा चुनाव की तरह ही अपने पुराने दलित वोट बैंक को फिर अपनी ओर खींचा जा सकता है।

    यही कारण है कि संसद के शीतकालीन सत्र में गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी को बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के अपमान के रूप में प्रचारित कर कांग्रेस ने देशव्यापी मुहिम शुरू कर दी। देशभर में बापू, जय भीम, जय संविधान अभियान चलाया जा रहा है।

    सपा ने पीडीए को बनाया राजनीतिक अस्त्र 

    26 जनवरी को आंबेडकर की जन्मस्थली महू में भी यह कार्यक्रम होने जा रहा है, जिसमें दलित वर्ग से आने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा समेत अन्य दिग्गजों का शामिल होना प्रस्तावित है। इसी तरह खास तौर पर उत्तर प्रदेश में सपा ने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानी पीडीए को राजनीतिक अस्त्र जरूर बना रखा है, लेकिन दलितों की ओर तेज कदम कांग्रेस बढ़ाती दिख रही है।

    कांग्रेस नेता मानते हैं कि बसपा इसलिए कांग्रेस पर ज्यादा हमलावर है, क्योंकि मायावती को लगता है कि दलित वर्ग का वोट सपा के साथ तो कुछ नेताओं के सहारे गया है, लेकिन दलित सपा के साथ सहज नहीं है। भाजपा के अलावा कांग्रेस ही इस वर्ग के लिए एक विकल्प है।

    इससे बसपा नेता भी संभवत: आशंकित हैं, इसीलिए पार्टी प्रमुख मायावती ने इसे नौटंकी बताया तो आकाश आनंद की टिप्पणी थी कि हमारी नीली क्रांति को कांग्रेस ने फैशन शो बना लिया। 

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