कांग्रेस का आरोप, कहा- खस्ताहाल सरकारी कंपनियों में LIC का पैसा जोखिम में डाल रही सरकार
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता अजय माकन ने कहा कि आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के संकट के बीच रिजर्व बैंक की दो दिन पहले आयी रिपोर्ट के तथ्य बेहद चिंताजनक हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अर्थव्यवस्था की सुस्ती पर लगातार घेर रही कांग्रेस ने कहा है कि सरकार अब बदहाल सरकारी कंपनियों की खस्ताहाली सुधारने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) की बलि चढ़ा रही है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए पार्टी ने कहा है कि बीते पांच साल ऐसी कंपनियों में एलआइसी का निवेश दोगुना हो गया है। कांग्रेस के मुताबिक सरकार का यह कदम एलआइसी में जमा जनता के पैसे को जोखिम में डालने वाला है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता अजय माकन ने कहा कि आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के संकट के बीच रिजर्व बैंक की दो दिन पहले आयी रिपोर्ट के तथ्य बेहद चिंताजनक हैं। इसमें एलआइसी में जमा आमलोगों के पैसे को सरकार ने बीते पांच साल में कैसे जोखिम में डाला है इसकी तस्वीर साफ है।
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से साफ है कि एलआइसी की स्थापना 1956 से लेकर 2014 तक करीब 60 साल के दौरान खस्ताहाल सरकारी कंपनियों में उसने 11.94 लाख करोड रूपये निवेश किए। मगर 2014-19 के केवल पांच साल में मोदी सरकार ने एलआइसी का 10.70 लाख करोड़ रुपये खस्ताहाल कंपनियों में लगा दिया है।
माकन ने आइडीबीआइ बैंक में एलआइसी का 21000 करोड रूपए लगाने का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले से बैंक की इतनी देनदारी थी कि यह पैसा उसी में चला गया। जबकि बैंक अभी भी 3800 करोड रुपये के घाटे में है।
उनका कहना था कि एलआइसी की इतनी बड़ी रकम को पांच साल में खस्ताहाल कंपनियों पर लगाने का मतलब साफ है कि सरकार ने आम जनता की जमा पूंजी खतरे में डाल दी है। एलआइसी में 28 करोड से ज्यादा पालिसी धारक, 1.12 लाख कर्मचारी और 10 लाख से अधिक एजेंट इन सभी के भविष्य को दांव पर लगा दिया गया है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि सरकार ने कमजोर कंपनियों में एलआइसी का निवेश करा आम आदमी की मेहनत की कमाई का दुरूपयोग किया है क्योंकि इस कदम से एलआइसी को बाजार के मुकाबले निवेश पर कम आमदनी हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार के इस रवैये की वजह से एलआइसी में जमा लोगों की रकम पर जोखिम बढ़ गया है।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में पारिवारिक कर्ज बीते पांच साल में बढ़ने का हवाला देते हुए माकन ने कहा कि अर्थव्यवस्था के संकट की वजह से लोगों को मजबूरी में ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि आरबीआई के अनुसार 2012-13 में कुल पारिवारिक कर्ज 3.85 लाख करोड़ था जो 2017-18 में बढ़कर 7.40 लाख करोड पहुंच गया है। माकन ने कहा कि सरकार भले आर्थिक संकट की चुनौती को स्वीकार नहीं कर रही मगर सरकार की संस्थाओं की रिपोर्ट ही अर्थव्यवस्था की पोल खोल रही हैं।