विधानसभा चुनाव से पहले 'हाथ' से हिला शिव'राज', राघौगढ़ नगर पालिका पर कांग्रेस का कब्जा
मध्यप्रदेश में राघौगढ़ नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस ने 24 में से 20 वॉर्ड पर जीत दर्ज की, भाजपा का 4 वार्ड पर कब्जा।
नई दिल्ली (जेएनएन)। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। गुना जिले के राघौगढ़ नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस ने 24 में से 20 वॉर्ड पर जीत दर्ज की है, जबकि भाजपा चार वॉर्ड पर कब्जा जमा पाई। नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त जीत ने पार्टी का मनोबल बढ़ाने का काम किया है, वहीं भाजपा को आइना भी दिखाया है।
कांग्रेस प्रत्याशी आरती शर्मा की जीत
अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरीं कांग्रेस प्रत्याशी आरती शर्मा ने भाजपा की मायादेवी अग्रवाल को भारी मतों से हराया है। इस जीत के बाद कांग्रेस में जश्न का माहौल बना हुआ है। कांग्रेस की भारी-भरकम जीत ने भाजपा को आत्मचिंतन करने पर मजबूर कर दिया है।
दिग्विजय सिंह का गृहनगर है गुना
बता दें कि पिछले 20 वर्षों से राघौगढ़-विजयपुर नगर पालिका परिषद पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। मोदी लहर के बावजूद इस बार भी कांग्रेस ने अपने गढ़ को बचाए रखा है। गुना जिला पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का गृहनगर है, जिस कारण यहां का चुनाव प्रदेशभर में चर्चित रहा। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस बार नगर पालिका चुनाव के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी प्रचार करने के लिए गुना पहुंचे थे। सीएम की सभा के बाद भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प भी हुई।
सिर्फ सीएम ही नहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता भी कांग्रेस के गढ़ में कमल खिलाने की कोशिश में जुटे दिखे। चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर वरिष्ठ नेता प्रशात झा भी प्रचार में शामिल हुए। कांग्रेस की तरफ से विधायक जयवर्धन सिंह ने मोर्चा मुख्य रुप से संभाला हुआ था। लेकिन इसके बावजूद भाजपा को मुंह की खानी पड़ी।
मध्यप्रदेश में 'कमजोर' होती भाजपा को आनंदीबेन का सहारा!
गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को मध्यप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त करना एक सुनियोजित फैसला है। माना जा रहा है कि आनंदीबेन का बतौर राज्यपाल मध्यप्रदेश भेजने के पीछे का मकसद राज्य में कमजोर होती भाजपा को मजबूती देना है। गुजरात चुनाव के कारण आनंदीबेन का राज्यपाल बनाने के फैसले पर अमल नहीं किया गया था, क्योंकि पाटीदार आंदोलन की वजह से भाजपा को आनंदीबेन जैसे बड़े पाटीदार नेता की जरूरत थी। अब आनंदीबेन को राज्यपाल बनाकर भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो गुजरात के पटेल समुदाय को यह भरोसा दिलाना कि पार्टी आनंदी बेन और समुदाय के साथ अन्याय नहीं कर रही है और दूसरा दस माह बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में पटेल आंदोलन को इस नियुक्ति के जरिए मजबूत होने से रोकना।
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